हिस्टीरिया में किसी शारीरिक कमी के बगैर रोगी को रह-रह कर मस्तिष्क के साथ तंत्रिका तंत्र से जुड़े गंभीर लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। जैसे- पीड़ित व्यक्ति का बार-बार बेहोश हो जाना या दम घुटना और हाथ-पैर में ऐंठन होना आदि। चूंकि रोगी शारीरिक रूप से स्वस्थ होता है। इसलिए इन लक्षणों व तकलीफ से जुड़ी सभी प्रकार की जांचें जैसे कैट स्कैन, ईसीजी और अन्य परीक्षणों में कोई भी कमी नहीं निकलती है। मनोरोग हिस्टीरिया एक गंभीर समस्या है, लेकिन कुछ सुझावों पर अमल कर इसे नियंत्रित किया जा सकता है।
क्या है हिस्टीरिया का कारण
रोगी के चेतन या अचेतन मन में चल रहे किसी तनाव के कारण हिस्टीरिया उत्पन्न होता है। अक्सर तनाव से बाहर निकलने के लिए रोगी के पास जब कोई रास्ता शेष नहीं रह जाता, तभी उसे रह-रह कर हिस्टीरिया के दौरे पड़ने लगते हैं। हिस्टीरिया के रोगी बहुत जिद्दी और गुस्सैल होते हैं और जब भी कोई बात उनके मन के अनुरूप नहीं होती है, तब वे बहुत परेशान हो जाते हैं और थोड़ी ही देर में वे बदहवास हो जाते हैं।
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हिस्टीरिया का इलाज
चूंकि हिस्टीरिया के सभी लक्षण किसी न किसी रूप में मस्तिष्क या न्यूरो की गंभीर बीमारी जैसे प्रतीत होते हैं। ऐसे में रोगी का किसी कुशल डाक्टर की सहायता से जांच कर लेना जरूरी होता है। डॉक्टर द्वारा की गयी जांचों में जब कोई भी कमी नहीं निकलती है तब मनोचिकित्सक की सहायता से इस रोग का इलाज कराना चाहिए।
हिस्टीरिया में मनोचिकित्सा
चूंकि इस रोग का सीधा संबंध चेतन व अचेतन मन में चल रहे तनाव से होता है। ऐसे में मनोचिकित्सा का प्रमुख स्थान है। मनोचिकित्सा के दौरान रोगी के मन में व्याप्त तनाव के साथ जिद्दीपन, गुस्सा, भावनात्मक अस्थिरता व आवेश की पहचान की जाती है और उससे निपटने के सही उपाय सुझाए जाते हैं। मनोचिकित्सा में परिजनों का सहयोग अनिवार्य रूप से लिया जाता है। हिस्टीरिया के दौरे के समय परिजन को क्या करना चाहिए या क्या नहीं करना चाहिए, ये भी समझाया जाता है।
हिस्टीरिया के साथ अवसाद(डिप्रेशन), बेचैनी और भावनात्मक अस्थिरता को दूर करने के लिए अवसादरोधी दवाएं भी रोगी को दी जाती हैं।
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हिस्टीरिया के दौरे के लक्षण
- हिस्टीरिया के दौरे पड़ने पर रोगी अचानक या फिर धीरे-धीरे अचेत हो जाता है। इस दौरान उसकी सांसें चलती रहती हैं।
- पीड़ित का शरीर बिल्कुल ढीला हो जाता है और दांत कसकर भिंच जाते हैं।
- रह-रह कर हाथ-पैरों और शरीर में झटके आते हैं और शरीर में ऐंठन होती है।
- मरीज की अचेतन अवस्था कुछ मिनटों से लेकर कुछ घंटों तक बनी रह सकती है। उसके बाद रोगी स्वयं उठकर बैठ जाता है और ऐसा व्यवहार करता है, जैसे उसे कुछ हुआ ही नहीं। कई बार पानी के छींटे डालने या नाक दबाने से भी रोगी को होश आ जाता है।
- रोगी जोर से गहरी सांसें लेता है और रह-रह कर छाती व गला पकड़ता है और ऐसा प्रतीत होता है कि रोगी का दम घुट रहा है।
- कभी-कभी रोगी के हाथ-पैर लकवाग्रस्त व्यक्ति की तरह ढीले पड़ जाते हैं। रोगी कुछ घंटों के लिए चल-फिर नहीं पाता है।
- अचानक गले से आवाज निकलनी बंद हो जाती है।
- ये सभी लक्षण अस्थाई होते हैं और कुछ समय बाद स्वयं ही ठीक भी हो जाते हैं।
-डॉ.उन्नति कुमार, मनोरोग विशेषज्ञ
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