मानव कान एक नाजुक और पेचीदा मशीन है। हालांकि यह हमारे शरीर को संतुलित रखने का काम भी करती है, लेकिन इसका मुख्य काम आवाज को पहचानना और सुनना है। दुर्भाग्य की बात है कि वातावरण में मौजूद तेज आवाजें हमारे कान के संवेदनशील ढाचें को प्रभावित कर सकती हैं। इन आवाजों के असर से अस्थायी अथवा स्थायी रूप से हमारे सुनने की क्षमता पर विपरीत असर पड़ता है।
कैसे सुनते हैं हम आवाजें
हमारा कान वातावरण में मौजूद ध्वनि तरंगों को पकड़कर उन्हें सिगनल में बदलकर मस्तिष्क तक भेजता है। ध्वनि तरंगें कान की नलिकाओं से होते हुए ईयरड्रम तक जाती हैं, जहां वे कंपन उत्पन्न करती हैं। यह कंपन तीन छोटी हड्डियों से होता हुआ मध्य कान तक जाता है, जो उन्हें एम्प्लीफाई करके कोचलिया तक भेजता है। यह हिस्सा खास द्रव्य से भरा होता है। यह द्रव्य एक इलास्टिक झिल्ली के नीचे होता है, जिसे बासिलर कहा जाता है। मध्य कान में होने वाला ध्वनि कंपन से यह द्रव्य लहराने लगता है जिससे बासिलर सक्रिय हो जाता है। इसके हिलने से संवेदनशील कोशिकायें भी हिलने लगती हैं, जिससे विद्युत तरंगें उत्पन्न होती हैं, जिन्हें ऑडिटरी नर्व पकड़कर मस्तिष्क तक भेज देती हैं।
कैसे होता है नुकसान
सुनने की क्षमता नष्ट होने का सबसे सामान्य कारण उम्र होती है। इसके साथ ही तेज आवाज के कारण भी कान के अंदरूनी हिस्से को नुकसान होता है। अचानक तेज आवाज, जैसे बम धमाका, गोली की आवाज अथवा किसी पटाखे की आवाज से कान की सुनने की क्षमता को नुकसान होता है। यह नुकसान स्थायी और अस्थायी दोनों प्रकार का हो सकता है। इसके अलावा तेज संगीत अथवा किसी अन्य बहुत तेज आवाज से भी कान की कार्यप्रणाली पर विपरीत असर पड़ता है।
तेज आवाज के नुकसान
अधिक लंबे समय तक तेज आवाज में रहने से धीरे-धीरे कान के बेसिलर में मौजूद संवेदनशील कोशिकाओं को गहरा नुकसान पहुंचने लगता है। यदि इन कोशिकाओं को एक बार नुकसान पहुंच जाए, तो फिर उन्हें दोबारा ठीक नहीं किया जा सकता। तेज आवाज कोचलियर नर्व को भी नुकसान पहुंचाती है, जिससे मस्तिष्क को ध्वनि तरंगें सही प्रकार नहीं मिल पातीं। अमेरिका स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑन डिफेंस एंड अदर कम्यूनिकेशन डिस्ऑर्डर (एनआईडीसीडी) का कहना है कि लंबे समय तक 75 डेसिबल से नीचे की आवाजें आमतौर पर सुरक्षित मानी जाती हैं। हालांकि 85 डेसिबल या उससे ऊपर की आवाजें हमारे कान को काफी नुकसान पहुंचा सकती हैं।
सामान्य भाषा में कहें तो आम बातचीत के दौरान आवाज का स्तर 60 डेसिबल होता है और वहीं भारी ट्रैफिक में यह स्तर बढ़कर 85 डेसिबल तक हो जाता है। वहीं पटाखे, बंदूक की गोली की आवाज और रॉक कॉन्सर्ट में यही स्तर 110 से 150 तक के खतरनाक स्तर तक भी पहुंच सकता है।
कैसे पहचानें
अगर आपको अपनी आवाज सुनायी नहीं देती, या फिर महज दो फुट की दूरी पर खड़े किसी व्यक्ति की आवाज आप तक नहीं पहुंचती, तो आपको अपने कान की जांच करानी जरूरी है। इसके साथ ही अगर आवाज के साथ आपको शोर सुनायी देता है या फिर आवाज साफ नहीं आ रही तो वक्त आ गया है कि आप अपने कानों की जांच किसी विशेषज्ञ से करवा लें। यह इस बात का संकेत है कि आप खतरनाक स्तर तक पहुंच चुके हैं। इसके साथ ही कान में दर्द और लगातार होने वाली झनझनाहट भी इस बात का संकेत है कि आपके कान सही प्रकार से काम नहीं कर रहे हैं। अगर आपको ऐसा अहसास होता है कि आपके कान लगातार ऊंची आवाज के आदी हो चुके हैं, तो इसका अर्थ यह है कि आपके कानों को पहले से ही नुकसान हो चुका है। समस्या यह है कि अधिकतर लोगों को कानों के नुकसान के बारे में तब तक पता नहीं चलता, जब तक वे इसकी जांच ही नहीं करवाते।
कैसे बचें
आवाज के कारण कानों को होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है। अगर आप शोर-शराबे वाले वातावरण में काम करते हैं, तो अपने कानों को नुकसान से बचाने के लिए काम के दौरान ईयरप्लग अथवा हैडफोन पहनकर रखें। इसके साथ पटाखे छुड़ाते समय अथवा किसी कॉन्सर्ट में जाते समय भी आपको अपने कानों की सुरक्षा के उपाय आजमाने चाहिए। अपने बच्चों के कानों को बचाने के लिए आपको उन्हें ऐसे खिलौने देने चाहिए जिनकी आवाज बहुत अधिक न हो।