पिता बनना किसी भी पुरुष के जीवन के लिए कमाल का अहसास होता है। जब कोई पुरुष पहली बार पिता बनता है, तो उसके दिल में भावनाओं का सैलाब जैसा उमड़ पड़ता है। और उनके जीवन में कई सारे बदलाव आते हैं, फिर चाहे वे मानसिक बदलाव हों या जीवनशैली में आने वाले बदलाव। आइये इस लेख के माध्यम से जानते हैं पुरुषों में क्या बदलाव लाता है पितृत्व।
पिता बनने पर कई मिली-जुली भावनाएं पुरुषों को पितृत्व का मजबूत अहसास कराती हैं। लेकिन कई पुरुष ऐसे भी होते हैं, जिन्हें पिता बनने से डर लगता है। उन्हें डर लगा रहता है कि आखिर वे अपनी और अपने परिवार की देखभाल कैसे करेंगे। अधिकांश पुरुषों के जेहन में अक्सर यह सोच रहती है कि पितृत्व की जिम्मेदारियां निभाने में उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। उन्हें लगता है कि वे आखिर कैसे इस काम को कर पाएंगे। और भला हो भी क्यों ना वास्तविकता भी है कि पिता बनने पर किसी पुरुष की जिम्मेदारियां पहले की अपेक्षा कई गुना बढ़ जाती हैं। जबकि इसके उलट एक सत्य यह भी है कि गर्भावस्था से लेकर बच्चे को जन्म देने तक मां को ही विशेष महत्व मिलता है।
बेशक शिशु के जन्म में मां का योगदान बड़ा होता है और इसे नकारा नहीं जा सकता, लेकिन इस पूरी यात्रा में पिता का भी योगदान महत्वपूर्ण होता है। पिता बनने का डर एक भाग हो सकता है, लेकिन पिता के हृदय में उत्सुकता और चिन्तायें अवश्य होती हैं। फिर भले ही वह इसे सबके सामने जाहिर नहीं करता। और जब शिशु जन्म लेता है तो पुरुष के जीवन में बदलावों की शुरुआत हो जाती है। आइये जानते हैं क्या हैं पुरुषों में पितृत्व के कारण आने वाले बदलाव।
व्यवसाय / नौकरी और परिवार के बीच सामंजस
किसी पिता के लिए काम और घर के बीच संतुलन बनाकर रखना सबसे बड़ी चुनौती होती है। सम्भावित पिताओं को इस बात का हमेशा भय रहता है कि काम की व्यस्तता के साथ परिवार के साथ पर्याप्त समय कैसे बिताया जाए। वे इस दुविधा में रहते हैं कि कहीं वे परिवार की वजह से काम को ठीक से नहीं कर पायेंगें या फिर काम की अधिकता के चलते बच्चे के साथ के खास पलों में साथ रह पायेंगे कि नहीं।
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शिशु की सुरक्षा का डर
किसी संभावित पिता को इस बात का सदैव कुछ डर सताते रहते हैं, जैसे- वह बच्चे को सही ढंग से पकड़ सकेगा या नहीं, उसके डाइपर कैसे बदल पायेगा, उसकी सुरक्षा सुनिश्चित कर पाएगा या नहीं और घर को बच्चे की सुरक्षा व्यवस्थित कर पाएगा या नहीं आदि। और इस प्रकार के डर सामान्य और वास्तविक भी हैं। लेकिन इनका दूसरा पहलू भी है। शिशु की सुरक्षा के प्रति ये डर पिता को स्वतः ही कई चीजें सिखा देता है।
आर्थिक समस्याओं का डर
शिशु के जन्म के पूर्व अक्सर पुरुषों को इस बात का डर सताता है कि क्या वे अपने परिवार को आर्थिक रूप से संभाल पाएंगे या नहीं। या किसी आर्थिक समस्या के आजाने की स्थिति में वे बच्चे की अच्छी परवरिश और शिक्षा कर पाएंगे या नहीं। पुरुष इस बात को लेकर भी चिंतित रहते हैं कि शिशु के जन्म पर पत्नी के काम छोड़ देने की स्थिति में वे पर्याप्त धन कमा पाएंगे या नहीं। यह डर जायज भी है क्योंकि कई परिवारों में बच्चे के जन्म के साथ अचानक, अस्थायी ही सही, दो लोगों के लिए दो आय को स्रोतों से तीन लोगों के लिये एक आय स्रोत ही बचना चिंता का विषय है। हालांकि इस मामले में मध्यम वर्ग की तुलना में धनवान लोग थोड़े कम चितिंत होते हैं।
वैवाहिक जीवन पर असर
बच्चे का जन्म पिता के जीवन को निश्चित ही बदल देता है और इस बदलाव को जीवनसाथी के गर्भावस्था के दौरान ही देखा जा सकता है। जब शिशु छोटा होता है और उसे मां के साथ और ध्यान की ज्यादा आवश्यकता होती है तो काफी थक जाने का वजह से आपकी साथी पूर्व की तरह अंतरंग नहीं हो पातीं। इस बात का असर पिता की सोच और व्यवहार पर पड़ सकता है। लेकिन यह स्थिति समय के साथ बदल जाती है, और वापस सामान्य हो जाती है।
कुछ अध्ययनों से भी पता चलाता है कि पिता बनने के साथ आदमी की कुछ बुरी आदतें भी छूटने लगती हैं। अध्ययन बताते हैं कि पिता बनने के बाद धूम्रपान, शराब और अन्य बुरी लतें छूटने की संभावना पहले के मुकाबले बढ़ जाती है। पहली बार पिता बनने वाले व्यक्ति अपराध, धूम्रपान, तम्बाकू और शराब से दूर रहने की कोशिश करते हैं। कुछ शोध बताते हैं कि पिता बनने के बाद पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन हार्मोन (कामभावना को बढ़ने वाला हार्मोन) के स्तर में कमी आती है। जिसकी वजह से पुरुष शारीरिक संबंधों में भी कम रुचि लेने लगते हैं। विशेषकर वे पुरुष नवजात शिशुओं के पिताओं में टेस्टोस्टेरोन हार्मोन न्यूनतम रह जाता है।
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