जरूरत से ज्यादा हर बात और हर शख्स पर किसी कारण के बगैर लगातार शक करना एक मनोरोग में तब्दील हो सकता है। भारी संख्या में ऐसे लोगों की तादात मौजूद है जिन्हें शक करने की आदत है। सर्वे बताते हैं कि हैरानी की बात ये है कि जो लोग इस मनोरोग से घिरे हुए हैं उन्हें खुद भी इस बारे में पता नहीं होता है। हालांकि शक करना किसी व्यक्ति की फितरत हो सकती है। समाज तो इसे सामान्य अर्थो में लेता है, मगर डाक्टर कहते हैं कि यह एक बीमारी है, जिसे वो अपनी भाषा में मतिभ्रम कहते हैं। बढ़ती हिंसक प्रवृत्ति और दांपत्य जीवन में बिखराव के पीछे मतिभ्रम हो सकता है। चिकित्सकीय भाषा में इसे सिडोफ्रेमिया कहते हैं। डाक्टरों के मुताबिक वक्त रहते अगर लक्षण पहचान लिए जाएं तो इस रोग को काबू में किया जा सकता है।
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अक्सर शक की बीमारी किशोरावस्था के बाद से ही शुरू हो जाती है। शुरुआत में रोगी को एक या दो लोगों पर ही शक होता है, लेकिन थोड़े ही समय यानी एक-दो महीनों बाद रोगी को हर बात पर और हर किसी पर शक होने लगता है। परिजनों द्वारा शक के विपरीत सच्चाई से रूबरू कराने के सभी प्रयास निरर्थक साबित होते हैं। इलाज के अभाव में रोगी का पारिवारिक, सामाजिक और व्यावसायिक जीवन गंभीर रूप से अस्त व्यस्त हो जाता है। आइए जानते हैं इस मनोरोग में लक्षण, कारण और उपाय के बारे में—
क्या हैं इसके लक्षण
- हर समय रोगी को शक होता है कि परिजन और संगी-साथी रोगी के खिलाफ हैं और वे कोई साजिश रच रहे हैं।
- रोगी को हर वक्त महसूस होता है कि सभी उसके बारे में बातें करते हैं या उसे घूर रहे हैं।
- रोगी को ऐसा भी लगता है कि जैसे कुछ लोग उसके ऊपर जादू-टोना करवा रहे हैं या फिर उसके खाने में जहर मिलाया जा रहा है।
- रोगी अपने पति या पत्नी के चरित्र व चाल-चलन पर बेबुनियाद ही शक करता है।
- शक के चलते रोगी अपनों से ही कटा-कटा रहता है और अक्सर अपने बचाव में दूसरों के प्रति आक्रामक हो जाता है या बार-बार पुलिस को भी बुला लेता है।
शक होने के ये हैं कारण
- मानसिक बीमारी पैरानोइया स्कीजोफ्रेनिया से ग्रस्त रोगियों में शक के लक्षण सर्वाधिक देखने को मिलते हैं।
- पैरानॉयड पर्सनालिटी डिस्आर्डर रोग से ग्रस्त रोगी स्वभाव से ही शक्की होते हैं। वे हमेशा हर बात के पीछे कोई न कोई रहस्य या साजिश तलाशते हैं।
- शराब, गांजा, भांग व कोकीन का नशा करने से भी शक व वहम स्थायी रूप से पैदा हो जाता है।
- डिमेंशिया व पार्किनसंस रोग से ग्रस्त बुजुर्र्गो में भी शक की बीमारी प्राय: देखी जाती है।
- इन सभी रोगियों के मस्तिष्क में डोपामाइन नामक न्यूरो केमिकल की कमी के चलते ही शक पैदा होता है।
इस तरह करें इलाज
- मस्तिष्क में रासायनिक कमी के चलते इस रोग के इलाज में दवाओं का प्रमुख स्थान है। अब एसी दवाएं उपलब्ध हो चुकी हैं, जिनके सेवन से रोगी को साइड इफेक्ट और आफ्टर इफेक्ट नहीं होते हैं।
- दवाओं के सेवन से दो से तीन हफ्ते में ही रोगी का शक दूर हो जाता है और उसकी सोच और व्यवहार में सुधार होने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
- शक के चलते अक्सर रोगी स्वयं को बीमार नहीं मानते। ऐसे में इस बीमारी के इलाज के लिए परिजनों को ही पहल करनी पड़ती है।
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