मधुमेह एक ऐसी बीमारी है, जिसमें शरीर रक्त शर्करा को नियंत्रित करने वाले हार्मोन इंसुलिन का उत्पादन करने में विफल रहता है या फिर वह सही तरह से काम नहीं करता। वैसे आपने अब तक टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज के बारे में ही सुना होगा, लेकिन बहुत जल्द आप टाइप 3, 4, 5 डायबिटीज के बारे में भी सुन सकते हैं। दरसअल, एक इंडियन स्टडी कहती है कि मधुमेह का हर रोगी एकसमान नहीं होता और इसलिए रोगी के लक्षणों की पहचान करके मधुमेह के उपचार के लिए टार्गेट टीटमेंट की आवश्यकता है। डॉक्टर की मानें तो टाइप 2 डायबिटीज के भारतीय रोगियों में सात वेरिएंट होते हैं जो वर्तमान में एक के रूप में निदान किए जा रहे हैं।
क्या कहता है अध्ययन
वैसे यह पहली बार नहीं है, जब मधुमेह के निदान के विस्तार के लिए अध्ययन किया गया हो। भारत से करीबन एक साल पहले लैंडमार्क स्वीडिश शोध ने भी मधुमेह निदान का विस्तार करने की मांग थी। एक स्वीडिश अध्ययन ने मधुमेह के निदान का विस्तार करने के लिए मधुमेह को सिर्फ टाइप 1 व टाइप 2 तक ही सीमित नहीं रखने के लिए कहा गया था। अध्ययन के अनुसार, मधुमेह को उसके लक्षणों के आधार पर अन्य पांच प्रकार में बांटा जा सकता है। स्वीडिश अध्ययन ने मधुमेह को पांच गंभीर ऑटोइम्यून मधुमेह, गंभीर इंसुलिन की कमी वाले मधुमेह, गंभीर इंसुलिन प्रतिरोधी मधुमेह, हल्के मोटापे से संबंधित मधुमेह और हल्के उम्र से संबंधित मधुमेह का विस्तार किया। यह अध्ययन पिछले मार्च मंन लैंसेट डायबिटीज एंड एंडोक्रिनोलॉजी में प्रकाशित हुआ था। वहीं भारत में किया गया अध्ययन भी कहता है कि मधुमेह के सटीक उपचार के लिए इसे अधिक उप-समूहों में बांटे जाने की आवश्यकता है।
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भारत पर है दबाव
भारत में मधुमेह एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती के रूप में जाना जाता है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, मधुमेह देश की सबसे तेजी से बढ़ती बीमारी है। भारत वर्तमान में दुनिया के लगभग आधे मधुमेह बोझ का प्रतिनिधित्व करता है। वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ के अनुसार, मधुमेह की समस्या बढ़ने पर अंधापन, गुर्दे की विफलता, दिल के दौरे और स्ट्रोक जैसी कई समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
जारी हैं कोशिशें
मधुमेह रोगियों के अनुरूप उपचार के लिए फिलहाल पहले चरण में केईएम अस्पताल के पिछले 15 वर्षों के 3000 मधुमेह रोगियों का डेटा इकट्ठा किया गया है। डेटा में रोगियों की उम्र, उनके बॉडी मास इंडेक्स, रक्त में इंसुलिन के वास्तविक स्तर और पेनक्रियाटिक सेल्स को होने वाले नुकसान की जानकारी शामिल की गई है। इन मापदंडों के आधार पर, सर्वप्रथम मधुमेह के उप प्रकार की पहचान की जाएगी। इसके बाद दूसरे चरण में प्रत्येक उप-प्रकार के लिए उपचार विकल्पों का पता लगाने की कोशिश की जाएगी। जिसके बाद सभी रोगियों के लिए एक जैसे उपचार के स्थान पर उनके लक्षणों को फोकस करते हुए उपचार किया जाएगा। जिससे यकीनन न सिर्फ डायबिटीज के हाई रिस्क रोगियों का जल्द व सटीक उपचार होगा, बल्कि वह बेहद प्रभावशाली भी होगा।
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डॉक्टर की राय
फोर्टिस अस्पताल के एंडोक्रिनोलॉजी विभाग के प्रमुख व प्रधान सलाहकार डॉ अजय अग्रवाल के अनुसार, टाइप 2 डायबिटीज में कई तरह के रोगी पाए जाते हैं, लेकिन अब इसे अलग से क्लासिफाइड करने की कोशिश की जा रही है। इससे एक बड़ा लाभ यह होगा कि इससे यकीनन सटीक उपचार में मदद मिलेगी और उपचार का असर भी जल्द नजर आएगा। इस प्रकार भारत को मधुमेह के बोझ से कम करने की दिशा में यह एक अच्छा कदम हो सकता है। हालांकि इसे अमल में आने में अभी काफी वर्षों का समय लगेगा।
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