
जीवनशैली का हमारे स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। आजकल लोगों का ज्यादातर समय कंप्यूटर पर काम करने, मोबाइल का इस्तेमाल करने या टेलीविजन देखने में गुजरता है। यानि दिन के ज्यादातर समय हमारी आंखें किसी न किसी स्क्रीन के सामने ही होती हैं। स्क्रीन वाले सभी डिवाइसेज से आंखों पर बहुत दबाव पड़ता है, जो कई बार आंखों के लिए परेशानी खड़ी कर सकता है। हममें से ज्यादातर लोग इस तरफ ध्यान नहीं देते जिससे ये परेशानियां बढ़ती जाती हैं और गंभीर रूप ले लेती हैं। इससे आपके आंखों की रोशनी भी जा सकती है। ग्लूकोमा ऐसी ही एक बीमारी है, जो आंखों पर बढ़ते दबाव की वजह से हो जाती है। इसे हिंदी में काला मोतियाबिंद कहते हैं।
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क्या होता है ग्लूकोमा
ग्लूकोमा की मुख्य वजह आंखों पर रोजाना पड़ने वाला दबाव है। इसमें आंख के अंदर का पानी धीरे-धीरे बढ़ने लगता है, जिसकी वजह से चीजें धुंधली दिखाई देने लगती हैं और धीरे-धीरे बिल्कुल दिखना बिल्कुल बंद हो जाता है। हमारी आंखों में लेंस के आगे इंटीरियर चैम्बर होता है, जिसमें एक खास तरह का लिक्विड भरा होता है जिसे एक्वस ह्यूमर कहते हैं। ये एक्वस ह्यूमर लेंस और कॉर्निया के बीच संवाहक का काम करता है। किसी वजह से जब इसका बहाव रूक जाता है या ये जमने लगता है, तो आंखों पर दबाव बढ़ने लगता है। ये दबाव आपकी आंखों के ऑप्टिक नर्व को भी नुकसान पहुंचा सकता है। ऑप्टिक नर्व एक तरह की नसों का समूह है जो हमारे दिमाग तक चित्र पहुंचाती हैं, जिसकी वजह से हम चीजों को देख पाते हैं। कई बार ग्लूकोमा अनुवांशिक भी होता है। ग्लूकोमा का ज्यादातर खतरा 40 की उम्र के बाद होता है लेकिन आजकल ये छोटे बच्चों को भी हो रहा है, जिसकी वजह बचपन से ही गैजेट्स का दिन-रात इस्तेमाल है।
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ग्लूकोमा के लक्षण और इलाज
ग्लूकोमा के कई लक्षण हैं जिनसे आपको सावधान रहने की जरूरत है। धुंधला दिखना, आंखों का लाल होना, आंखों में दर्द होना, किसी घेरे के अंदर ही वस्तुओं का दिखाई देना आदि ग्लूकोमा के कई लक्षण हैं। कई बार ये लक्षण नहीं भी दिखते तब भी ग्लूकोमा हो जाता है। ऐसे में अचानक से आंखों की रोशनी जा सकती है और अंधापन हो सकता है। ग्लूकोमा होने पर या इसके किसी भी लक्षण के दिखने पर आपको तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। आजकल आंखों के आसान से ऑपरेशन द्वारा इसका इलाज संभव है। इसमें दवा द्वारा आंखों की पुतलियों को बड़ा किया जाता है और फिर जांच द्वारा ग्लूकोमा के कारणों का पता लगाया जाता है। जांच के लिए आंखों के चैम्बर की आगे और पीछे से जांच की जाती है जिससे इसके अंदर के प्रेशर का पता लगाया जा सके।
आंखों का इस तरह रखें खयाल
- ग्लूकोमा का इलाज अगर ठीक समय से किया जाए, तो आंखों को होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है।
- ध्यान रखें कि दो साल में एक बार आंखों की जांच जरूर करवाएं।
- अगर किसी बीमारी का पता चलता है तो ये जांच और जल्दी-जल्दी करवानी चाहिए।
- आंखों पर अनावश्यक दबाव न डालें।
- दिनभर कंप्यूटर या मोबाइल की स्क्रीन देखने के बजाय कुछ देर प्रकृति को निहारें, इससे आपकी आंखों को सुकून मिलेगा।
- तनाव से भी आंखों पर बोझ पड़ता है और नींद प्रभावित होती है।
- स्वस्थ आंखों के लिए पर्याप्त नींद जरूरी है।
- खेल कूद के दौरान बच्चों के आंखों की सुरक्षा का पूरा खयाल रखें।
- डाइबिटीज, कोलेस्ट्रॉल और हाई बीपी भी ग्लूकोमा का कारण बन सकते हैं इसलिए इन पर नियंत्रण जरूरी है।
- चाय-काफी का ज्यादा इस्तेमाल भी हो सकता है नुकसानदेह
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