बच्चों की आंखे काफी नाजुक होती हैं इसलिए उन्हें खास देखभाल की जरूरत होती है। बच्चे बार-बार आंखों पर हाथ लगाते हैं जिसकी वजह से आंखो में संक्रमण की आंशका बढ़ जाती है। कभी-कभी यह संक्रमण बच्चों की आंखो के लिए काफी नुकसानदेह हो सकते हैं। इसलिए इनका तुरंत उपचार जरूरी है। कई बार बच्चों में जन्म से ही आंखों की समस्याएं हो सकती है। इसलिए बच्चे के जन्म के बाद उसकी आंखो की जांच करवाना जरूरी होता है। अगर जांच के दौरान कोई समस्या शुरुआती अवस्था में ही तो उसे ठीक करना आसान हो सकता है। बच्चे की उम्र बढ़ने के साथ समस्याएं भी बढ़ती जाती हैं।
कंजक्टिवाइटिस
कई बार बच्चों की आंखों में इंफेक्शन की समस्या हो जाती है जिसे कंजक्टिवाइटिस के नाम से जाना जाता है। इसे 'पिंक-आई' के नाम से भी जाना जाता है। अक्सर साफ सफाई में लापरवाही की वजह से यह बीमारी फैलती है। आमतौर पर इस बीमारी में आंखें लाल हो जाती हैं, जिसमें पहले आंख की बाहरी लेयर लाल होती है और फिर पूरी आंख लाल हो जाती है। कंजक्टिवाइटिस की समस्या वायरल भी हो सकती है और बैक्टीरियल भी। इसकी शुरुआत खांसी जुकाम से होती है और यही इन्फेक्शन आंखों को नुकसान कर देता है। कंजक्टिवाइटिस में पहले आंख से पानी गिरने लगता है और खुजली होने लगती है। पहले एक आंख में इन्फेक्शन होता है और फिर दूसरी आंख में यह अपने आप फैल जाता है। यह इन्फेक्शन एक से दूसरे में फैलता है। हवा में भी इसका वायरस एक्टिव रहता है। आमतौर पर यह वायरस 3 से 7 दिन तक एक्टिव रहता है।
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मोतियाबिंद
वैसे तो यह समस्या बढ़ती उम्र वाले लोगों में पायी जाती है। लेकिन कई बार बच्चों को जन्म से या जन्म के बाद मोतियाबिंद हो जाता है। बच्चों में मोतियाबंद दूर करने के लिए की जाने वाली सर्जरी के कारण उनकी आंखों में प्राकृतिक प्रतिक्रिया के कारण झिल्ली आ जाती है जिसे हटाना मुश्किल हो जाता है। यह झिल्ली आंखों पर पड़ने वाली रोशनी को रोकती है जिसके कारण उन्हें देखने में दिक्कत होती है। दूसरी तरफ जो बच्चे मोतियाबिंद के शिकार होते हैं उनका ऑपरेशन करना भी जरूरी होता है क्योंकि देर से ऑपरेशन होने पर मोतियाबिंद पक जाता है जिसे दूर करना मुश्किल होता है।
स्टाई
आंख की पलकों में पाई जाने वाले जिईज ग्लैंड्स में इन्फेक्शन के कारण हुई सूजन को आंख की फुंसी कहते हैं। वैसे तो स्टाई किसी भी उम्र में हो सकती है लेकिन बच्चों में ज्यादा देखने को मिलती है। जिन बच्चों में दृष्टि दोष होता है, जो बच्चे आंख रगड़ते हैं, जिनकी आंख की पलकों पर रूसी रहती है उनमें स्टाई ज्यादा होती है। कमजोर और मीठा ज्यादा खाने वाले बच्चों में भी स्टाई ज्यादा निकलती हैं। स्टाई होने पर आंख में दर्द, आंख से पानी जाना, पलकों पर सूजन और रोशनी में चौंध लगना जैसे लक्षण हो सकते हैं।
तिरछा देखना
कई बार बच्चों में तिरछा देखने की समस्या होती है। तिरछापन शुरुआती अवस्था में आंख पर कोई बुरा असर नहीं डालता, लेकिन इसमें एक आंख जो तिरछी है, वह धीरे-धीरे सुस्त होती जाती है और उसकी नजर कम होने लगती है। इसकी कई वजह हो सकती हैं। कई बार बच्चों को चश्मे की जरूरत होती है और वे चश्मा नहीं लगाते। इससे तिरछेपन की समस्या हो सकती है। इसके अलावा जन्म के समय आंख पर पड़ने वाले प्रेशर की वजह से भी यह समस्या हो सकती है इसलिए डिलिवरी के वक्त खास ध्यान दिए जाने की जरूरत है।
लेजी आई सिंड्रोम
'लेजी आई सिंड्रोम' के मुख्य कारणों में भेंगापन (आंख के तिरछेपन का विकार), दोनों आंखों के चश्मे की पावर में अंतर और दोनों आखों में चश्मे के नंबर के ज्यादा होने को शामिल किया जाता है। इसके अलावा कॉर्निया में निशान पड़ने से भी लेजी अई सिंड्रोम होने की आशंकाएं बढ़ जाती हैं। लेजी आई सिंड्रोम का पता बच्चों की आंख की प्रारंभिक स्क्रीनिंग के माध्यम से लगाया जा सकता है।
किसी भी रोग का निदान उसकी शुरुआती अवस्था में ही करना जरा आसान होता है। ऐसे में जरूरी है कि आप अपने बच्चे की आंखों की जांच नियमित रूप से करवाएं ताकि अगर कोई समस्या हो तो समय रहते उसका उपचार किया जा सके। इससे पहले कि बहुत देर हो जाए....
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