
प्रेग्नेन्सी के काल मे आपकी मानसिक तथा इमोशनल गतिविधियों मे बदलाव आते रहते हैं, इसके पीछे के कारणों के बारे में जानने के लिए इस लेख को पढ़ें।
प्रेग्नेन्सी के काल मे आपकी मानसिक तथा इमोशनल गतिविधियों मे बदलाव आते रहते हैं इस तरह से गतिविधियों के घटने तथा बढ़ने के पीछे हॉर्मोनल फ्लक्चुएशन होता है। साथ ही आप क्या सोचते हैं ये भी आपकी अवस्था का सूचक होता है ।
प्रेगनेंट होने के दौरान आप अपने मूड मे बदलाव महसूस करेंगी जहाँ एक ओर आप हँसेगी वहीं दूसरी और रोने में भी आपको टाइम नही लगेगा, मूड का एकदम से बदलाव होना प्रेगनेंसी काल मे आम बात है जिसे हर महिला अपने जीवन मे महसूस करती है। आइए हम आपको बताते हैं कि क्यों इस दौरान भावनात्मक बदलाव होता है।
भावनात्मक बदलाव के कारण
मातृत्व का अनुभव
प्रेगनेंसी महिलाओं मे बच्चे के जन्म से पहले ही ममता की भावना जगा देती है इसी वजह से देखा गया है कि बच्चे के आने से पहले ही माताए उनके आने की तैयारी मे लग जाती हैं, वो घर सजाने से लेकर नये कपड़े खरीदने तक और पेरेंटिल स्किल्स पर किताबें से लेकर उनके लिए उनी कपड़े बनाने तक, अपने आने वाले मेहमान के लिए कोई कसर बाकी नही छोड़ती हैं ।
मूड बदलना
जैसा की हमने पहले भी बताया कि माँ बनने से पहले हॉर्मोनल बदलाव की वजह से मूड इक दम बदलाव होना आम बात है, ख़ासतौर पर ऐसा पहली बार माँ बनने वाली महिलाओं मे अधिक होता है पहले पर आप उत्साहित होती हैं तो दूसरे पल स्ट्रेस लेने लगती हैं, इस समय आपके मस्तिष्क मे कई प्रकार के सवाल दौड़ते हैं मसलन शिशु की सेहत कैसी है, आपकी आर्थिक स्थिति कैसी है, आपमे पेरेंटिल स्किल्स हैं या नही आदि । लेकिन इस बात को समझिए कि ऐसा केवल आपके साथ ही नही होता बल्कि हर वो महिला जो माँ बनने वाली है इसी दौर से गुज़रती है ।
डिप्रेशन
प्रेग्नेन्सी मे हॉर्मोनल तथा केमिकल बदलावों के कारण डिप्रेशन होने के आसार अधिक रहते हैं डिप्रेशन एक प्रकार का मूड डिसॉर्डर है जो माँ तथा बच्चे दोनो की सेहत को ही नुकसान पहुँचाता है यह मूड मे बदलाव आने से काफ़ी अलग है क्योंकि यह आपके सोने, खाने, कार्य करने तक पर असर डाल सकता है जो महिलाएँ अपने जीवन काल मे पहले कभी डिप्रेशन की शिकार हुई हैं वह इससे प्रभावित होने के ज़्यादा करीब होती हैं । डिप्रेशन प्रेगनेंट महिलाओं मे काफ़ी सामान्य है और तकरीबन पच्चीस प्रतिशत गर्भवती महिलाए इससे पीड़ित होती हैं ।
डिप्रेशन के संकेत
एंज़ाइटी के संकेतों मे पैनिक अटॅक होते हैं जिनसे हार्ट बीट काफ़ी बढ़ जाती है साथ ही साँस भी आसानी से नही आता है इसी तरह से होने वाले बच्चे के बारे मे नेगेटिव सोच इस अवस्था मे आते रहते हैं ।
स्ट्रेस
होने वाले बच्चे के बारे मे चिंता करना एक आम बात है और तकरीबन हर होने वाली माँ ऐसा करती है लेकिन अपनी ज़िम्मेदारियों के बारे मे सोचना, बच्चे के पैदा होने, अपनी आर्थिक स्तिथि के बारे मे, अपनी रिलेशनशिप आदि के बारे मे सोचना, इतना कुछ सोचना एक प्रेगनेंट महिला तथा उसके बच्चे की सेहत के लिए सही नही होता । अपने स्ट्रेस को अपने तक सीमित ना रखें उसे अपने पार्ट्नर के साथ डिसकस करें, अपने परिवार की सहायता लें इससे आपकी चिंता बँटेगी और आप रिलॅक्स फील करेंगी ! थोड़ी बहुत चिंता करना ठीक है लेकिन इतना भी ना सोचें कि नेगेटिव सोच आप पर हावी हो जायें, इससे आप डिप्रेशन की शिकार हो सकती हैं, अधिक सहायता के लिए अपने डॉक्टर से ज़रूर संपर्क करें ।
कॉन्सेंट्रेशन का लेवल
प्रेगनेंसी मे हॉर्मोनल बदलाव के कारण मॉर्निंग सिकनेस तो होती ही है साथ ही आपकी रातें बिना नींद के गुज़र सकती हैं, कॉन्सेंट्रेट ना कर पाना लगभग सभी गर्भवती महिलाओं मे होता है और तो और इन दिनो वह भूलने की समस्या से भी ग्रस्त हो सकती हैं ।
शरीर की अन्य भावनायें
कुछ महिलाओं को अपने नये उभरे शरीर मे एड्जस्ट करने मे दिक्कत होती है तो दूसरी ओर कुछ महिलाए इसे पसंद करती हैं क्योंकि वो एक ज़िंदगी को इस दुनिया मे लाने वाली हैं जबकि शर्मीली महिलाओं को यह सब थोड़ा अलग लगता है और उन्हे शर्म आती है, लेकिन ज़रूरी है कि आप कहीं भी जायें या घूमने मे कंफर्टबल महसूस करें, क्योंकि माँ बनना एक अलग अनुभव तो है ही साथ ही ईश्वर का वरदान भी है ।
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