हमारी सुनने की ताकत पर आनुधिक जीवनशैली हावी हो रहा है, यानी लाइफस्टाइल के कारण लोगों में बहरेपन का खतरा बढ़ रहा है। क्या आधुनिक जीवन हमारी सुनने की ताकत छीन रहा है? इसका जवाब तलाशने के लिए ब्रिटेन के शोधकर्ता एक व्यापक अध्ययन शुरू करने जा रहे हैं। इस दौरान वे लोगों से उनके सुनने की क्षमता की ऑनलाइन जांच करने के लिए कहेंगे। मगर यह पता नहीं चला है कि इसके पीछे पर्यावरण से जुड़े कुछ कारक जैसे कि एम्प्लीफाइड म्यूजिक सुनना जिम्मेदार हैं।
मेडिकल रिसर्च काउंसिल चाहती है कि इस सवाल का जवाब देने के लिए युवा और बुजुर्ग आगे आएं। संबंधित वेबसाइट पर जाने पर वॉलंटियर से सवाल किए जाएंगे, ये सवाल उनकी सुनने की आदतों से जुड़े होंगे।
इनकी मदद से शोरगुल के बीच आवाज सुनने की हर वॉलंटियर की क्षमता का पता लगाया जाएगा। कहा जाता है कि इंसान अगर ज्यादा समय तक ऊंचा संगीत सुने, तो बहरा भी हो सकता है।
वैज्ञानिक यह देखना चाहते हैं कि प्रतिभागियों के सुनने की पुरानी आदत और सुनने की मौजूदा ताकत के बीच क्या कोई संबंध है, अगर हां, तो यह संबंध कैसा है?
डिस्को और क्लब में लोग बेहद तेज़ संगीत सुनने के आदी होते जा रहे हैं, विशेषज्ञों को पता है कि संगीत का ऊंचा सुर सुनने की क्षमता पर असर डालता है।
आजकल लोग संगीत सुनने के लिए इयरफोन का नियमित इस्तेमाल करने लगे हैं, इयरफोन पर संगीत तो धीमा होता है, मगर लगातार सुनने की आदत चिंताजनक है। हियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट के डॉ माइकल अकेरोड इस प्रोजेक्ट के मुख्य संचालक हैं।
उन्होंने बताया, "संगीत और सुनने की क्षमता से जुड़ा अध्ययन ज्यादातर उन संगीतकारों पर केंद्रित रहा, जो रोज ऊंचा संगीत सुनने को मजबूर होते हैं, मगर ऊंचे संगीत का आम लोगों पर क्या असर होता है, इसके बारे में अभी ज्यादा पता नहीं है। इस प्रोजेक्ट का मुख्य उद्देश्य यह पता लगाना है कि क्या दोनों के बीच कोई संबंध है?"
एक ताजा आंकलन के अनुसार 10 करोड़ लोगों में किसी न किसी रूप में कम सुनने की बीमारी पाई गई है। साल 2031 तक यह आंकड़ा 14.5 करोड़ तक पहुंचने की आशंका है।
Source-bbc.com
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