इरिटेबल बाउल सिंड्रोम आंतों का रोग है जिसमें पेट में दर्द, बेचैनी व मल-निकास में परेशानी आदि होते हैं। यह आंतों को खराब तो नहीं करता लेकिन उसके संकेत देने लगता है। यह बात तो शायद हम सभी जानते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि परेशानी भरे बचपन की वजह से इरिटेबल बाउल सिंड्रोम होने की संभावना बढ़ जाती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इस तरह के सिंड्रोम वाले लोगों में आंत और दिमाग के बीच में संबंध पाया गया है।
शोध के निष्कर्षो से पता चलता है कि दिमाग से पैदा हुए संकेतों से आंत में रहने वाले जीवाणुओं पर प्रभाव पड़ता है और आंत के केमिकल्स दिमाग की संरचना को आकार दे सकते हैं। दिमाग के संकेतों में शरीर की संवेदी जानकारी की प्रोसेसिंग शामिल होती है। न्यूजवीक से लॉस एंजिल्स-कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के ईमरान मेयर के अनुसार, “आंत के जीवाणुओं के संकेत संवेदी प्रणाली विकसित करने के तरीके को आकार देते हैं।”
मेयर ने पाया, “गर्भावस्था के दौरान बहुत सारे प्रभाव शुरू होते हैं और जीवन के पहले तीन सालों तक चलते हैं। यह आंत माइक्रोबॉयोम-ब्रेन एक्सिस की प्रोग्रामिंग है।” शुरुआती जीवन की परेशानी दिमाग के संरचनात्मक और क्रियात्मक बदलावों से जुड़ी होती है और पेट के सूक्ष्मजीवों में भी बदलाव लाती है।
यह भी संभव है कि एक व्यक्ति की आंत और इसके जीवाणुओं को संकेत दिमाग से मिलता है, ऐसे में बचपन की परेशानियों की वजह आंत के जीवाणुओं में जीवन भर के लिए बदलाव हो जाए। शोधकर्ताओं ने कहा कि आंत के इन जीवाणुओं में बदलाव दिमाग के संवेदी भागों में भी भर सकते हैं, जिससे आंत के उभारों की संवेदनाओं पर असर पड़ता है।
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News Source : IANS
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