दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में कार्यरत चिकित्सक ने हर्निया की सर्जरी के लिए नई तकनीक ढूंढ़ निकाली है। यह तकनीक न केवल सस्ती है, बल्कि केवल 5 एमएम के 3 की-होल बनाकर यह सर्जरी की जा सकती है। अब तक इस तकनीक की मदद से 100 से ज्यादा सर्जरियां की जा चुकी हैं। खोज करने वाले मनीष कुमार गुप्ता ने सर्जरी की इस नई तकनीक को '555 मनीष टेक्निक' नाम दिया है।
उन्होंने बताया कि ग्रोइन हर्निया की सर्जरी के लिए पहले ओपन सर्जरी की जाती थी। बाद में लेप्रोस्कोपी, यानी दूरबीन की मदद से सर्जरी की जाने लगी। अब तक की जाने वाली सर्जरी में चौड़े हसन ट्रोकार का इस्तेमाल करते हुए हर्निया तक पहुंचा जाता था। हसन ट्रोकार के लिए नाभि के नीचे 1.5 से 2 सेंटीमीटर का कट लगाया जाता था।
2 मिनट में सर्जरी प्वाइंट का पता चलता है
डॉ. मनीष ने कहा कि बड़े चीरे की वजह से उत्तकों को ज्यादा नुकसान होता है। साथ ही चीरा बड़ा होने के कारण संक्रमण की आशंका अधिक होती है। बड़े चीरे के कारण मरीज को दर्द अधिक होता है और नाभि के नीचे बड़ा निशान आ जाता है। मनीष ने 2 एमएम की सीरींज से र्रिटेक्टर बनाया है, जिसकी मदद से 5 एमएम के चीरे से 5 एमएम के ट्रोकार को पेट की सतह में डालना संभव हुआ है। सर्जन केवल दो मिनट में सर्जरी पॉइंट तक पहुंच जाता है।
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दोबारा हार्निया का खतरा कम
उन्होंने बताया कि इस नई तकनीक से 3 पांच एमएम के छिद्रों से ग्रोइन हर्निया का सफल ऑपरेशन किया जाता है। मनीष ने साथ ही 5 एमएम के ट्रोकार से मेश (जाली) डालने की तकनीक भी इजात की है, जिससे हर्निया दोबारा होने की संभावना 1 फीसदी से भी कम हो जाती है।
मरीज को नहीं होता कोई नुकसान
इस प्रक्रिया में पेट की दीवार में टांके नहीं लगाने पड़ते, जबकि पुरानी प्रक्रिया में हसन ट्रोकार के चैड़े कोन डालने के कारण पेट की भीतरी दीवार में टांके लगाने पड़ते हैं। इस नई तकनीक में छोटे चीरे लगाने से दर्द कम होता है। संक्रमण की आशंका कम होती है और निशान भी बहुत छोटा आता है, जोकि महिलाओं के लिए उपयुक्त है।
5 एमएम का छेद कर करते हैं सर्जरी
इस तकनीक को दुनिया भर के चिकित्सकों ने स्वीकार किया है और वे भी इस तकनीक को अपनाएंगे। चिकित्सक ने कहा कि हर्निया कई प्रकार के होते हैं। इसमें से 50 पर्सेट ग्रोइन हर्निया होता है, जो पॉकेट एरिया में बनता है। इसके लिए नाभि के नीचे छेदकर सर्जरी की जाती है। इस तकनीक से सर्जरी काफी सरल और आसान हो गई है।
पुरानी तकनीक में 12 एमएम का एक छेद किया जाता था और फिर दो 5 एमएम के छेद किए जाते थे। अब तक इस्तेमाल होने वाले हसन ट्रोकार में सर्जरी पॉइंट तक पहुंचने में 8 से 10 मिनट लगते हैं और ट्रोकार का ट्रैक देखना भी संभव नहीं है। नई तकनीक में केवल 5 एमएम के तीन छेद किए जाते हैं। इसमें सर्जन अंदर ट्रैक देख सकता है।
IANS
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