चिढ़ाने से अवसादग्रस्त हो जाते हैं बच्चे, जानें रोकथाम के तरीके

कोई छात्र अगर स्कूल में कम लोकप्रिय है, तो उसे अक्सर चिढ़ाया जाता है। वे छात्र जो दूसरों के साथ घुल मिल न सकें या जिन्हें अध्यापक द्वारा सजा दी जाए, उन्हें भी अक्सर दूसरे बच्चे चिढ़ाते हैं। 
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चिढ़ाने से अवसादग्रस्त हो जाते हैं बच्चे, जानें रोकथाम के तरीके

अक्सर कुछ बच्चे दूसरे बच्चों को कई कारणों से चिढ़ाते हैं जैसे किसी का वज़न कम या ज़्यादा होना, उंचाई कम होना, चश्मा पहनना, या कपड़े पहनने का तरीका। या अक्सर स्कूल में नए आने वाले बच्चे को चिढ़ाया जाता है। कमज़ोर लोग जो अपने आप को सुरक्षित नहीं रख पाते, उनके साथ इस तरह का व्यवहार होने की संभावना अधिक होती है। अवसाद पीड़ित लोगों जिनमें आत्मविश्वास की कमी है, जो असहज महसूस करें, उनके साथ अक्सर इस तरह का व्यवहार किया जाता है। परीक्षा में फेल होने पर या कम नंबर लाने पर दूसरे छात्र बच्चों को चिढ़ाते हैं। 

कोई छात्र अगर स्कूल में कम लोकप्रिय है, तो उसे अक्सर चिढ़ाया जाता है। वे छात्र जो दूसरों के साथ घुल मिल न सकें या जिन्हें अध्यापक द्वारा सजा दी जाए, उन्हें भी अक्सर दूसरे बच्चे चिढ़ाते हैं। 

 

डराने-धमकाने या चिढ़ाने जैसा व्यवहार कहां होता है?

इस तरह का व्यवहार कई स्थानों, स्थितियों में हो सकता है। कई बार ऑनलाईन या सेलफोन के माध्यम से भी इस तरह का व्यवहार किया जाता है। आजकल लोग टेक्नोलॉजी जैसे सेलफोन, चैट रूम, इंसटेन्ट मैसेज, ईमेल या सोशल मीडिया पोस्ट के ज़रिए भी दूसरों के सा इस तरह का व्यवहार करते हैं। इसे इलेक्ट्रोनिक बुलिंग कहा जाता है। स्कूली बच्चों के साथ इस तरह के ज़्यादातर मामले खेल के मैदान, स्कूल बस, कैफेटेरिया, रेस्टरूम या लॉकर रूम में होते हैं।  

व्यस्कों के साथ इन मामलों को लेकर दूरी

पाया गया है कि अक्सर बच्चे बड़ों के साथ इस तरह की बातें साझा नहीं करते। और अगर उन्हें बताया भी जाता है तो व्यस्क नहीं जानते कि उन्हें इस मामले पर किस तरह की प्रतिक्रिया देनी चाहिए। मात्र 20 से 30 फीसदी बच्चे ही अपने साथ होने वाले गलत व्यवहार के बारे में माता-पिता को बताते हैं।  

रोकथाम के तरीके

स्टाफ और छात्रें को ध्यान रखना चाहिए कि अगर खेल या लंच टाईम के दौरान किसी बच्चे के साथ ऐसा व्यवहार किया जा रहा है तो उस पर ध्यान दें। स्कूल में अध्यापकों, प्रधानाध्यापक, प्रशासकों, काउंसलर्स, अन्य स्टाफ जैसे बस ड्राइवर, नर्स, स्कूल रिसोर्स ऑफिसर, कैफेटेरिया के कर्मचारी और लाइब्रेरियन, अध्यपकों, सीनियर छात्रों एवं अन्य छात्रों आदि सभी को इस तरह के मामलों पर नज़र रखनी चाहिए। छात्रों को प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए कि अगर उनके साथ ऐसा व्यवहार हो या वे किसी को ऐसा व्यवहार करते हुए देखें तो क्या करें।  

स्कूल में इस तरह की गतिविधियों को रोकने के लिए एक समूह बनाया जा सकता है। स्कूल के स्टाफ, छात्रों और अभिभावकों को इन नियमों और नीतियों के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए। ताकि ऐसे किसी भी मामले पर तुरंत कार्रवाई की जाए और उसे रोका जा सके। स्कूल में इस तरह के व्यवहार की रोकथाम के लिए एक छात्र परामर्श समूह भी बनाया जा सकता है, जो व्यस्कों से सुझाव लेकर इस तरह के व्यवहार को रोकने की कोशिश कर सकता है।  

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बुलिंग (डराने-धमकाने जैसा व्यवहार) और आत्महत्या 

डराने-धमकाने और आत्महत्या के बीच गहरा संबंध है। कई बार स्कूल कॉलेजों में इस तरह के मामले देखे जाते हैं जब छात्र उनके साथ होने वाले ऐसे व्यवहार के कारण आत्महत्या कर लेते हैं। इस तरह के व्यवहार के कारण छात्र अकेलापन, अवसाद, आत्मविश्वास की कमी महसूस करते हैं और ये मनोवैज्ञानिक कारक उन पर इतने हावी हो जाते हैं कि कई बार वे आत्महत्या जैसा गंभीर कदम उठा लेते हैं। हालांकि बहुत से मामलों में छात्र आत्महत्या नहीं करते। युवाओं में अन्य कारणों से भी आत्महत्या के मामले देखे गए हैं।

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