ब्रेस्ट कैंसर से जुड़े 15 झूठ जिन पर कभी न करें विश्‍वास, जानें सच

आइए जानते हैं इससे जुड़ी कुछ ऐसी ही बातों की सच्चाई। भारतीय स्त्रियों में ब्रेस्ट कैंसर का खतरा तेज़ी से बढ़ रहा है। जागरूकता के अभाव में ज्य़ादातर स्त्रियों में इस बीमारी की पहचान बहुत देर से होती है, जो अंतत: उनके लिए जानलेवा साबित होती है। आइए जानते हैं इससे जुड़ी कुछ धारणाओं और उनकी सच्चाई के बारे में।
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ब्रेस्ट कैंसर से जुड़े 15 झूठ जिन पर कभी न करें विश्‍वास, जानें सच


कैंसर के प्रति लोगों को जागरूक बनाने के उद्देश्य से 4 फरवरी को वल्र्ड कैंसर डे मनाया जा रहा है। भारतीय स्त्रियों में भी ब्रेस्ट कैंसर की समस्या तेज़ी से बढ़ रही है पर सही जानकारी के अभाव में इसे लेकर उनके बीच कई तरह की भ्रामक धारणाएं प्रचलित हैं। आइए जानते हैं इससे जुड़ी कुछ ऐसी ही बातों की सच्चाई। भारतीय स्त्रियों में ब्रेस्ट कैंसर का खतरा तेज़ी से बढ़ रहा है। जागरूकता के अभाव में ज्य़ादातर स्त्रियों में इस बीमारी की पहचान बहुत देर से होती है, जो अंतत: उनके लिए जानलेवा साबित होती है। आइए जानते हैं  इससे जुड़ी कुछ धारणाओं और उनकी सच्चाई के बारे में।

1. स्वस्थ्य जीवनशैली ब्रेस्ट कैंसर से बचाव में मददगार है।

सच्चाई : यह धारणा काफी हद तक सही है। वैसे तो इस बीमारी की कई वजहें हैं लेकिन मेनोपॉज़ के बाद स्त्रियों के शरीर में फैट जमा हो जाता है, जिसे ब्रेस्ट कैंसर के लिए खासतौर पर जि़म्मेदार माना जाता है। अत: संतुलित खानपान, एल्कोहॉल और सिगरेट से परहेज, नियमित एक्सरसाइज़ और मॉर्निंग वॉक जैसी स्वस्थ आदतें अपना कर ब्रेस्ट कैंसर के खतरे को कुछ हद तक रोका जा सकता है पर कई बार इन नियमों का पालन करने वाली स्त्रियों को भी यह बीमारी हो जाती है। इसलिए अगर कोई लक्षण नज़र आए तो डॉक्टर से सलाह अवश्य लें।

2. अंडरवायर या टाइट ब्रा पहनने से स्तन कैंसर होने का खतरा रहता है।

सच्चाई : यह धारणा भ्रामक है। वैज्ञानिक दृष्टि से ब्रा की डिज़ाइन या बनावट का कैंसर से कोई संबंध नहीं है।

3. आनुवंशिकता इसकी प्रमुख वजह है।

सच्चाई : ब्रेस्ट कैंसर से पीडि़त लगभग 10 प्रतिशत स्त्रियों में खास तरह के जीन को इसके लिए जि़म्मेदार पाया गया, जो एक ही परिवार के सदस्यों में इसे वंशानुगत ढंग से आगे की ओर फैला रहा होता है। हालांकि इस बीमारी से पीडि़त 75 प्रतिशत स्त्रियों की फैमिली हिस्ट्री में इसका कोई प्रमाण मौज़ूद नहीं था। कहने का आशय यह है कि अगर किसी स्त्री के परिवार में पहले से किसी को यह बीमारी रही हो तो एहतियात के तौर पर 40 साल की उम्र के बाद उसे मेमोग्राफी करा लेनी चाहिए पर यह ज़रूरी नहीं है कि अगर नानी, मां या मौसी को यह बीमारी रही हो तो अगली पीढ़ी की बेटियों में भी इसके लक्षण नज़र आएं।

4. शिशु को फीड न कराने से  ब्रेस्ट कैंसर की आशंका बढ़ जाती है।

सच्चाई : यह काफी हद तक सच है। उपचार के लिए आने वाली स्त्रियों की केस हिस्ट्री के आंकड़ों को देखने के बाद यह कहा जा सकता है कि ब्रेस्ट कैंसर के मरीज़ों में वैसी स्त्रियों की संख्या ज़्यादा थी, जिन्होंने किसी वजह से अपने नवजात शिशु को ब्रेस्ट फीड नहीं कराया था। इसकी प्रमुख वजह यह है कि शिशु को फीड न कराने पर मैमरी ग्लैंड से होने वाला सिक्रीशन शरीर से बाहर नहीं निकल पाता जो बाद में कैंसरयुक्त गांठ में तब्दील हो सकता है। हालांकि यह ज़रूरी नहीं है कि फीड न कराने वाली या हर स्त्री को ऐसी समस्या हो, फिर भी उनमें कैंसर की आशंका बढ़ जाती है।   

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5. रेडियोथेरेपी के माध्यम से प्रभावित हिस्से को आंशिक तौर पर हटाने की तुलना में स्तन को पूरी तरह से निकाल देने से बीमारी पूरी तरह दूर हो जाती है।

सच्चाई : ब्रेस्ट कंज़र्वेशन सर्जरी (लम्पेक्टॉमी) द्वारा कैंसर प्रभावित हिस्से को हटाना भी पूर्णत: सुरक्षित है। इसके लिए पूरे ब्रेस्ट को रिमूव कराने की आवश्यकता नहीं होती। हां, अगर कैंसर की गांठ ज़्यादा बड़ी हो तो ऐसा करने की ज़रूरत पड़ सकती है।

6. मेमोग्राफी टेस्ट से हानिकारक रेडिएशन निकलता है, जिससे ब्रेस्ट कैंसर का खतरा बढ़ता है।

सच्चाई : यह सच है कि मेमोग्राफी के दौरान रेडिएशन का एक्सपोज़र होता है लेकिन इसकी मात्रा काफी कम होती है, जिससे कैंसर की कोई आशंका नहीं होती।

7. नियमित जांच और मेमोग्राफी स्तन कैंसर से बचाव में मददगार है।

सच्चाई : सेल्फ ब्रेस्ट एग्ज़ैमिनेशन और मेमोग्राफी से शुरुआती अवस्था में बीमारी की पहचान हो जाती है तो उपचार की जटिल प्रक्रिया अपनाने की ज़रूरत नहीं पड़ती, फिर भी इससे स्तन कैंसर को विकसित होने से नहीं रोका जा सकता।

8. जांच के बाद जिन स्त्रियों में इस बीमारी की आशंका पाई जाती है, उनके लिए इस खतरे को टालना असंभव है।

सच्चाई : ऐसा नहीं है। स्वस्थ जीवनशैली अपना कर इसकी आशंका को कम किया जा सकता है। ज़रूरत पडऩे पर डॉक्टर द्वारा प्रोफाइलेटिक बाइलेटरल मॉस्टेकॉमिज़ नामक उपचार की भी सलाह दी जाती है।

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9. ट्यूमर की बायोप्सी या सर्जरी के  बाद बीमारी जयादा तेज़ी से फैलती है।

सच्चाई : यह धारणा बिलकुल गलत है और इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। लोगों को यह बात समझने की कोशिश करनी चाहिए कि किसी गांठ से बायोप्सी लेने के बाद वह तेज़ी से विकसित होने वाला आक्रामक ट्यूमर नहीं बन सकता। इसी तरह अगर सर्जरी के दौरान ट्यूमर को पूरी तरह हटा दिया जाए तो इस बीमारी को खत्म करने में मदद मिलती है और इसका कोई दूसरा उपाय भी नहीं है।

10. इसके लिए वैकल्पिक उपचार बेहतर है।

सच्चाई : वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति का कोई ठोस वैज्ञानिक आधार नहीं होता। इसलिए कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के उपचार के लिए इसे अपनाने की सलाह नहीं दी जा सकती। सर्जरी के अलावा रेडियो और कीमोथेरेपी ही कैंसर का एकमात्र उपचार है।

11. ब्रेस्ट ट्रांस्प्लांट कैंसर के जोखिम को बढ़ाता है।

सच्चाई : यह बात पूरी तरह सच नहीं है। अब तक किए गए अध्ययन यह बताते हैं कि स्तन प्रत्यारोपण का कैंसर के जोखिम बढऩे का कोई संबंध नहीं है। हालांकि इसकी वजह से बाद में ब्रेस्ट कैंसर से पीडि़त स्त्री को दोबारा मेमोग्राफी और फॉलोअप जांच में असुविधा हो सकती है। ऐसे में कैंसर का पता लगाने के लिए अतिरिक्त जांच की ज़रूरत होती है, जैसे कि इमेज डिस्प्लेसमेंट व्यूज़ के लिए किया जाने वाला एक्स-रे।

12. ब्रेस्ट में किसी भी तरह का आघात भविष्य में कैंसर का कारण बन सकता है।

सच्चाई : इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि स्तन पर चोट या आघात से कैंसर हो सकता है। चोट के बाद कैंसर के लक्षण प्रकट होना महज संयोग हो सकता है।

13. ब्रेस्ट में गांठ होना कैंसर का प्रमाण है।

सच्चाई : यह धारणा गलत है। ब्रेस्ट में लगभग 80 प्रतिशत गांठें नॉन-कैंसरस होती हैं। ऐसी गांठें उम्र बढऩे के बाद शरीर में हॉर्मोन संबंधी बदलाव की वजह से पैदा होती हैं, जिससे स्तनों में फायब्रोसिस्टिक बदलाव होता है, जो गांठ की तरह प्रतीत होता है। दरअसल जिन्हें हम गांठ समझते हैं, वे ब्रेस्ट टिश्यूज़ ही होते हैं। हालांकि यह भी सच है कि मेनोपॉज़ के बाद स्त्रियों में ब्रेस्ट कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है।

14. हॉर्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी और गर्भनिरोधक गोलियों के सेवन से ब्रेस्ट कैंसर की आशंका बढ़ जाती है।

सच्चाई : आजकल मेनोपॉज़ के बाद ज्य़ादातर स्त्रियां हॉर्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी लेती हैं, जिसमें एस्ट्रोजेन हॉर्मोन की हेवी डोज़ दी जाती है और इसके साइड इफेक्ट की वजह से ब्रेस्ट कैंसर की आशंका बढ़ जाती है। जहां तक गर्भनिरोधक गोलियों का सवाल है तो पहले इनमें केवल एस्ट्रोजेन हॉर्मोन होता था, जिसकी वजह से ब्रेस्ट कैंसर की आशंका बढ़ जाती थी लेकिन अब ऐसी गोलियों में एस्ट्रोजेन के साथ प्रोजेस्टेरॉन का भी संतुलित मात्रा में इस्तेमाल होता है। इसलिए अब कंट्रासेप्टिव पिल्स का सेवन सुरक्षित है।

15. यह बीमारी केवल स्त्रियों को होती है।

सच्चाई : यह बात पूरी तरह सच नहीं है। पुरुषों में ब्रेस्ट कैंसर की समस्या देखने को मिलती है। हालांकि, उनमें इसके  मामले का$फी कम होते हैं लेकिन उन्हें भी इस बीमारी के प्रति सजग रहना चाहिए। अगर निप्पल एरिया के आसपास गांठ या दर्द जैसे लक्षण नज़र आएं तो बिना देर किए डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।

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