दाल-रोटी खाओ, प्रभु के गुण... !!
दाल गरीबों का मांस कहा जाता है क्योंकि इसमें प्रचुर मात्रा में प्रटीन और विटामिन होते हैं जो हड्डियों को मजबूत बनाने का काम करते हैं। इसलिए ये शाकाहारियों का बी विशेष और अनिवार्य भोजन माना जाता है।
लेकिन जब यही दाल अपनी हड्डियों को कमजोर कर दे तो...??
और इस दाल से शरीर का निचला हिस्सा अपंह होने लगे तो...???
जी हां। व्यापारियों की दलाली और मिलावट के बाजार के कारण अब दाल प्रोटीन का नहीं जहर का स्रोत बन गई है। कुछ व्यापारियों द्वारा मुनाफा कमाने के लिए दाल में जब मिलावट की जाती है तो ये बहुत ही घातक रुप ले लेती है जो कई सारी बीमारियों को न्यौता देती है। इन बीमारियों में से परालायसिस बहुत ही सामान्य बीमारी मानी जाती है। ऐसा अरहर की दाल में खोसरी दाल मिलाने के कारण होता है।
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अरहर की दाल में खरोई दाल अब तक व्यापारी अधिक मुनाफा कमाने के लिए दाल में कंकड़, पौधे और डंठल की मिलावट कर रहे थे। लेकिन ये मिलावट लोगों की नजर में भी आ जाती थी और इसे ग्राहकों व स्वास्थ्य की दृष्टि से कुछ हद तक सहनीय भी माना जाता था। लेकिन अब व्यापारियों ने अरहर की दाल में एक विशेष तरह की निम्न दर्जे की दाल की मिलावट करनी शुरू कर दी है। इस निम्न दर्जे की दाल का नाम खोसरी दाल है जो शरीर के निचले हिस्से को अपंग बना देती है।
कैसी है खोसरी दाल
खोसरी दाल की बनावट बिल्कुल अरहर के दाल के समान है जिस कारण इसकी मिलावट अरहर की दाल में की जाती है। ये व्यापारियों को काफी फायदा भी पहुंचाती है क्योंकि अरहर की दाल प्रतिदिन खाई जाने वाली दाल है। इस कारण इसका कालाबाजारी के दलाल धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहे हैं।
1961 में लगी थी इस दाल पर पाबंदी
खोसरी दाल एक सस्ती और निम्न दर्जे की दाल है जिस पर भारत सरकार ने 1961 में पाबंदी लगा दी थी। आरंभ में से पशु आहार के रुप में इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन पशुओं में इसके घातक प्रभाव देखकर इस पर भी रोक लगा दी गई।
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वैज्ञानिक शोध के अनुसार खोसरी दाल में ठक्जेलीडाई-अमीनो-प्रोपियोनिक अम्ल (ओडीएपी) होता है जिसके कारण शरीर का निचला हिस्सा अपंग हो जाता है। ये दाल पैर और तंत्रिका तंत्र को सुन्न कर देते हैं। इस रोग को लैथीरिज्म कहते हैं। यह रोग मनुष्य और पशुओं दोनों में होता है। इसके बाद इंसान के शरीर का निचला हिस्सा काम कर देना बंद कर देता है।
इस साल हटा इस दाल से प्रतिबंध
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने इस साल की शुरुआत में इस दाल पर से प्रतिबंध हटा लिया था। प्रतिबंध हटाने के बाद इस दाल की बाजार में आने की संभावना है। ऐसे में गरीबी और कुपोषण के कारण गरीब इस दाल को खाने को मजबूर हैं। इससे गरीब जाने-अनजाने में इस बीमारी के खुद शिकार बन रहे हैं।
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