मोटापा हमारी प्रजनन क्षमता पर बहुत विपरीत असर डालता है। इससे पुरुष और महिलायें दोनों प्रभावित होते हैं। पुरुषों में जहां इसकी वजह से शुक्राणुओं के स्तर में कमी आ जाती है, वहीं महिलाओं को भी कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
वजन से हमारे स्वास्थ्य पर पड़ने वाले सामान्य प्रभावों के बारे में तो हमें पता ही है। जिन लोगों का वजन अधिक होता है, उन्हें उच्च रक्तचाप, डायबिटीज, कैंसर और हृदय रोग होने का खतरा अधिक होता है। इसके साथ ही इस तथ्य से भी लोग अवगत हैं कि अधिक वजन वाली महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। हालिया शोध भी वजन से प्रजनन क्षमता पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में बताते हैं।
पुरुषों में होता है हॉर्मोंस असंतुलन
वजन जरूरत से अधिक हो या कम, दोनों ही परिस्थितियों में स्त्री और पुरुष, दोनो को प्रजनन संबंधी परेशानियां हो सकती हैं। मोटापे के शिकार पुरुषों में हॉर्मोन असंतुलन के कारण प्रजनन क्षमता पर विपरीत असर पड़ता है। हार्मोन्स का यह असंतुलन पुरुष शरीर में शुक्राणुओं निर्माण की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करता है।
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मोटापे के पुरुषों पर अन्य प्रभाव
पुरुषों में मोटापा नपुसंकता का कारण बन सकता है। यह शुक्राणुओं के निर्माण पर विपरीत प्रभाव डालता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि वे ऐसे पुरुष जिन्होंने अधिक संतृप्त वसा का सेवन किया उनमें सामान्य पुरुषों के मुकाबले 35 फीसदी कम शुक्राणु पाए गए। वहीं स्वस्थ आहार लेने वाले पुरुषों के मुकाबले यह स्तर 38 फीसदी था।
इरेक्टाइल डिस्फंक्शन
मोटापे से डायबिटीज, उच्च कोलेस्ट्रॉल और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियां हो जाती हैा। इससे शरीर में रक्त प्रवाह पर बुरा असर पड़ता है।
महिलाओं को होने वाली समस्यायें
कई मामलों में अधिक वजन अथवा कम वजन की महिलाओं में भी हॉर्मोंस असंतुलन पैदा हो जाता है, जिसकी वजह पीरियड अनियमित होता है, जिसका सीधा असर ओव्यूलेशन पीरियड पर पड़ता है और गर्भधारण नहीं हो पाता। आमतौर पर कम वजन के रोगियों (जिनका बीएमआई 19 से कम है), को अपना वजन बढ़ाना चाहिए। और केवल इसी से उनकी प्रजनन क्षमता पर सकारात्मक असर पड़ने लगता है अथवा हॉर्मोन थेरेपी भी अधिक कारगर तरीके के काम करती है।
वहीं कई अध्ययनों में यह बात प्रमाणित हुई है कि अधिक वजन की महिलाओं की प्रजनन क्षमता में भारी गिरावट आती है। मोटापे से ग्रस्त महिलायें यदि अपना वजन कम कर लें, तो बिना किसी इलाज के उनके ऑव्युलेशन की प्रक्रिया सामान्य हो जाती है। आदर्श वजन प्रजनन क्षमता को भी बढ़ाता ही है साथ ही मां और बच्चे दोनों का स्वास्थ्य भी ठीक रखता है।
शोध लगाते हैं मुहर
अमेरिकन सोसायटी ऑफ रिप्रोडक्शन मेडिसन कैम्पेन '' प्रोटेक्ट योर फर्टिलिटी'' में लोगों को प्रजनन क्षमता को प्रभावित करने वाले चार आवश्यक तत्वों से अवगत कराया गया- सिगरेट पीना, प्रजनन आयु में वृद्धि, यौन संचारित रोग और शरीर का वजन बढ़ाना अथवा घटाना।
अमेरिकन कॉलेज ऑफ ओबेस्टेट्रिक्स एंड गायनोकॉलोजी (एसीओजी) समिति का कहना है कि गर्भधारण की शुरुआती अवस्था में ही महिला के वजन और कद का रिकॉर्ड रखा जाना चाहिए। और यदि उसका वजन अधिक है, तो उसे कम करने की सलाह और मार्ग सुझाया जाना चाहिए। हैरानी की बात यह है कि इसके बाद जितने लोगों का वजन किया उनमें से अधिकतर लोग अधिक वजन, मोटापे और गंभीर मोटापे से ग्रस्त पाये गए।
प्रतिष्ठित इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसन के अनुसार मोटापे को मापने का पैमाना बॉडी मास इंडेक्स यानी बीएमआई है। सामान्य बीएमआई 25 से कम माना जाता है। यदि किसी का बीएमआई 25 अथवा उससे अधिक है तो उसे ओवरवेट श्रेणी में रखा जाता है। 30 से 34.9 के बीच के बीएमआई को मोटापे की पहली श्रेणी, 35 से 39.9 को मोटापे की दूसरी श्रेणी और 40 से ऊपर के बीएमआई को मोटापे की तीसरी श्रेणी में रखा जाता है।
कैसे निकालें बीएमआई
हालांकि महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए आदर्श वजन अलग होता है। लेकिन, फिर भी बीएमआई को आदर्श वजन मापने का सही पैमाना माना जाता है। बीएमआई यह बताता है कि किसी के शरीर का भार उसकी लंबाई के अनुपात में सही है अथवा नहीं। एक युवा व्यक्ति के शरीर का अपेक्षित भार उसकी लंबाई के अनुसार होना चाहिए, जिससे कि उसका शारीरिक गठन अनुकूल लगे। शरीर द्रव्यमान सूचकांक (बीएमआई) व्यक्ति की लंबाई को दुगुना कर उसमें भार किलोग्राम से भाग देकर निकाला जाता है।
बी एम आई = भार (किलोग्राम में) / ऊंचाई (मीटर में) 2
मोटापे से ग्रस्त महिलाओं को गर्भधारण में आनी वाली परेशानियां
- ऑव्युलेशन को नियमित अथवा प्रारंभ करने के लिए दी जाने वाली दवाओं के प्रति संवेदनशीलता में कमी होना।
- ऑव्युलेशन को सुचारु करने के लिए दी जाने वाली दवाओं के प्रति अति सक्रियता का खतरा भी बढ़ जाता है। इसके साथ ही दवाओं से ऐसी महिलाओं में एक से अधिक भ्रूण के होने की संभावना भी अधिक होती है। मोटी महिलाओं में ऐसा होने पर उन्हें सामान्य बीएमआई वाली महिलाओं के मुकाबले अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
- आईवीएफ चक्र में अधिक परेशानियां होना जिसमें अण्डाणुओं का कम टूटना
- अण्डाणुओं के टूटने में अधिक तकनीकी परेशानियां होना और साथ ही रक्तस्राव और चोट लगने का खतरा भी अधिक होना।
- अण्डाणुओं के टूटने पर अधिक शारीरिक अचेतना होना। इस दौरान रक्तचाप का असामान्य होना।
- भ्रूण के यूटरस में स्थानांतरित होने में अधिक कठिनाई होना।
- भ्रूण आरोपण दर में कमी होना।
- आईवीएफ की सफलता दर में कमी होना।
अधिक बीएमआई से ग्रस्त महिलायें को गर्भधारण के बाद होने वाली समस्यायें
गर्भपात का खतरा सामान्य से अधिक होना।
अगर सर्जरी की जरूरत पड़े तो अधिक अचेतना का होना।
उच्च रक्तचाप, गर्भावधि मधुमेह, प्री-एक्लम्पसिया, मृत बच्चा पैदा होना और गर्भावस्था से जुड़ी अन्य समस्यायें।
कई शोध के मुताबिक मोटापे से ग्रस्त महिलाओं में मृत बच्चे को जन्म देने की दर सामान्य महिलाओं से दोगुनी होती है।
सिजेरियन की जरूरत अधिक पड़ना।
मोटापे से ग्रस्त महिलाओं के बच्चों का वजन भी अधिक होता है, इसलिए गर्भावस्था दौरान उन्हें होने वाली परेशानियां बढ़ जाती हैं।
उम्मीद है कि इस लेख के बाद आपको मोटापे और उसके प्रजनन क्षमता पर पड़ने वाले असर के बारे में व्यापक और उपयोगी जानकारी मिल गयी होगी। और अगर आप 'मोटापे' की श्रेणी में हैं, तो आज से आपका प्रयास उससे छुटकारा पाना होगा।
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