कलर थेरेपी इस तरह करेगी आपकी मामूली बीमारियों का इलाज

रंग मानव और सृष्टि के हर चेतन जीव पर गहराई तक असर डालते है। रंग हमारे जीवन में उत्साह-उमंग भरते हैं, हमें जीवंत बनाते हैं। निश्चित ही इनका एक मनोवैज्ञानिक महत्व है। ये रंग हमें सिर्फ खुशी ही नहीं देते, बल्कि हमारे कई शारीरिक-मानसिक विकारों को भी दूर करते हैं। असल में ऐसा रंगों की अपनी प्रकृति की वजह से होता है। रंगों के जरिए रोगों के इस ट्रीटमेंट मैथड को ही कलर थेरेपी कहते हैं। जानें क्या है कलर थेरेपी मानव शरीर पांच तत्व, वायु, जल, अग्नि, मिट्टी और आकाश से मिलकर बना है। ये पांचों तत्व मिलकर हमारे शरीर में मौजूद वात, पित्त और कफ का संतुलन बनाए रखते हैं। इन तीनों के संतुलित रहने पर ही हम स्वस्थ रहते हैं। लेकिन जब इन तीनों में से कोई भी एक तत्व असंतुलित हो जाता है, तब हम बीमार हो जाते हैं। यानी, यह असंतुलन बीमारी के संकेत होते हैं। इसे ऐसे भी समझा जा सकता है, हमारे शरीर में इंद्रधनुष के सात रंगों की तरह सात चक्र होते हैं। जब शरीर स्वस्थ होता है, तब ये चक्र सुचारु रूप से चलते रहते हैं। इसे भी पढ़ेंः अच्छी और भरोसेमंद सेहत के लिए अपनाएं ये 5 तरह के तेललेकिन जब शरीर में वात, पित और कफ में से कोई भी तत्व असंतुलित हो जाता है या कोई विकार हो जाता है, तब हमारे शरीर के ये चक्र प्रभावित हो जाते हैं। कलर थेरेपी के अंतर्गत शरीर के चक्रों में उपजे इन्हीं विकारों की पहले पहचान की जाती है। फिर विभिन्न रंगों के इस्तेमाल से उन्हें दूर किया जाता है। रंगों कलर का हमारे मूड, सेहत और सोच पर गहरा असर पडता है। तीन तरह की होती है कलर थेरेपी 1. लाल, पीला और नारंगी2. हरा3. नीला, आसमानी और बैंगनीप्रयोग की सरलता के लिए पहले समूह में से केवल नारंगी रंग का ही प्रयोग होता है। दूसरे में हरे रंग का और तीसरे समूह में से केवल नीले रंग का। अतः नारंगी, हरे और नीले रंग का उपयोग प्रत्येक रोग की चिकित्सा में किया जा सकता है। नारंगी रंग कफजनित खांसी, बुखार, निमोनिया आदि में लाभदायक। श्वास प्रकोप, क्षय रोग, एसिडीटी, फेफड़े संबंधी रोग, स्नायु दुर्बलता, हृदय रोग, गठिया, पक्षाघात (लकवा) आदि में गुणकारी है। पाचन तंत्र को ठीक रखती है। भूख बढ़ाती है। स्त्रियों के मासिक स्राव की कमी संबंधी कठिनाइयों को दूर करती है। इसे भी पढ़ेंः AC गर्मी से 'राहत' नहीं बल्कि 'आहत' कर रहा है, जानें इसके साइडइफेक्‍ट हरा रंग खासतौर पर चर्म रोग जैसे- चेचक, फोड़ा-फुंसी,दाद, खुजली आदि में गुणकारी साथ ही नेत्र रोगियों के लिए (दवा आंखों में डालना) मधुमेह, रक्तचाप सिरदर्द आदि में लाभदायक है। नीला रंग शरीर में जलन होने पर, लू लगने पर, आंतरिक रक्तस्राव में आराम पहुंचाता है। तेज बुखार, सिरदर्द को कम करता है। नींद की कमी, उच्च रक्तचाप, हिस्टीरिया, मानसिक विक्षिप्तता में बहुत लाभदायक है। टांसिल, गले की बीमारियाँ, मसूड़े फूलना, दांत दर्द, मुंह में छाले, पायरिया घाव आदि चर्म रोगों में अत्यंत प्रभावशाली है। डायरिया, डिसेन्टरी, वमन, जी मचलाना, हैजा आदि रोगों में आराम पहुंचाता है। जहरीले जीव-जंतु के काटने पर या फूड पॉयजनिंग में लाभ पहुंचाता है।यह चिकित्सा जितनी सरल है उतनी ही कम खर्चीली भी है। संसार में जितनी प्रकार की चिकित्साएं हैं, उनमें सबसे कम खर्च वाली चिकित्सा है। ऐसे अन्य स्टोरीज के लिए डाउनलोड करें: ओनलीमायहेल्थ ऐप Read More Mind Body Articles In Hindi  
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कलर थेरेपी इस तरह करेगी आपकी मामूली बीमारियों का इलाज


रंग मानव और सृष्टि के हर चेतन जीव पर गहराई तक असर डालते है। रंग हमारे जीवन में उत्साह-उमंग भरते हैं, हमें जीवंत बनाते हैं। निश्चित ही इनका एक मनोवैज्ञानिक महत्व है। ये रंग हमें सिर्फ खुशी ही नहीं देते, बल्कि हमारे कई शारीरिक-मानसिक विकारों को भी दूर करते हैं। असल में ऐसा रंगों की अपनी प्रकृति की वजह से होता है। रंगों के जरिए रोगों के इस ट्रीटमेंट मैथड को ही कलर थेरेपी कहते हैं।

color therapy

जानें क्या है कलर थेरेपी

मानव शरीर पांच तत्व, वायु, जल, अग्नि, मिट्टी और आकाश से मिलकर बना है। ये पांचों तत्व मिलकर हमारे शरीर में मौजूद वात, पित्त और कफ का संतुलन बनाए रखते हैं। इन तीनों के संतुलित रहने पर ही हम स्वस्थ रहते हैं। लेकिन जब इन तीनों में से कोई भी एक तत्व असंतुलित हो जाता है, तब हम बीमार हो जाते हैं। यानी, यह असंतुलन बीमारी के संकेत होते हैं। इसे ऐसे भी समझा जा सकता है, हमारे शरीर में इंद्रधनुष के सात रंगों की तरह सात चक्र होते हैं। जब शरीर स्वस्थ होता है, तब ये चक्र सुचारु रूप से चलते रहते हैं।

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लेकिन जब शरीर में वात, पित और कफ में से कोई भी तत्व असंतुलित हो जाता है या कोई विकार हो जाता है, तब हमारे शरीर के ये चक्र प्रभावित हो जाते हैं। कलर थेरेपी के अंतर्गत शरीर के चक्रों में उपजे इन्हीं विकारों की पहले पहचान की जाती है। फिर विभिन्न रंगों के इस्तेमाल से उन्हें दूर किया जाता है। रंगों कलर का हमारे मूड, सेहत और सोच पर गहरा असर पडता है।

तीन तरह की होती है कलर थेरेपी

1. लाल, पीला और नारंगी

2. हरा

3. नीला, आसमानी और बैंगनी

प्रयोग की सरलता के लिए पहले समूह में से केवल नारंगी रंग का ही प्रयोग होता है। दूसरे में हरे रंग का और तीसरे समूह में से केवल नीले रंग का। अतः नारंगी, हरे और नीले रंग का उपयोग प्रत्येक रोग की चिकित्सा में किया जा सकता है।

नारंगी रंग

कफजनित खांसी, बुखार, निमोनिया आदि में लाभदायक। श्वास प्रकोप, क्षय रोग, एसिडीटी, फेफड़े संबंधी रोग, स्नायु दुर्बलता, हृदय रोग, गठिया, पक्षाघात (लकवा) आदि में गुणकारी है। पाचन तंत्र को ठीक रखती है। भूख बढ़ाती है। स्त्रियों के मासिक स्राव की कमी संबंधी कठिनाइयों को दूर करती है।

इसे भी पढ़ेंः AC गर्मी से 'राहत' नहीं बल्कि 'आहत' कर रहा है, जानें इसके साइडइफेक्‍ट

हरा रंग

खासतौर पर चर्म रोग जैसे- चेचक, फोड़ा-फुंसी,दाद, खुजली आदि में गुणकारी साथ ही नेत्र रोगियों के लिए (दवा आंखों में डालना) मधुमेह, रक्तचाप सिरदर्द आदि में लाभदायक है।

नीला रंग

शरीर में जलन होने पर, लू लगने पर, आंतरिक रक्तस्राव में आराम पहुंचाता है। तेज बुखार, सिरदर्द को कम करता है। नींद की कमी, उच्च रक्तचाप, हिस्टीरिया, मानसिक विक्षिप्तता में बहुत लाभदायक है। टांसिल, गले की बीमारियाँ, मसूड़े फूलना, दांत दर्द, मुंह में छाले, पायरिया घाव आदि चर्म रोगों में अत्यंत प्रभावशाली है। डायरिया, डिसेन्टरी, वमन, जी मचलाना, हैजा आदि रोगों में आराम पहुंचाता है। जहरीले जीव-जंतु के काटने पर या फूड पॉयजनिंग में लाभ पहुंचाता है।

यह चिकित्सा जितनी सरल है उतनी ही कम खर्चीली भी है। संसार में जितनी प्रकार की चिकित्साएं हैं, उनमें सबसे कम खर्च वाली चिकित्सा है।

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