
बच्चों के जीवन को आकार देने में उसकी शिक्षा, स्वास्थ्य और समझदारी का योगदान तो होता ही है, लेकिन उससे भी कहीं बड़ा योगदान होता है परवरिश का। कोई बच्चा कम पढ़ा-लिखा भी हो, तो कुछ अच्छे गुणों के कारण वो जीवन में बड़ी सफलता प्राप्त कर सकता है। इन गुणों में सबसे महत्वपूर्ण है मीठा बोलने की कला और दूसरों का सम्मान करना। ये ऐसे गुण हैं, जिन्हें स्कूल में नहीं सिखाया जा सकता है। इसके बीज माता-पिता या अभिभावक ही बच्चों में डालते हैं।
आजकल चारों तरफ फैले अनाचार और दुष्कर्म की घटनाओं के पीछे यही एक बड़ा कारण है कि ऐसे लोग दूसरों का सम्मान करना नहीं जानते हैं। बचपन से ही बच्चे को आत्म सम्मान करना और दूसरों का सम्मान करना सिखाना बहुत जरूरी है। ये काम बहुत मुश्किल नहीं है। आइए आपको बताते हैं बच्चों को दूसरे का सम्मान करना सिखाने के लिए 5 जरूरी बातें।
आप स्वयं बच्चों का सम्मान करें
दूसरों के सम्मान के महत्व को समझने के लिए सबसे पहले जरूरी है कि बच्चा आत्म सम्मान को समझे। इसके लिए आपको बचपन से ही इस बात का ध्यान रखना पड़ेगा कि आप बच्चे के साथ सम्मान से पेश आते हैं। बच्चे को किसी बात के लिए भला-बुरा कहना, गंदे शब्द करना, नकारात्मक वाक्यों का प्रयोग, गाली देना, मारना या मानसिक रूप से परेशान करने से उनके व्यवहार में भी नकारात्मकता आती है। जब बच्चे स्वयं सम्मानित नहीं महसूस करते हैं, तो उन्हें दूसरे के सम्मान की भी परवाह नहीं रहती है। इसलिए सबसे जरूरी बात तो यही है कि आप स्वयं बच्चों का सम्मान करें। बच्चों से हमेशा अच्छे से पेश आएं, उनसे प्यार से बात करें, गलती करने पर मारने या डांटने के बजाय समझाएं और उन्हें दूसरों के सामने कभी भी डांटें, चिल्लाएं नहीं।
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बोलने से ज्यादा सुनना सिखाएं
आमतौर पर हमें लगता है कि जो वाचाल (ज्यादा बोलने वाला) है, उसका व्यक्तित्व ज्यादा आकर्षक होता है, मगर ऐसा नहीं है। अपनी बात रखने के लिए बोलना जरूरी है, मगर जब दूसरे बोलें तो उन्हें सुनना भी महत्वपूर्ण है। दूसरों की बात काटकर खुद बोलते चले जाने से उन्हें अपमान महसूस होता है। इसलिए बच्चों को बोलने से ज्यादा सुनना सिखाएं। उन्हें बताएं कि सामने वाले के विचार भले ही उसके विचारों से विपरीत हों, लेकिन उसे सामने वाले का सम्मान करने के लिए सुनना चाहिए और अपनी बारी आने पर ही तर्क सहित अपनी बात रखनी चाहिए।
बच्चों को सहानुभूति सिखाएं
दया और सहानुभूति में बहुत थोड़ा सा अंतर होता है। दया किसी को असहाय मानकर की जाती है और सहानुभूति किसी को जरूरतमंद मानकर की जाती है। अपने बच्चों को हमेशा सहानुभूति सिखाएं। इसके लिए बच्चों को बचपन से ही दूसरों की मदद करना, जरूरतमंदों को संभव मदद पहुंचाना और अपनी जरूरत पूरी होने के बाद अतिरिक्त चीज को जरूरतमंद को देना आदि सिखाएं। इससे बच्चों के मन में दूसरों को अपनी तरह देखने और समझने की दृष्टि आती है। ये आज के समय में बहुत जरूरी है।
गुस्से को कंट्रोल करना सिखाएं
बच्चों को बाकी बातों के साथ-साथ यह सिखाना भी जरूरी है कि उन्हें गुस्से को कैसे कंट्रोल करना है। किसी समय दूसरे की बातों से असहत होना और गुस्सा आना स्वाभाविक है। गुस्सा सभी को आता है लेकिन इसे कंट्रोल करना आना जरूरी है। बच्चों को सिखाएं कि उन्हें गुस्सा कैसे कंट्रोल करना है और ओवर-रिएक्ट करने से कैसे बचना है। गुस्सा कंट्रोल करने के कुछ आसान तरीके इस प्रकार हैं।
- गुस्सा आने पर पानी पिएं ताकि हार्ट रेट कम हो और ब्लड प्रेशर सामान्य रहे।
- इमोशन्स को कंट्रोल करने के लिए थोड़ी देर पैदल चलें।
- ठंडा पानी पिएं।
- गहरी सांसें लें।
अनुशासन सिखाएं
बच्चों को दूसरों का सम्मान करने के लिए अनुशासन सिखाना भी बहुत जरूरी है। दूसरों से कैसे पेश आते हैं, बात करते समय कितनी ऊंची आवाज में बात करना है, बूढ़े और बुजुर्ग लोगों से कैसे पेश आना चाहिए, बड़ों की किन बातों को मानना चाहिए, खाना खाते समय कैसे खाना चाहिए, सार्वजनिक स्थानों पर कैसे रहना चाहिए, विपरीत सेक्स का सम्मान कैसे करना चाहिए, किसी के पर्सनल स्पेस में दखल देने से कैसे बचना चाहिए आदि बातें बच्चों को सिखाएं।
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