मनीषा बहुत खुश थी और सोमवार को खुशी-खुशी ऑफिस के लिए घर से निकली। लेकिन रास्ते में दूसरी बस में बैठ जाने के कारण ऑफिस से थोड़ी दूर दूसरी जगह पहुंच गई। वहां से वो जल्दी-जल्दी में ऑटो लेकर ऑफिस बीस मिनट लेट से पहुंची। अब वो बहुत बुरी तरह उदास हो गई। उसने सोचा था कि 9 से 6 की शिफ्ट कर लेगी लेकिन अब उसे फिर साढ़े छह बजे तक ऑफिस में रुकना पड़ेगा और फिर मिलेगा ट्रैफिक। यही सोच सोचकर वो पूरे दिन उदास रही और उसके टीम में होने वाली पार्टी में भी शामिल नहीं हो पाई। ऐसा क्यों होता है आइए इसके बारे में इस लेख में जानें।
दुख से बदल जाता है नजरिया
ये इंसान का व्यवहार है। वो आने वाली अच्छी चीजों जैसे की पार्टी को देखता नहीं, केवल जो हो गया है उसके बारे में सोच-सोच कर दुखी होते रहेगा। सुहर की एक छोटी सी घटना मनीषा के पूरे दिन को जिस तरह से बेकार कर दिया था। उसी तरह इंसान के जिंदगी की भी कोई छोटी सी घटना उसके पूरे जिंदगी और दुनिया के देखने के नजरिये को बदल देता है। इन सबके पीछे मनोवैज्ञानिक कारणों के अलावा और कोई कारण नहीं होता। इन सब स्थितियों में एक चीज ही अच्छा एहसास दिला सकती है औऱ वो है कोई चाही हुई चीज का पूरा हो जाना।
इस दुख से नजरिये पर पड़ता है कुछ यूं असर
- पूरे दिन हम दुखी रहते हैं। कोई अच्छी चीज भी होती है तो भी उसमें शामिल नहीं हो पाते।
- पूरा दिन बेकार जाता है। अपने आपको दुनिया के सबसे बदकिस्मत इंसान समझते हैं। जबकि उस समय कुछ लोगों के नजर में सबसे किस्मत वाले इंसान होते हैं।
- आस-पास के लोगों की खुशी में भी अपना दुख का छोंक लगा देते हैं अपनी बात बता कर दुखी होकर।
क्या करें ऐसे समय
- जो हो गया है सो हो गया। अब दुखी होने से क्या फायदा। गया समय वापस नहीं आएगा। तो एक छोटी सी बीस मिनट की घटना से अपने पूरे दिन के चौबिस घंटे क्यों बेकार करें।
- खुश होने का समय वो भी सबके सथ कम ही मिलता है। तो जी लो इस पल को।
Image Source @ Getty
Read More Articles on Mental Health in Hindi
How we keep this article up to date:
We work with experts and keep a close eye on the latest in health and wellness. Whenever there is a new research or helpful information, we update our articles with accurate and useful advice.
Current Version