आधुनिक चिकित्सा पद्धति या दवाओं के विकास से पहले रोगों का निदान व उपचार घरेलू नुस्खों की मदद से किया जाता था और पीढ़ी दर पीढ़ी ये नुस्खे अगली नस्लों तक पहुंचते रहते थे। लेकिन बिना इनको प्रयोग किए ये पता लगाना पाना मुश्किल था कि वे सुरक्षित व असरदार हैं या नहीं। लेकिन हमारे पूर्वजों ने बड़ी कुशलता के साथ इसमें महारथ हासिल की थी। ओशा या बीयर रूट भी एक ऐसी ही हर्ब है जो कई सालों पहले से इस्तेमाल की जा रही है और इसके परिणाम भी साबित किए जा चुके हैं। ओशा को आमतौर पर चिकित्सा और आध्यात्मिक प्रायोजनों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। चलिए जानते हैं ओशा की जड़ क्या है और इसके क्या फायदे होते हैं।
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ओशा की उत्पत्ति
उत्तरी अमेरिका की घाटियों के अधिकांश मूल निवासी अमेरिकी जनजातियों द्वारा ओशा की जड़ को रोजमर्रा में काफी और कई तरीकों से इस्तेमाल किया जाता रहा है। ज्यादातर रॉकी माउंटेन में पाए जाने वाले इस पेड़ की पत्तियों का प्रयोग सबसे पहले उत्तरी अमेरीकियों द्वारा भोजन के रूप में किया गया था। बाद में अगली पीढ़ी द्वारा इन पत्तियों का उपयोग बुरी आत्माओं से बचाने के लिए जलाकर किया जाने लगा। साथ ही इस जड़ को एंटीबैक्टीरियल, वाणुरोधी और जलन व सूजन दूर करने वाले हर्ब के रूप में भी काफी इस्तेमाल किया जाता है।
ओशा या बीयर रूट का प्राचीन उपयोग
अमेरिका के मूल निवासी चिकित्सा कार्यों के लिए भी ओशा की जड़ का इस्तेमाल किया करते थे। वहां के कई मूल निवासी धावक और शिकारी अपनी शारीरिक सहन शक्ति को बढ़ाने के लिए ओशा की जड़ को चबाया करते थे। वहीं मांएं ओशा की जड़ को कपड़े में बांधकर अपने नवजात बच्चों के ऊपर बांध दिया करती थीं ताकी उन्हें सांस लेने के लिए शुद्ध हावा मिले।
ओशा का आधुनिक उपयोग
आज के समय में भी ओशा की जड़ को इसके एंटीबैक्टीरियल गुणों के लिए जाना जाता है। आज भी फ्लू या आम सर्दी के प्रारंभिक लक्षण दिखाई देने पर या कफ आदि की समस्या होने पर ओशा की जड़ का सेवन किया जाता है। साथ ही इसका उपयोग गले में खराश, साइनस और फेफड़ों में सूजन आदि के उपचार के लिए भी किया जाता है। इसकी जड़ को शहद के साथ मिलाकर लेने पर ये एक कमाल के कफ सीरप का काम करता है। साथ ही ओशा की जड़ का सेवन ऊंचाई पर चढ़ने या स्टैमिना बढ़ाने और आराम से सांस लेने के लिए भी किया जाता है।
ओशा की जड़ के स्वास्थ्य लाभ
गले व फेफड़ों से सायनस और बलगम को बाहर करने के अलावा ये हर्ब सांस की समस्या को भी ठीक करती है। इसके अलावा ओशा फेफड़ों में ब्लड सर्कुलेशन को भी बढ़ा देती है, जिससे फेफड़ो में सकुंचन की समस्या नहीं होती है और वे आराम से ऑक्सीजन ले पाते हैं। फेफड़ों के लिए तो ओशा की जड़ के सेवन को कमाल ही माना जाता है। वे लोग जो अस्थमा, एलर्जी, वातस्फीति और निमोनिया आदि से पीड़ित होते हैं, को ओशा की जड़ से बेहद फायदा होता है। हालांकि चिकित्सकीय लाभों के लिए इसका सेवन करने से पहले एक बार डॉक्टर से सलाह जरूर ले लें।