जानें स्मार्टफोन से कैसे बदल रही है बच्चों की साइकोलॉजी

तकनीक ने चीजें आसान की हैं लेकिन इसका असर स्‍वास्‍थ्‍य पर सबसे अधिक पड़ा, आइए हम आपको बताते हैं कैसे स्‍मार्टफोन के प्रयोग से बच्‍चों की भावनायें बदल गई हैं।
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जानें स्मार्टफोन से कैसे बदल रही है बच्चों की साइकोलॉजी

बच्चे उम्र से पहले बड़े हो रहे हैं। उनमें बचपना नहीं बचा। बच्चे उम्र से ज्यादा समझदार बन गए हैं। आपने ये बात हर किसी के मुंह से सुनी होगी और बच्चों के व्यवहार में ये सारी चीजें अनुभव भी की होंगी। लेकिन क्या कभी किसी ने इसके पीछे के कारणों को जानने की कोशिश की है। पिछले कुछ सालों में बच्चों की पूरी साइकोलॉजी बदली है जिस पर बातें तो खूब हो रही हैं लेकिन कारण किसी ने जानने की कोशिश नहीं की और ना कर रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण बच्चों के हाथ में आए स्मार्टफोन हैं। आपने कभी बच्चों को स्मार्टफोन में बात करते हुए नोटिस किया है। धीरे-धीरे उनकी आदतें बदल रही हैं। वो बिल्कुल बड़ों की तरह बातें कर रहे हैं।
child with smartphone

दिन में 150 बार स्क्रीन देखना

ब्रिटेन की एक स्टडी के अनुसार 11 से 12 साल के 70 प्रतिशत बच्चे  स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं औऱ ये प्रतिशत 90 तक पहुंच जाता है जब 14 के उम्र तक के बच्चों को इस स्टडी में शामिल किया जाता है। वहीं दूसरी ओर हाल ही के पब्लिकेशन में ये बात नोटिस की थी कि 10-13 साल के बच्चों के पास अपना स्मार्टफोन होता है। इनमें से अधिकतर बच्चे कम से कम 150 बार पूरे दिन में स्क्रीन देखते हैं। इस कारण बच्चों का गार्डेन, बास्केटबॉल और खिलौनों से रिश्ता टूट गया है। अब बच्चे सुबह उठने के बाद बैग संभलाने की तैयारी के जगह स्मार्टफोन चेक करते हैं।

स्मार्टफोन और साइकोलॉजी

इन आंकड़ों से साफ पता चलता है कि बच्चों की टेक्नॉलॉजी पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। जिन बच्चों के पास स्मार्टफोन नहीं है वे अपने दोस्तों की देखा-देखी अपने अभिभावकों से स्मार्टफोन मांग रहे हैं। अब अगर बच्चे पोर्न या सनी लियोन के बारे में पूछते हैं तो अवाक होने की जरूरत नहीं। ये उनके लिए साधारण सी बात है।

कनेक्शन हो रहा कम

स्मार्फोन और इंटरनेट ने बच्चों की  कम्यूनिकेशन स्कील और इमोशनल डेवलपमेंट को भी प्रभावित किया है। स्मार्टफोन के उपयोग से बच्चे मॉ़डर्न और स्मार्ट तो बन रहे हैं लेकिन खुद उनके अभिभावको से उनका कनेक्शन कम हो रहा है।

रेडिएशन से प्रभावित हो रहा दिमाग

स्मार्फोन से निकलने वाला रेडिएशन शरीर के लिए खराब होता है और इसका सबसे ज्यादा असर दिमाग पर पड़ता है। लेकिन अभिभावकों का मानना है कि इन टेक्नोलॉजी के जरिये उन्हें बच्चों की सुरक्षा से थोड़ी निश्चिंतता मिली है। लेकिन यही निश्चिंतता उन्हें बच्चों से भी दूर ले जा रही है।

कम्यूनिकेशन में नहीं है इमोशन

स्टडी के अनुसार बच्चे सबसे अधि फेस-टू-फेस कम्यूनिकेशन से सीखते हैं। लेकिन जब मां-बाप से ही कम्यूनिकेशन ना हो तो बच्चे सीखें कैसे। ऐसे में मां-बाप फोन में जैसे बात करते हैं उन्हें देखते हुए वे वैसे ही बात करते हैं। जिससे बच्चों में बड़ों की तरह व्यवहार करने की आदत को देखा जा रहा है।



Image Source @ Getty

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