डाउन सिंड्रोम से ग्रसित बच्चों के साथ करें ऐसा व्यवहार, कुछ ही दिन में होंगे नॉर्मल

डाउन सिंड्रोम बच्चों में एक ऐसी स्थिति है, जिससे उनका शारीरिक और मानसिक विकास सामान्य बच्चों की तरह नहीं हो पाता और दिमाग भी सामान्य बच्चों की तरह काम नहीं करता। कई बार उनके व्यक्तित्व में कुछ असहजताएं दिखाई देती हैं, लेकिन प्यार और अच्छी देखभाल से ऐसे बच्चे सामान्य जीवन जी सकते है।
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डाउन सिंड्रोम से ग्रसित बच्चों के साथ करें ऐसा व्यवहार, कुछ ही दिन में होंगे नॉर्मल


डाउन सिंड्रोम बच्चों में एक ऐसी स्थिति है, जिससे उनका शारीरिक और मानसिक विकास सामान्य बच्चों की तरह नहीं हो पाता और दिमाग भी सामान्य बच्चों की तरह काम नहीं करता। कई बार उनके व्यक्तित्व में कुछ असहजताएं दिखाई देती हैं, लेकिन प्यार और अच्छी देखभाल से ऐसे बच्चे सामान्य जीवन जी सकते है। डाउन सिंड्रोम का प्रमुख कारण क्रोमोसोम्स है। इस का मूल कारण कोशिकाओं (सेल्स) का असामान्य विभाजन है, जो भूर्ण के शुरुआती विकास के दौरान होता है। सामान्यत: शिशु अपने माता-पिता से 46 क्रोमोसोम प्राप्त करता है, जिसमें 23 पिता से और 23 माता से। प्रत्येक क्रोमोसोम डीएनए उत्पन्न करता है, जिसे जीन कहते हैं। जीन यह निर्धारित करता है कि भावी शिशु के शरीर और मस्तिष्क का विकास कैसे होगा, लेकिन डाउन सिंड्रोम वाले भ्रूण में एक अतिरिक्त या एबनॉर्मल क्रोमोसोम होता है। यह अतिरिक्त जेनेटिक मैटीरियल शारीरिक और मानसिक विकास को बदल देता है।

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क्या हैं इसके लक्षण

डाउन सिंड्रोम के लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि अतिरिक्त या एब्नॉर्मल क्रोमोसोम्स के सेल्स कितने हैं। डाउन सिंड्रोम के अंतर्गत बच्चे में विभिन्न प्रकार के लक्षण नजर आते हैं। जैसे बच्चे के चेहरे की बनावट, जिसके अंतर्गत उसका चेहरा सपाट दिखता है। कानों का छोटा होना, आंखों में और जीभ में भी असामान्यता नजर आती है।

क्या हैं इसके डायग्नोसिस

गर्भावस्था के दौरान अल्ट्रासाउंड और ब्लड टेस्ट कराए जाते हैं। इसके अलावा जेनेटिक टेस्टकैरियोटाइपिंग-कराया जाता है। बात इलाज की डाउन सिंड्रोम को जड़ से मिटाने की कोई दवा उपलब्ध नहीं है। कुछ लक्षणों जैसे दौरे पडऩे का इलाज दवाओं से किया जाता है। इसके अलावा ऐसे बच्चों की काउंसलिंग की जाती है और उन्हें बिहेवियरल थेरेपी भी दी जाती है।

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अभिभावक क्या करें

  • अपराधबोध या दोष भाव महसूस न करें। बच्चे की इस अवस्था को लेकर मन में अपराध की भावना न पनपने दें।
  • चमत्कारी इलाज के दावों के झांसे में न आएं।
  • अगले बच्चे को 'डाउन सिन्ड्रोम से बचाने के लिए किसी जेनेटिक काउंसलर से मिलना चाहिए।
  • महिलाएं अगली गर्भावस्था के शुरुआती महीने में ही यह पता कर सकती हैं कि आने वाले बच्चे को डाउन सिन्ड्रोम तो नहीं है।

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