सीजोफ्रेनिया एक मानसिक विकृति है, जिसे दुर्भाग्यवश (विशेषकर हमारे देश में) अधिकांश लोग पागलपन कहते हैं। इस रोग में मिथ्या भ्रम, स्वाभाविक सोच जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। कई बार इस रोग को कुछ रूड़ीवादी लोगों द्वारा भूत प्रेत का साया पड़ जाने से भी जोड़ दिया जाता है, जो पूरी तरह दुर्भाग्यपूर्ण और हास्यायपद है। यह रो ग भी बुखार या किसी अन्य स्वास्थ्य समस्या की तरह ही एक समस्या है जिसका समय से चिकित्सकीय परामर्श लेने पर इलाज संभव है। तो चलिये सीजोफ्रेनिया, इसके लक्षणों, कारणों तथा इलाज तथा इसके लक्षणों का सामना करने के तरीकों के बारे में विस्तार से जानें।
दरअसल सीजोफ्रेनिया एक मानसिक बीमारी अर्थात मेंटल डिसआर्डर की स्थिति है, जिसमें पीड़ित व्यक्ति को अक्सर तरह-तरह आवाज़ें सुनाई देती रहती हैं और लगता है सभी लोग उनके ख़िलाफ़ षड़यंत्र रच रहे हैं। यहां तक कि कई बार तो वे खुद को भगवान भी मान लेते हैं।
मानसिक रोग विशेषज्ञ बताते हैं कि सीजोफ्रेनिया किसी को भी और कभी भी हो सकता है। कोई ऐसी मानसिक चोट, जिससे दिमाग को आघात पहुंचे, सीजोफ्रेनिक का कारण बन सकती है। सीजोफ्रेनिया ज्यादातर तब होता है, जब मनुष्य के दिमाग में मौजूद डोपामिन नामक एक केमिकलका का स्राव अधिक होने लगता है। डॉक्टर के अनुसार सीजोफ्रेनिया अनुवांशिक भी हो सकता है। अर्थात यदि परिवार में इस बीमारी का कोई इतिहास हो तो यह आगे चलकर परिवार के किसी दूसरे सदस्य को भी हो सकती है।
सीजोफ्रेनिया के लक्षण
सीजोफ्रेनिया की प्रारंभिक स्थिति में रोगी गुमसुम सा रहता है, और वह अक्सर लोगों पर शक करता है। कई बार वह तो सीजोफ्रेनिया का मरीज आत्महत्या या किसी की हत्या तक का विचार भी करने लगता है। इस स्थिति में उनके सोचने समझने की शक्ति गड़बड़ा जाती है और उनको ल गने लगता है कि कोई उनको आत्महत्या के लिए उकसा रहा है। इस रोग में मरीज़ को हर समय एक डर के साये में जीती है। उसे काफ़ी गुस्सा आता है। सीज़ोफ़्रेनिया से पीड़ित व्यक्ति भ्रम में जीता है और जिन यादों व बातों (काल्पनिक) में वह खोया रहता है, उन्हें ही हकीकत मानने लगता है। फिर भले वह दौर दो-चार सौ साल पुराना ही क्यों न हो। वह अपने बुने भ्रम में फंसता चला जाता है। सोच-समझ, भावनाओं और क्रियाओं के बीच कोई तालमेल नहीं रहता है। इस प्रकार के रोगी को अकेले रहने की आदत हो जाती है। कुछ रोगियों को तो भूत-प्रेत का भी अहसास होने लगता है। इस रोग के ज़्यादा बढ़ जाने पर रोगी की स्थिति विक्षिप्तों जैसी हो जाती है।
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सीजोफ्रेनिया के कारण
हालांकि सीजोफ्रेनिया होने का अभी तक कोई निश्चित कारण तो पता नहीं चल सका है, लेकिन इतना ज़रूर है कि इसकी एक से ज़्यादा वजह जरूर हो सकती है। इसके पीछे आनुवांशिक कारण, मनोवैज्ञानिक कारण, पारिवारिक तनाव, तनावपूर्ण जीवन, सामाजिक, सांस्कृतिक प्रभाव, बचपन में क्षतिपूर्ण विकास या कोई बुरी यादें, गर्भावस्था और प्रसूति के दौरान तकलीफ आदि इसके प्रमुख कारण माने जाते हैं। इसके अलावा ये रोग डिप्रेशन, तनाव तथा किसी बात या घटना से आघात आदि के कारण भी हो सकता है।
सीजोफ्रेनिया का इलाज
रोग के ज्यादा बढ़ जाने पर मरीज़ों को अंत में मेंटल हॉस्पिटल भेजना पड़ता है, लेरिन यदि शुरुआती दौर में ही उपचार शुरू कर दिया जाए तो यह बीमारी पूरी तरह ठीक हो सकती है। ऐसे मामलों की पुष्टी होने पर मरीज़ों के साथ बेहतर व्यवहार किया जाना चाहिए। उन्हे बार-बार मानसिक रोगी होने का अहसास कराकर तनाव नहीं दिया जाना चाहिए। उन्हें ठीक से सुनना चहिए और उसी के अनुसार बातचीत कर उसे संतुष्ट करना चाहिए। उचित चिकित्सक व परामर्श के साथ ही निश्चित समय पर दवा वगैरह देते रहना चहिए। इस रोग को एंटीसाईकोटिक दवाओं, इंजेक्शन, ईसीटी से दूर किया जा सकता है। उचित इलाज मिलने पर सीजोफ्रेनिया का मरीज जल्द ही सामान्य जीवन जी सकता है। हालांकि रोग ठीक होने के बाद ये दोबारा भी हो सकता है।
हां योग के माध्यम से भी सीजोफ्रेनिया के लक्षणों में कमी लाई जा सकती है। एक शोध में शोधकर्ताओं ने कुछ ऐसे लोगों पर अध्ययन किया, जो नियमित रूप से योग करते थे। शोध के दौरान उन्होंने पया कि सीजोफ्रेनिया के रोगियों पर योग का सकारात्म प्रभाव हुआ और उनकी समस्या में कमी आई।
चिकित्सकों का मानना है कि भाग दौड़ भरी जिंदगी में लोगों प र काम का शारीरिक से ज्यादा मानसिक दबाव हो गया है। ऐसे में कई बार व्यक्ति पर गहरा तनाव हावी हो जाता है। जिस कारण लगों में कई बार इस रोग के लक्षण उभर आते हैं। चिकित्सकों का कहना है कि इस रोग के प्रति गंभीर सोच होना बेहद जरूरी है। इसलिए इस रोग से संबंधित लक्षण दिखने पर चिकित्सक से तत्काल संपर्क करना चाहिए।
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