कार्डियोवस्कुलर सिस्टम को प्रभावित कर सकती हैं ये 5 बीमारियां, बढ़ जाता है हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा

पूरे शरीर में खून पहुंचाने वाले कार्डियोवस्कुलर सिस्टम में छोटी सी खराबी भी हार्ट अटैक और स्ट्रोक जैसी जानलेवा स्थितियां पैदा सकती है। डॉक्टर से समझें
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कार्डियोवस्कुलर सिस्टम को प्रभावित कर सकती हैं ये 5 बीमारियां, बढ़ जाता है हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा

कार्डियोवैस्क्युलर सिस्टम (Cardiovascular System) को बॉडी सप्लाई माना जाता है। इस सिस्टम का शरीर में रक्त सप्लाई करने का कार्य होता है। इसमें थोड़ी सी भी खराबी आ जाने से यह आपकी शरीर के अन्य हिस्सों को भी क्षति पहुंचा सकती है। आपकी हृद्य प्रणाली में खराबी आने के वैसे तो बहुत से कारण हैं, लेकिन ज्यादातर मामलों में कार्डियोवैस्क्युलर सिस्टम में दिल की ही किसी बीमारी या विकार के कारण आती है। धूम्रपान, व्यायाम की कमी आदि होने के कारण भी आपके कार्डियोवैस्क्युलर सिस्टम में खराबी आने की संभावनाएं अधिक रहती हैं। दुनियाभर में हर साल कार्डियोवैस्क्युलर डिजीज (Cardiovascular Disease) लाखों लोगों की मौत का कारण बनती हैं। इस तरह के मामलों में थोड़ी सी भी देरी आपकी जान ले सकती है। इसलिए कार्डियोवैस्क्युलर डिजीज होने पर तत्काल रूप से चिकित्सक से सलाह लें। आज इस लेख के माध्यम से पुणे के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. केदार कुलकर्णी आपको बताएंगे कि आपके कार्डियोवैस्क्युलर सिस्टम में किन कारणों से खराबी आती है। 

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कोरोनरी हार्ट डिजीज (Coronary Heart Disease)

कोरोनरी हार्ट डिजीज वह स्थिति है, जिसमें आपकी धमनियों में एक तरल पदार्थ के जमने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। इस स्थिति में आपकी शरीर में रक्त का संचार होना कम हो जाता है, जो सीधा आपके कार्डियोवैस्क्युलर सिस्टम को प्रभावित करता है। हृद्य में ऑक्सीजन नहीं पहुंचने पर आपकी छाती में दर्द या किसी हिस्से में सूजन, सांस फूलना आदि जैसी संभावनाएं बन सकती हैं। यह आपके कार्डियोवैस्क्युलर सिस्टम को क्षतिग्रस्त करने के लिए काफी है।

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हार्ट अटैक (Heart Attack)

हार्ट अटैक आपके कार्डियोवैस्क्युलर सिस्टम को प्रभावित करने का मुख्य कारण है। हार्ट अटैक आने के वैसे तो कई कारण हैं, जैसे उच्च रक्तचाप, धूम्रपान और शराब का सेवन, अधिक सोचना, कोलेस्ट्रोल जम जाना भी इसका कारण है। इस स्थिति में आपके हार्ट में रक्त का संचार होना अचानक कम हो जाता है। कोलेस्ट्रोल बढ़ने के कुछ समय बाद इसकी परत पतली हो जाती है और कई बार हार्ट अटैक का कारण बन जाती है। ऐसा होने से रक्त के संचार में बाधा उत्पन्न होने लगती है और धीरे-धीरे रक्त की कोशिकाएं मरने लगती हैं, जिससे आपका कार्डियोवैस्क्युलर सिस्टम प्रभावित होता है। 

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वैलव्युलर हार्ट डिजीज (Valvular Heat Disease)

डॉ. केदार के मुताबिक वैलव्युलर हार्ट डिजीज कार्डियोवैस्क्युलर सिस्टम को खराब करने में अहम भूमिका निभाती है। बचपन में हुए स्ट्रेपटोकॉकल इंफेक्शन से भी कार्डियोवैस्क्युलर समस्याएं होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। जिससे आपको हार्ट के साथ-साथ गले की समस्या का भी सामना करना पड़ सकता है। स्ट्रेपटोकॉकस की समस्या के साथ ही रूमाटिड फीवर के भी शिकार हो सकते हैं, जिससे हार्ट डिजीज होने की अधिक संभावनाएं रहती हैं।    

हार्ट अरेथ्मिया (Heart arrhythmia)

कई बार आपकी हार्ट बीट सामान्य गति से कार्य नहीं करती तो अरेथ्मिया की समस्या उत्पन्न होने लगती है। इस स्थिति में दिल के धड़कने की गति काफी तेज हो जाती है। वहीं कई बार यह गति सामान्य और कुछ मामलों में कम भी हो जाती हैं। दिल की धड़कन का गति बदलते रहना भी हार्ट अरेथ्मिया का कारण बन सकता है। ऐसी स्थिति में कुछ और क्रॉनिक बीमारियां होने की भी आशंकाएं बढ़ जाती हैं। कई बार इस समस्या के चलते दिल में ठीक तरह से रक्त का संचार होने में भी बाधा आने लगती है। 

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हार्ट फेलियर (Heart Failure)

हार्ट फेलियर की स्थिति में आपका दिल ठीक तरह से धड़कना छोड़ देता है। आपकी धड़कन की गति असमान्य हो जाती है। इस स्थिति में हार्ट को जरूरत के अनुसार ऑक्सीजन नहीं मिल पाता है। जिससे रक्त के संचार में समस्या होने के साथ ही उसमें अन्य खतरे भी होने लगते हैं। इसे कंजस्टिव हार्ट अटैक के नाम से भी जाना जाता है। इस बीमारी का पता लगने के बाद तत्काल रूप से चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए। इस समस्या में  देरी करने पर कुछ मामलों में मरीज की जान जाते हुए भी देखा गया है। 

कार्डियोवैस्क्युलर डिजीज के लक्षण (Symptoms of Cardiovascular Disease)

  • कंधों और पीठ के उपरी हिस्सों में दर्द महसूस होना 
  • छाती में अकड़न, दर्द और सूजन आदि रहना
  • सांस लेने में कठिनाई होना
  • बिना कुछ काम किए पसीने आना
  • उल्टी जैसा मन होना

कार्डियोवैस्क्युलर डिजीज कोई आम समस्या नहीं बल्कि जानलेवा बीमारी है। इस समस्या का पता लगने पर इसे हल्के में न लें बल्कि तत्काल रूप से चिकित्सक से सलाह लें। 

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