
उम्र बढने के साथ-साथ याद्दाश्त कमजोर होना एक आम समस्या है। चिकित्सकीय भाषा में इसे एआरएमआई (एज रिलेटेड मैमोरी इम्पेयरमैंट) कहा जाता है। इस विषय पर हुए अनेक शोध भी दर्शाते हैं कि 50 वर्ष से अधिक आयु के लगभग आधे से लेकर दो-तिहाई लोग अपनी याद्दाश्त में बदलाव का अनुभव करते हैं। चलिए जरी इस विषय पर विस्तार में बात की जाए और यह समझने की कोशिश की जाए कि क्या वाकई उम्र बढ़ने के साथ दिमाग
घटता है, यदि हां तो ऐसा क्यों होता है।
क्यों होती है याद्दाश्त कम
दरअसल इंसानी दिमाग विचारों और जानकारियों का स्टोर होता है। मनुष्य अपने हर काम के लिए अपने दिमाग का ही इस्तेमाल करता है, और इस प्रक्रिया में याद्दाश्त का लगभग हर स्तर पर उपयोग होता है। इंसानी दिमाग न्यूरोन्स कहे जाने वाले करोड़ों नर्व सैल्स से मिलकर बना होता है। ये सैल्स एक दूसरे से कई प्रकार के बायोलॉजिकल और कैमिकल सिग्नल्स की मदद से सम्पर्क स्थापित करते हैं, जिसमें न्यूरोकैमिकल नामक खास तत्व का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है।
कैमिकल लोचा
किसी भी इंसान की याद्दाश्त न्यूरोन्स के अस्तित्व और इनके स्वस्थ रूप से कार्य करने पर निर्भर करती है। और याद्दाश्त खोने या कमजोर होने का संबंध न्यूरोन्स की कार्यप्रणाली में आए अवरोध से होता है। जैसे-जैसे इंसान की उम्र बढ़ती जाती है, उसके मस्तिष्क और न्यूरोन्स में अनेक बदलाव आते हैं। कई शोध इस बात की पुष्टी कर चुके हैं कि 20 वर्ष की आयु के आसपास हमारा मस्तिष्क सबसे बेहतर तरीके से काम करता है। जबकि लगभग 30 के हो जाने पर ये न्यूरोन्स नष्ट होना शुरू होने लगते हैं। और हमारा शरीर भी न्यूरोन्स के लिए उपयोगी कैमिकल्स कम मात्रा में बानाने लगता है। जैसे-जैसे इंसान की उम्र बढ़ती है ये बदलाव उसे ज्यादा प्रभावित करने लगते हैं।
और भी हैं कारण
याद्दाश्त कमजोर होने के इन प्राकृतिक कारणों के अलावा दवाइयों के साइड इफैक्ट, तनाव, अवसाद, चिंता, एकाकीपन, शराब का अधिक सेवन या दुर्घटना में सिर पर लगी चोट आदि भी कुछ ऐसे कारण हैं जिसकी वजह से मनुष्य की याद्दाश्त प्रभावित हो सकती है। हालांकि याद्दाश्त की क्षमता में आ रही कमी के लिए विशेषज्ञ आजकल बढ़ते जा रहे आधुनिक उपरकणों के इस्तेमाल और निर्भरता को भी जिम्मेदार ठहराते हैं। जैसा की रोज आ रही नई तकनीक और उपकरणों के चलते अब हमें पहले की तरह सब कुछ अपने दिमाग में याद रखने की जरूरत नहीं होती, यह भी याद्दाश्त कमजोर होने का एक बड़ा कारण है। एक शोध के अनुसार उपकरणों पर बढ़ती मनुष्यों की निर्भरता के चलते अब उनके याद रखने की क्षमता में करीब 10 प्रतिशत तक की कमी आ चुकी है।
कैसे करें इस समस्या का सामना
याद्दाश्त कम होने के कारण और इससे जुड़े पहलुओं पर तो हम बात कर ही चुके हैं, लेकिन अब सवाल यह पैदा होता है कि क्या इस समस्या से बच पाने या इसे काबू करने के उपाय संभव हैं या नहीं। और यदि उपाय हैं तो वे किताबी हैं या उनका जमीन से जुड़ा कोई सच भी है। जी हां इस समस्या से बचा जा सकता है, बशर्ते इसके उपायों का सही प्रकार अनुसरण किया जाए। तो चलिए बात करते हैं सामाधान की।
पोषण जरूरी
याद्दाश्त को बेहतर बनाए रखने के लिए सही खानपान बेहद जरूरी है। सही खानपान का मतलब ताजा फल, सब्जियां, साबुत अनाज और स्वस्थ वसा को अपने आहार में शामिल करें। कुछ खाद्य पदार्थ तो याददाश्त बढ़ाने में सहायक भी हो सकते हैं। जैसे बादाम, सेब, पालक और अन्य हरी सब्जियां, प्याज, अंडे, टमाटर, अंगूर, चैरी, ब्रोक्कली, बैंगन, स्वस्थ वसा, नट्स, फिश ऑयल तथा कॉफी आदि।
नियमित व्यायाम
याद्दाश्त को दुरुस्त रखने के लिए शारीरिक का रखना भी उतना ही जरूरी है जितना खान-पान का। जब हम व्यायाम करते हैं तो हमारे मस्तिष्क की ओर रक्तप्रवाह बढ़ जाता है। इसके अलावा हमारी मांसपेशियां कसरत के दौरान लाभदायक रसायन पैदा करती हैं जो हमारी याददाश्त के लिए काफी फायदेमंद होता है।
योग और ध्यान
याद्दाश्त दुरुस्त रखने में ध्यान भी बहुत कारगर होता है। ध्यान लगाने से हमारी याद रखने की क्षमता बढ़ती है। इससे तनाव भी कम होता है, जोकि याद्दाश्त कमजोर होने का एक मुख्य कारण है। शोधों में भी यही देखने को मिला है कि ध्यान योग से सैरेब्रल कोर्टैक्स की क्षमता में वृद्धि होती है। मस्तिष्क का यह भाग तार्किक विचारों और याद्दाश्त में अहम भूमिका निभाता है।
उचित आराम
इस बात की पुष्टी करने के लिए पर्याप्त वैज्ञानिक साक्ष्य मौजूद हैं कि नींद का याद्दाश्त को दुरुस्त रखने में महत्वपूर्ण योगदान होता है। समुचित नींद लेने पर नर्व सैल्स और मस्तिष्क में संबंध मजबूत होता है जिसका सीखने की क्षमता और याद्दाश्त से गहरा रिश्ता है। हमारा मस्तिष्क दिन भर कार्य करता है जिसके पश्चात उसे आराम की बहुत जरूरत होती है। समुचित आराम न मिलने की सूरत में मस्तिष्क के सैल्स पर अधिक दबाव पड़ता है जिससे उनके नष्ट होने की गति तीव्र हो जाती है।
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