
अगर किसी महिला के रक्त में हीमोग्लोबिन का लेवल 12 और पुरुष में 13 ग्राम से कम हो, तो उसे एनीमिया से ग्रस्त माना जाता है। वैसे तो पुरुषों में भी एनीमिया के लक्षण पाए जाते हैं पर स्त्रियों को यह समस्या ज्य़ादा परेशान करती है। दरअसल मासिक चक्र के दौरान अधिक रक्तस्राव इसकी प्रमुख वजह है। इसके अलावा पारिवारिक जि़म्मेदारियों के कारण अधिकतर स्त्रियां अपनी सेहत और खानपान पर ध्यान नहीं देतीं, जिसकी वजह से उनके शरीर में खून की कमी हो जाती है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जागरूकता के अभाव में आज भी कुछ लोग बेटियों के पोषण पर ध्यान नहीं देते, जिससे स्कूली छात्राओं के शरीर में खून की कमी हो जाती है। एनीमिया को अकसर लोग निर्धनता से जोड़कर देखते हैं, जबकि कई बार शहरों में रहने वाली शिक्षित स्त्रियां भी रक्ताल्पता से ग्रस्त होती हैं।
नेशनल हेल्थ फैमिली सर्वे के मुतबिक, अगर 2016 की बात करें तो भारत में 58.6% बच्चे, 53.2% गैर-गर्भवती महिलाएं और 50.4% गर्भवती महिलाएं एनीमिक पाई गईं। भारत 50 वर्षों से एनीमिया नियंत्रण कार्यक्रम होने के बावजूद बीमारी का सबसे अधिक बोझ वहन करता है।
यह समस्या किसी स्त्री के जीवन को किस तरह प्रभावित करती है?
एनीमिया के कारण लड़कियों का शारीरिक और बौद्धिक विकास सही ढंग से नहीं हो पाता। इससे उनमें ध्यान केंद्रित करने की क्षमता कमज़ोर हो जाती है, जिसका परीक्षा के रिज़ल्ट पर बुरा असर पड़ता है। इसी वजह से ज़रूरतमंद वर्ग की लड़कियां हाई स्कूल में ही पढ़ाई अधूरी छोड़ देती हैं। जागरूकता के अभाव में अभिभावक और शिक्षक समस्या की असली वजह समझे बिना बच्चियों को मंदबुद्धि और पढ़ाई के मामले में लापरवाह समझने लगते हैं। शरीर में खून की कमी होने के कारण स्त्रियों के व्यवहार में चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है।
गर्भावस्था के दौरान किसी स्त्री के शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर कितना होना चाहिए?
प्रेग्नेंसी के दौरान स्त्री के यूट्रस और उसके आसपास हिस्सों का तेज़ी से वॉल्यूम एक्सपेंशन हो रहा होता है। साथ ही गर्भस्थ शिशु को भी मां के शरीर से ही आहार मिलता है। इसीलिए प्रेग्नेंसी के तीसरे चरण में स्त्री के हीमोग्लोबिन के स्तर में 1-2 ग्राम की गिरावट आ जाती है। इसीलिए कंसीव करने से पहले स्त्री के शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर 12 ग्राम से अधिक होना चाहिए और सभी स्त्रियों को शादी के बाद हर तीन महीने के अंतराल पर सीबीसी यानी टोटल ब्लड काउंट टेस्ट ज़रूर करवाना चाहिए।
एनीमिया की वजह से गर्भावस्था में क्या दिक्कतें हो सकती हैं?
इससे मिसकैरेज की आशंका बढ़ जाती है। गर्भस्थ शिशु का ब्रेन सहित पूरे शरीर का विकास सही ढंग से नहीं हो पाता, प्रीमैच्योर डिलीवरी या जन्म के समय शिशु के मौत आशंका बढ़ जाती है।
एनीमिया के लक्षणों की पहचान कैसे करें?
अकसर थकान, कमज़ोरी, आंखों के आगे अंधेरा छाना, चक्कर आना, निस्तेज त्वचा, हमेशा नींद आना, आंखों का भीतरी हिस्सा ज्य़ादा सफेद नज़र आना आदि। सामान्य स्वस्थ व्यक्ति की हथेलियों, तलवों और नाखूनों में हल्का गुलाबीपन होता है लेकिन एनीमिया होने पर इन हिस्सों की रंगत बिलकुल सफेद पड़ जाती है।
एनीमिया से बचाव के लिए क्या करना चाहिए?
अपनी डाइट में केला, सेब, अनार, खजूर, गुड़, मूंगफली, बादाम, चना, गाजर, चुकंदर के अलावा हरी पत्तेदार सब्जि़यों को प्रमुखता से शामिल करें। हमेशा लोहे की कड़ाही में सब्जि़यां पकाएं, इससे भोजन में आयरन की मात्रा बढ़ जाती है। हरी सब्जि़यों को काटने के बाद न धोएं, इससे उससे पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं।
शरीर को सही ढंग से आयरन का प्रदान करने के लिए क्या खाएं?
शरीर में आयरन का अवशोषण सही ढंग से हो इसके लिए आयरन युक्त खाद्य पदार्थों के साथ संतरा, नींबू, चकोतरा और मौसमी जैसे खट्टे फलों का सेवन अवश्य करना चाहिए। आयरन के साथ कैल्शियम का इस्तेमाल न करें। इससे ये दोनों ही तत्व शरीर को पर्याप्त पोषण नहीं दे पाते। आयरनयुक्त फलों या सब्जि़यों के साथ किसी भी मिल्क प्रोडक्ट का सेवन नहीं करना चाहिए। कोशिश यही होनी चाहिए कि फल या हरी पत्तेदार सब्जि़यां खाने के दो घंटे पहले या बाद में दूध-दही जैसे पदार्थों का सेवन किया जाए।
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डायबिटीज में आयरन कैसे प्राप्त करें?
ऐसी स्थिति में जूस पीने के बजाय सीमित मात्रा में खट्टे फलों को अपनी डाइट में शामिल करें। खजूर और गुड़ न खाएं लेकिन चना, राजमा, बादाम, मूंगफली, रागी के अलावा सभी हरी पत्तेदार सब्जि़यां आयरन और प्रोटीन से भरपूर होती हैं। इनका सेवन दोनों समस्याओं को नियंत्रित करने में मददगार होता है।
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इसका उपचार कैसे होता है?
आमतौर पर डॉक्टर आयरन सप्लीमेंट लेने की सलाह देते हैं। गंभीर स्थिति में आईवी (इंट्रावेनस) मेडिसिन के ज़रिये भी आयरन का डोज़ दिया जाता है, जिससे हीमोग्लोबिन का स्तर सामान्य हो जाता है लेकिन एक्सपर्ट की सलाह के बगैर आयरन सप्लीमेंट का सेवन न करें।
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