मां बनाना हर महिला का सपना होता है और इस सपने के पूरे होने पर हर मां अपने गर्भ में पल रहे शिशु की प्रत्येक हरकत पर मन ही मन प्रसन्न होते हुए आशीष देती है। गर्भ में पल रहे शिशु के बढ़ने का क्रम और गतिविधियां उतनी ही रोचक व रोमांचकारी होती है, जितनी एक शिशु की अठखेलियां। जिस प्रकार जन्म के समय शिशु एक सजीव खिलौना सा प्रतीत होता है लेकिन धीरे-धीरे दिन प्रतिदिन बढ़ते क्रम की ओर जाते हुए स्तनपान कर मां की गोद से निकल घुटनों के बल चलता है। फिर धीरे-धीरे दौड़ने लगता है। शिशु की प्रत्येक गतिविधि मां-बाप सहित पूरे परिवार को खुशी प्रदान करती है। गर्भ में पल रहे शिशु की मासिक बदलाव बढ़ने का क्रम कुछ इस प्रकार होता है।
पहला महीना
इस महीने में भ्रूण की लंबाई अर्धचंद्र की भांति घुमाव लिए हुए 1/4 इंच होती है। और पहले महीने में दिल, पाचनतंत्र, स्नायु तंत्र, रीढ़ की हड्डी व स्पाईन कोड बनना शुरू हो जाता है। गर्भ नाल का विकास शुरू हो जाता है। और गर्भ धारण से अब तक शुक्राणु दस हजार गुणा अधिक बढ़ जाते हैं।
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दूसरा महीना
दूसरे महीने में भ्रूण की लंबाई लगभग एक इंच तक बढ़ जाती है। दिमाग बनना शुरू हो जाता है। और दिल काम करने लगता है। आंख, नाक, मुंह, कान के साथ-साथ हड्डी व नसें बनना शुरू हो जाती हैं। हालांकि इस महीने में भ्रूण हरकतें करने लगता है, लेकिन भ्रूण की हरकतें मां महसूस नहीं कर पाती।
तीसरा महीना
इस महीने में भ्रूण की लंबाई ढाई से तीन इंच तक हो जाती है। भ्रूण का वजन आधा से एक औंस तक हो जाता है। तीसरे महीने में शिशु के सभी अंग तैयार हो जाते हैं। नाखून और भौंएं बनने लगती हैं तथा दांतों का विकास शुरू हो जाता है। बाजू, हाथ, टांगें, पैर पूरी तरह से बनकर हरकते करने लगती है। आंखें लगभग पूरी तरह से तैयार हो जाती हैं। शिशु की दिल की धड़कन एक विशेष यंत्र डोप्पलर से सुनी जा सकती हैं।
चौथा महीना
भ्रूण की लंबाई साढे़ 6 से 7 इंच तक लंबी और वजन लगभग 6 से 7 औंस तक होता है। उसकी हथेली व तलवों की ग्रंथियां बनने लगती हैं। हाथों और पैरों की अंगुली बन जाती हैं। त्वचा का रंग गुलाबी, पारदर्शी होता है व त्वचा हल्के मुलायम बालों से ढकी होती है।
पांचवा महीना
भ्रूण की लंबाई 8 से 10 इंच तक लंबी हो जाती है। वजन लगभग 1 पौंड हो जाता है। पांचवे महीने में सिर पर बाल उगने शुरू हो जाते हैं। गर्भस्थ शिशु की गर्भ में हलचल को मां महसूस करने लगती है। शिशु के अंदरूनी अंग व मांसपेशियां तैयार हो जाती हैं।
छठा महीना
छठे महीने में भ्रूण की लंबाई 11 से 14 इंच हो जाती है। वजन लगभग पौने दो पौंड से दो पौंड तक हो जाता है। शिशु की त्वचा सुरक्षा कवच बन जाता है, जिसे वीर्नक्स कहते हैं। गर्भस्थ शिशु हिचकियां लेने लगता है। स्वाद का अनुभव करने वाली ग्रंथियों का विकास होने लगता है।
सातवां महीना
भ्रूण की लंबाई 14से 16 इंच तक हो जाती है। वजन ढ़ाई से साढे़ तीन पौंड तक हो जाता है। स्वाद अनुभव करने लगता है। त्वचा पर चर्बी की तह बनने लगती है तथा त्वचा का रंग लाल व झुरियां सा प्रतीत होता हैं। लगभग सभी अंग विकसित हो जाते हैं। यदि इस दौरान शिशु जन्म ले लेता है, तो उसे समय से पहले यानि प्री-मैच्यौर डिलीवरी कहते हैं। इसमें जन्में बच्चे को विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है।
आठवां महीना
आठवे महीने में गर्भस्थ शिशु की लंबाई साढे 16 से 18 इंच होती है। वजन 4 से 6 पौंड होता है। इस माह शिशु की तेजी से ग्रोथ होती है। इस माह दिमाग का बहुत अधिक विकास होता है। शरीर के सभी अंग पूर्ण विकसित हो जाते हैं। फेफेडें व किडनी भी विकसित होती हैं। उंगलियों के नाखून बढ़ने लगते हैं। बच्चे द्वारा हाथ-पांव चलाने का मां के शरीर के बाहर से ही अनुभव किया जा सकता है। त्वचा सामान्य होने लगती है।
नौवा महीना
गर्भस्थ शिशु की लंबाई 19 से 20 इंच हो जाती है। वजन लगभग सात से साढ़े सात पौंड हो जाता है। फेफेडे पूर्ण विकसित हो जाते हैं। शरीर में चर्बी बढ़ने लगती है। और त्वचा सामान्य व गुलाबी होती है। नौवे महीने में शिशु मां के शरीर के बाहर जीने में सक्षम हो जाता है। जन्म लेने को आतुर शिशु पैर के निचले भाग की ओर बढ़ जाता है।
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