दुनिया भर के स्वास्थ्य विशेषज्ञ मलेरिया के ज्यादा प्रभाव वाले क्षेत्रों में आयरन की खुराक न देने की चेतावनी दे चुके हैं। लेकिन एक हालिया अध्ययन में पाया गया कि आयरन का सेवन करने वाले बच्चों में मच्छर जनित रोग के मामलों में कोई वृद्धि नहीं हुई।
अफ्रीकी देश घाना देश में गंभीर दस्त के इलाज के लिए अस्पतालों में उन बच्चों की तादाद काफी अधिक देखी गयी जिन्हें अतिरिक्त आयरन दिया गया था। विशेषज्ञों ने इस बात को लेकर अध्ययन पर सवाल उठाए।
मलेरिया उप सहारा अफ्रीका में बच्चों के बीच मृत्यु का एक प्रमुख कारण है। जबकि इस क्षेत्र के लोगों में आयरन की कमी भी काफी बड़ी संख्या में पायी जाती है।
टोरंटो में बच्चों के अस्पताल के 'स्टेनली ज्लोटकिंन' के नेतृत्व में हुए इस रैन्डमाइज़्ड अध्ययन में छह महीने से लेकर तकरीबन 3 साल तक के लगभग 2,000 बच्चों को शामिल किया गया। इस अध्ययन को अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन के जर्नल में प्रकाशित किया गया।
वे बच्चे जिन्हें पांच महीने तक आयरन युक्त माइक्रोन्यूट्रेंट पाउडर (एमएनपी) दिया गया, उनमें यह खुराक नहीं मिलने वाले बच्चों की तुलना में मलेरिया होने की कोई घटना नहीं पाई गयी। इन सभी बच्चों को कीटनाशक दवा युक्त मच्छरदानी दी गयी थी।
यह परिणाम पिछले अनुसंधान के विपरीत हैं जिसमें बताया गया था कि आयरन की कमी से हुआ एनीमिया मलेरिया से बचाव कर सकता है तथा आयरन की खुराक मलेरिया को और अधिक घातक बनाती है।
अध्ययन में बताया गया कि आयरन की खुराक ले रहे बच्चों में से कुछ को मलेरिया के कुछ मामले सामने आए, लेकिन इनमें से अधिकांश को मध्यवर्तन के दौरान अस्पताल में भर्ती कराया गया।
वर्ष 2006 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लू.एच.ओ) तथा संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनीसेफ) ने सलाह दी थी कि मलेरिया के अधिक प्रभाव वाले क्षेत्रों में आयरन की खुराक केवल उन बच्चों को दी जाए जिन्हें एनीमिया के साथ आयरन की कमी है।
वर्तमान अध्ययन से पुराने अध्ययनों से उलट जानिकारियां सामने आयी हैं।
हाल ही में डब्ल्यूएचओ ने मलेरिया की आशंका वाले क्षेत्रों को ध्यान में रखते हुए अपने दिशानिर्देशों को अपडेट किया है। इसमें कहा गया है कि मलेरिया प्रभावित क्षेत्रों में आयरन की गोलियां मलेरिया के इलाज के साथ दी जा सकती हैं।
घाना में किये गए अध्ययन में भी आयरन की खुराक की सुरक्षा के बारे में सवाल उठाया गया है। हालांकि इस अध्ययन के अनुसार अस्पताल में आयरन वाले समूह (156) के बच्चे दूसरे समूह (128) की तुलना में अधिक थी।
लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन के एंड्रयू अप्रेंटिस ने जामा (जेएएमए) में लिखे अपने संपादकीय के माध्यम से कहा कि हो सकता है इस अध्ययन में इस्तेमाल किया गया आयरन पाउडर पिछले अध्ययनों में इस्तेमाल किये गये आयरन पाउडर कि के तुलना में प्रभावी नहीं हो। और कहा कि सुरक्षा की दृष्टि से इस पर और अधिक शोध होना चाहिए।
अप्रेंटिस ने कहा कि "यह निष्कर्ष कि आयरन ने मलेरिया के खतरे को नहीं बढ़ाया था, सीमित आश्वासन प्रदान कर सकता है तथा हो सकता है कि प्रयोग किये गये आयरन युक्त माइक्रोन्यूट्रेंट पाउडर (एमएनपी) में एनीमिया को ठीक करने के लिए आवश्यक क्षमता से कम का आयरन हो।"
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