पैरों पर पड़ने वाले काले निशान को अक्सर लोग त्वचा संबंधी मामूली समस्या समझकर नज़रअंदाज कर देते हैं, पर ऐसा करना उचित नहीं है। यह वेन्स संबंधी गंभीर समस्या भी हो सकती है। इसे क्रॉनिक वेनस इन्सफीसियंसी या सीवीआइ कहा जाता है। अगर आपके पैरों के निचले हिस्से पर काले रंग के चकत्तेदार निशान हैं, पैरों की त्वचा का रंग बाकी शरीर की त्वचा के रंग से ज्य़ादा गहरा है, आपको एक घंटे से ज्य़ादा देर तक खड़े रहने में परेशानी होती है, चलने से पैरों में सूजन आ जाती है, थोड़ा चलने के बाद खिंचाव या बहुत ज्य़ादा थकान महसूस होती है तो ऐसे निशान को अनदेखा न करें, क्योंकि यह वेन्स से जुड़ी गंभीर समस्या हो सकती है। जिसे मेडिकल भाषा में क्रोनिक वेनस इन्सफीसियंसी यानी सी.वी.आइ. कहते हैं।
स्त्रियों को हो सकती है समस्या
वैसे तो यह बीमारी किसी को भी हो सकती है, लेकिन 30 वर्ष से अधिक उम्र वाली स्त्रियों में ज्य़ादातर सी.वी.आइ. की समस्या देखने को मिलती है। ज्य़ादातर स्त्रियों में गर्भावस्था के दौरान या डिलिवरी के बाद इसके लक्षण दिखाई देते हैं। इसे दूर करने के लिए वे मालिश और अन्य घरेलू उपचारों का सहारा लेती हैं। इससे उन्हें थोड़ी देर के लिए दर्द से राहत ज़रूर मिल जाती है, लेकिन समस्या का कोई स्थायी हल नहीं मिल पाता।
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जीवनशैली है जि़म्मेदार
आधुनिक जीवनशैली की वजह से सीवीसी की समस्या तेज़ी से बढ़ रही है। टेक्नोलॉजी पर बढ़ती निर्भरता की वजह से लोगों की शारीरिक गतिविधियां दिनोंदिन कम होती जा रही हैं। डेस्क जॉब करने वाले लोगों में इस बीमारी की आशंका बढ़ जाती है। इसके अलावा ट्रैफिक पुलिस, शेफ और ब्यूटी सलून में कार्यरत लोगों को भी यह समस्या हो सकती है क्योंकि इन्हें लगातार खड़े होकर काम करना पड़ता है, इससे अशुद्ध रक्त फेफड़ों तक ऊपर पहुंचने के बजाय पैरों की रक्तवाहिका नलियों में ही जमा होने लगता है। इसी वजह से काले निशान या दर्द की समस्या होती है।
क्यों होता है ऐसा
शरीर के अन्य अंगों की तरह पैरों को भी आक्सीजन की ज़रूरत पड़ती है। यह आक्सीजन हार्ट की आर्टरीज़ में प्रवाहित शुद्ध रक्त के ज़रिये पहुंचाई जाती है। पैरों को आक्सीजन देने के बाद यह आक्सीजन रहित अशुद्ध खून वेन्स के ज़रिये वापस पैरों से ऊपर फेफड़े की तरफ शुद्धीकरण के लिए पहुंचाया जाता है। इसका मतलब यह हुआ कि ये नसें पैरों का ड्रेनेज सिस्टम बनाती हैं। किसी कारण से अगर इनकी कार्यप्रणाली शिथिल हो जाती है तो पैरों का डे्रनेज सिस्टम चरमरा जाता है। जिसका परिणाम यह होता है कि ऑक्सीजन रहित अशुद्ध खून ऊपर चढ़कर फेफड़े की ओर जाने की बजाय पैरों के निचले हिस्से में जमा होना शुरू हो जाता है।
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इसी वजह से पैरों में सूजन और काले निशानों की समस्या शुरू हो जाती है। अगर समय रहते इनका समुचित इलाज नहीं कराया गया तो ये काले निशान गहरे होकर धीरे-धीरे ज़ख़्म में परिवर्तित हो जाते हैं। जिन लोगों को डीप वेन थ्रोम्बोसिस यानी डीवीटी की समस्या होती है, उनके पैरों की नसों में ख़्ाून के कतरे जमा हो जाते हैं और वे उसकी दीवारों को नष्टï कर देते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि शिराओं के जरिये अशुद्ध रक्त के ऊपर चढऩे की प्रक्रिया बुरी तरह से बाधित हो जाती है, जो अंतत: सीवीआइ को जन्म देती है। एक्सरसाइज़ की कमी भी इस बीमारी की प्रमुख वजह है। शारीरिक निष्क्रियता की स्थिति में पैरों की मांसपेशियों द्वारा निर्मित पंप, जो अशुद्ध रक्त को ऊपर चढ़ाने में मदद करता है, वह कमज़ोर पड़ जाता है। कुछ लोगों की नसों में स्थित वाल्व जन्मजात रूप से ही ठीक से विकसित नहीं हो पाते, ऐसे मरीज़ों में सी.वी.आइ. के लक्षण कम उम्र में ही नज़र आने लगते हैं।
क्या है उपचार
अगर पैरों में काले चकत्तेदार निशान दिखाई दें तो इसे त्वचा रोग समझने की भूल न करें। ऐसी स्थिति में बिना देर किए किसी वैस्क्युलर सर्जन से सलाह लें। उपचार के दौरान सबसे पहले इन निशानों का असली कारण जानने की कोशिश की जाती है। इसके लिए वेन डॉप्लर स्टडी, एम.आर. वेनोग्राम व कभी-कभी एंजियोग्रा$फी का सहारा लिया जाता है। खून की विशेष जांच कर यह पता लगाना पड़ता है कि ख़्ाून जमने की प्रक्रिया दोषपूर्ण तो नहीं है। इन विशेष जांचों के आधार पर ही सीवीआइ के इलाज की सही दिशा निर्धारण होता है। ज्य़ादातर मरीज़ों में दवा और विशेष व्यायाम की ही ज़रूरत होती है, गंभीर स्थिति होने पर सर्जरी भी करानी पड़ सकती है। वेन वाल्वुलोप्लास्टी, एग्ज़ेलरी वेन ट्रांस्फर या वेन्स बाइपास सर्जरी जैसी आधुनिकतम तकनीक की मदद से इस बीमारी का उपचार संभव है। वेन बाइपास सर्जरी आजकल का$फी लोकप्रिय हो रही है। इसके लिए कभी-कभी विदेशों से आयातित कृत्रिम वेन्स का इस्तेमाल किया जाता है। कभी-कभी इन्डोस्कोपिक वेन सर्जरी या फिर लेज़र सर्जरी का भी सहारा लेना पड़ता है।
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