जेनेटिक थैरेपी की मदद से कैंसर हुआ ठीक

जेनेटिक इंजीनियरिंग की मदद से कैंसर जैसी घातक बीमारी के इलाज में डॉक्टरों को बड़ी सफलता मिली है। ग्रेट आर्मंड स्ट्रीट के डॉक्टरों के मुताबिक जेनेटिक थैरेपी लेने वाली दुनिया की पहली मरीज का कैंसर लगभग पूरी तरह ठीक हो गया है।
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जेनेटिक थैरेपी की मदद से कैंसर हुआ ठीक


हाल में जेनेटिक इंजीनियरिंग की मदद से कैंसर जैसी घातक बीमारी के इलाज में डॉक्टरों को बड़ी सफलता मिली है। ग्रेट आर्मंड स्ट्रीट के डॉक्टरों के मुताबिक जेनेटिक थैरेपी लेने वाली दुनिया की पहली मरीज का कैंसर लगभग पूरी तरह ठीक हो गया है। जी हां, लंदन में रहने वाली एक वर्षीय बच्ची लायला रिचर्ड को पांच महीने पहले ही लाइलाज और घात ल्यूकीमिया रोग का पता चला था और तब ही लायला रिचर्ड के कैंसर से लड़ने के लिए डॉक्टरों ने डिज़ाइनर प्रतिरोधी कोशिकाओं का इस्तेमाल किया। डॉक्टरों के मुताबिक, 'लायला पूरी तरह ठीक हो गई हैं, ये कहना तो शायद जल्दबाजी होगी लेकिन उनकी स्थिति में होने वाला सुधार मेडिकल साइंस के लिए काफी महत्वपूर्ण है।'


तीन महिने की होने पर ही लायला की यह बीमारी पकड़ में आ गई थी। लेकिन जैसा कि शिशुओं में होता है, कि कीमोथेरेपी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट से भी रोग ठीक नहीं हो पाया। तब एक बायोटेक कंपनी सेलेक्टिस की मदद से हॉस्पिटल के डॉक्टर एक ऐसी थैरेपी के इस्तेमाल की जल्दी से मंजूरी ले आए जिसे पहले केवल चूहों पर इस्तेमाल किया गया था।

 

Genetic Therapy in Hindi

 

दरअसल ‘डिज़ाइनर प्रतिरोधी कोशिकाएं’ जेनेटिक इंजीनियरिंग की ही देन हैं। इन मामले में कोशिकाओं को कुछ इस प्रकार डिज़ाइन किया गया कि वो केवल ल्यूकीमिया की कोशिकाओं को ही मारती हैं और उन्हें मरीज को दी जाने वाली तगड़ी दवाओं के सामने अदृश्य-सा बना देती हैं। लायला की नसों में इन डिज़ाइन कोशिकाओं को प्रवेश कराया गया और प्रतिरोधी तंत्र को बहाल करने के लिए उनका एक बार फिर से बोन मैरो ट्रांस्प्लांट भी किया गया।

बकौल ग्रेड आर्मंड स्ट्रीट हॉस्पिटल के डॉक्टर 'पॉल वेज़' कि इस बीमारी के इलाज में जो सुधार हुआ है, जैसा कि उन्होंने पिछले 20 वर्षों में नहीं देखा। डॉक्टर वेज़ के अनुसार, “पांच महीने पहले जैसी स्थिति थी, उससे हम चमत्कारिक रूप से बहुत आगे हैं लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि बीमारी पूरी तरह ठीक हो गई है।”

लायला की केस स्टडी को अमेरिकन सोसायटी ऑफ़ हीमैटोलॉजी में प्रस्तुत किया गया, लेकिन यह अपनी तरह का पहला मामला है और अभी तक इसका क्लीनिकल ट्रायल नहीं हुआ है।

 


Image Source - Getty

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