कमर और पैरों में अक्सर होने वाले तेज दर्द को साइटिका कहते हैं। साइटिक नामक तंत्रिका(नर्व) पर दबाव के कारण इस मर्ज का नाम साइटिका पड़ा है। साइटिक तंत्रिका हमारे शरीर में रीढ़ की हड्डी के निचले भाग में से गुजरने वाली प्रमुख तंत्रिका है। यह शरीर की सबसे बड़ी और चौड़ी तंत्रिका है। यह कमर के निचले हिस्से से निकलती है और कूल्हे से होकर घुटने के नीचे तक जाती है। यह तंत्रिका नीचे पैर में कई मांसपेशियों को नियंत्रित करती है और पैरों की त्वचा को संवेदना (सेंसेशन) देती है। साइटिका कोई बीमारी नहीं बल्कि साइटिक तंत्रिका से जुड़ी एक अन्य समस्या का लक्षण है। अगर हम अपनी जीवनशैली में सही पोस्चर्स को शामिल कर लें तो, सियाटिका की समस्या से काफी हद तक बचाव कर सकते हैं।
क्या हैं इसके लक्षण
- कमर के निचले हिस्से से लेकर कूल्हे और घुटने के पीछे की तरफ पैर तक खिंचाव महसूस होना और झनझनाहट होना।
- कूल्हे से लेकर पैर तक लगातार दर्द का बना रहना, जो बैठने और खड़े होने पर ज्यादा होता है और लेटने पर कम होता है।
- पैरों, अंगूठे एवं उंगलियों में सुन्नपन और कमजोरी महसूस होना।
- साइटिका अधिकतर उन लोगों में जल्दी होता है, जो एक जगह पर बैठकर लंबे समय तक काम करते हैं। जैसे कि आजकल कंप्यूटर आईटी जॉब्स और सिटिंग्स जॉब्स वालों को इसका सामना करना पड़ रहा है। शारीरिक व्यायाम की कमी भी इसको बढ़ावा देती है।
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क्यों होता है साइटिका का दर्द
- इस दर्द का लम्बर हर्नियेटेड डिस्क एक प्रमुख कारण है। हर्नियेटेड डिस्क की समस्या में में रीढ़ की हड्डी की डिस्क के अंदर दबाव बढ़ने से यह बाहर लीक कर जाती है और नर्व रूट को लगातार दबाती रहती है।
- उम्र के साथ-साथ रीढ़ की हड्डी में बदलाव आना। इन बदलावों की वजह से हमारे तंत्रिका तंत्र पर काफी प्रभाव पड़ता है।
- रीढ़ की नलिका (स्पाइनल कैनाल) का पतला होना।
- यह समस्या अक्सर 50 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में होती है।
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फिजियोथेरेपी से संभव है इलाज
- रीढ़ की हड्डी का मैनुअल मैनीपुलेशन।
- कमर और पूरे टांग की मांसपेशियों के खींचने और उनकी ताकत बढ़ाने वाले व्यायाम।
- हैमस्ट्रिंग स्ट्रेचिंग जिसमें सीधा खड़ा होकर अपने पैर के अंगूठों को छूने का प्रयास करें।
- कमर की आगे और पीछे झुकाने वाली मांसपेशिओं के व्यायाम।
- काइनेसिओ टैपिंग के अंतर्गत मांसपेशियों को एक टेप के साथ जोड़ दिया जाता है, जिससे मांसपेशियों की काम करने की क्षमता बढ़ जाती है।
- पोस्चर ट्रेनिंग। सही तरीके से खड़े होने और बैठने का तरीका सिखाया जाता है।
- इलेक्ट्रोथेरेपी मशीनों का इस्तेमाल भी काफी फायदेमंद होता है जिसमें नई तकनीक वाली मशीन जैसे माइक्रोवेब डायथर्मी और कॉम्बिनेशन थेरेपी, क्लास 3 और क्लास 4 लेजर का इस्तेमाल होता है, जिससे सूजन और दर्द को कम करने में बहुत मदद मिलती है। कुछ मरीजों में मशीनों के साथ-साथ एक्सरसाइज थेरेपी से बहुत जल्दी आराम मिलता है।
- स्पाइनल डी-कंप्रेशन थेरेपी जिसमें रीढ़ की हड्डी के दबाव को मशीन द्वारा खींचकर कम किया जाता है।
- वैकल्पिक इलाज यानी एर्गोनॉमिक पोस्चर परामर्श। जैसे ऑफिस में काम करने सही तरीका (पोस्चर) सिखाया जाता है। कॉग्नेटिव व्यवहार चिकित्सा जिसमें मरीज को दिमागी तौर पर दर्द से लड़ने और इसे बर्दाश्त करने का तरीका सिखाया जाता है।
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