डिप्रेशन को कम नहीं, बल्कि ज्यादा बढ़ा रहीं हैं ऐसी दवाएं

बढ़ते तनाव और बिजी दिनचर्या के चलते आजकल लोगों में तनाव और अवसाद की समस्या बहुत ही आम हो गई है।
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डिप्रेशन को कम नहीं, बल्कि ज्यादा बढ़ा रहीं हैं ऐसी दवाएं


बढ़ते तनाव और बिजी दिनचर्या के चलते आजकल लोगों में तनाव और अवसाद की समस्या बहुत ही आम हो गई है। आलम ये है कि अक्सर लोगों को छोटी-छोटी बातों से भी गुस्सा आने लगा है जिस कारण तनाव का स्तर बढ़ता ही जा रहा है। हमारी जिंदगी में ये बढ़ता तनाव हमें मानसिक और शारीरिक रूप दोनों तरह से कमजोर बना रहा है।

पिछले कुछ वर्षों से अवसाद दूर करने वाली दवाओं यानी एंटीडिप्रेजेंट को लेकर काफी शोध हो रहे हैं। इनके साइड इफेक्ट्स को लेकर भी चर्चाएं होती रहती हैं। यहां तक कि डॉक्टर्स भी इन दवाओं को लेकर एकमत नहीं हैं। अवसाद के अलावा कई अन्य बीमारियों में भी एंटीडिप्रेजेंट का प्रयोग किया जा रहा है। कुछ समय पहले एक जापानी संस्था की ओर से भारत में मुंबई, लखनऊ, चंडीगढ़, गुवाहाटी और तिरुवल्ला जैसे पांच शहरों में एक सर्वे किया गया, जिसमें पाया गया कि लगभग 50 फीसदी मरीज डिप्रेशन के बिना एंटीडिप्रेजेंट का सेवन कर रहे हैं। उनके लक्षण डिप्रेशन से मिलते-जुलते हैं, जिस कारण डॉक्टर्स उन्हें ये दवाएं दे रहे हैं। 

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हाल ही में जर्नल ऑफ दि अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन में प्रकाशित एक अध्ययन में भी पाया गया कि लगभग 45 फीसदी मामलों में एंटीडिप्रेजेंट लेने की सलाह अलग बीमारियों में दी जा रही है। माइग्रेन, एंग्जायटी, नव्र्स प्रॉब्लम्स, अटेंशन डिफिशिट हाइपरऐक्टिविटी डिसॉर्डर (एडीएचडी) और क्रॉनिक पेन जैसी स्थितियों में ये दवाएं दी जा रही हैं। इसके अलावा प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम, इनसोम्निया और सेक्सुअल डिस्फंक्शन में भी ये दवाएं दी जा रही हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि कई बार डॉक्टर्स अन्य बीमारियों में ये दवाएं लिख देते हैं। हालांकि इनकी खुराक कम और सीमित समय के लिए तय होती है। लंबे समय तक इनका सेवन करना हानिकारक हो सकता है। 

एंटीडिप्रेजेंट्स ही क्यों 

वर्ष 1950 में पहली बार इन दवाओं के आने के बाद से अब तक कुल चार तरह की अवसाद-रोधी दवाएं उपलब्ध हैं। ये दवाएं दिमाग में केमिकल्स की कार्यप्रणाली को प्रभावित करती हैं, लेकिन डिप्रेशन में इनकी क्या भूमिका है, यह बात अभी पूरी तरह नहीं समझी जा सकी है, इसलिए ये दवाएं सभी मरीजों पर समान रूप से काम नहीं करतीं। ये डिप्रेशन के कुछ लक्षणों में फायदा तो देती हैं लेकिन डिप्रेशन की जड़ पर काम नहीं करतीं। यही वजह है कि इन्हें डिप्रेशन पैदा करने वाले कारणों का इलाज करने वाली दवाओं के साथ दिया जाता है। 

किसी भी ड्रग की ओवरडोज जिंदगी पर भारी पड़ सकती है। पिछले वर्ष पंजाब में पुलिस ने एक एंटीडिप्रेजेंट ड्रग रैकेट पकड़ा था, जिसमें कुछ डॉक्टर्स भी शामिल थे, जो मरीजों को दवाओं की ओवरडोज दे रहे थे। इनमें से कई दवाएं आसानी से उपलब्ध हैं और आत्महत्या करने के लिए इनका सेवन किया जा रहा है। डिप्रेशन, सीजोफ्रेनिया, इनसोम्निया के कई मरीजों में इनकी लत देखी गई है। 

जानें डॉक्टर की राय

एंटीडिप्रेजेंट दवाओं के कई साइड इफेक्ट्स हैं। इनमें नॉजिया, चक्कर, नर्वसनेस, स्लीपिंग डिसॉर्डर, कब्ज , थकान, घबराहट, कमजोरी, मुंह सूखना, सिरदर्द जैसे लक्षण प्रमुख हैं। आगे से ये दवाएं लेने से पहले अपने डॉक्टर से ये बातें जरूर पूछें-

  1. बीमारी से इन दवाओं का क्या संबंध है?
  2. ये कितने समय के लिए दी जा रही हैं और क्या भविष्य में इन्हें बदला जाएगा? 
  3. इनके साइड इफेक्ट्स क्या हैं? बच्चों और प्रेग्नेंट स्त्रियों के लिए क्या खतरा है? 
  4. क्या इनका एडिक्शन भी हो सकता है?
  5. क्या डॉक्टर के पास मेंटल हेल्थ केयर की पूरी ट्रेनिंग है? 
  6. इन दवाओं के साथ कैसा खानपान होना चाहिए और क्या सावधानियां रखनी चाहिए? 
  7. अगर पहले से कोई दवा ले रहे हैं तो डॉक्टर को बताएं ताकि दो दवाओं को साथ लेने से कोई साइड इफेक्ट न हो। 
  8. दवा का जेनरिक नाम क्या है? क्या उसका कोई अन्य विकल्प हो सकता है?
  9. दवा छोडऩे के बाद किसी तरह का नुकसान तो नहीं होगा?

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