बर्हिमुखी बनें और जियें खुशहाल जिंदगी

एक नई स्‍टडी के अनुसार, जो लोग स्वभाव से ज्यादा बर्हिमुखी यानी एक्‍स्‍ट्रोवर्ट होते हैं वे अधिक खुश रहते हैं।
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बर्हिमुखी बनें और जियें खुशहाल जिंदगी

खुश कपलजो लोग स्वभाव से ज्यादा बर्हिमुखी यानी एक्‍स्‍ट्रोवर्ट होते हैं वे अधिक खुश रहते हैं। एक अध्‍ययन में इस बात का दावा किया गया है। इसमें कहा गया है कि बर्हिमुखी और भावनात्मक तौर पर स्थिर लोग अपनी बाद की जिंदगी में उन लोगों की तुलना में ज्यादा खुश रहते हैं, जो कि अंतर्मुखी या भावनात्मक तौर पर अस्थिर होते हैं।

 

साउथएम्पटन विश्वविद्यालय के मेडिकल रिसर्च काउंसिल के डॉक्टर कैथरीन गेल और एडिनबर्ग विश्वविद्यालय व यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के एक दल की ओर से किए गए अध्ययन में व्‍यक्तित्‍व गुण और खुशी के बीच सम्‍बन्‍ध तलाशा गया।

 

ब्रिटेन के शोधकर्ताओं ने 16 और 26 वर्ष की उम्र में बर्हिमुखी स्वभाव और नकारात्मक अवस्था में बने रहने वाले लोगों के 60 से 64 वर्ष की उम्र में पहुंचने पर उनके मानसिक स्वास्थ्य और जिंदगी से संतुष्टि पर पड़ने वाले प्रभाव की जांच की। शोधकर्ताओं ने पाया कि परिपक्वता के शुरुआती दौर में व्यक्तित्व में जो गुण आ जाता है, कई दशकों बाद उसका स्वास्थ्य पर स्थायी प्रभाव पड़ता है।

 

गेल ने कहा, ‘कई अध्ययनों में युवावस्था में व्यक्तित्व के गुणों के बाद की जिंदगी की खुशियों और संतुष्टि पर लंबे अवधि तक प्रभाव की जांच की गई है।’

 

गेल का कहना था कि उनके अध्‍ययन में यह बात साफतौर पर निकल कर आयी कि युवाओं में बर्हिमुखी होने की आदत और उनकी बाद की जिंदगी के बीच सीधा सम्‍बन्‍ध है। उन्‍होंने कहा कि हमने पाया कि जो युवा बर्हिमुखी होते हैं वे अपनी बाद की जिंदगी में अधिक संतुष्ट और प्रसन्‍न रहते हैं। इसके विपरीत नकारात्मक अवस्था में बने रहने का बुरा प्रभाव होता है, क्योंकि इससे लोगों में चिंता व अवसाद और शारीरिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं की आशंकाएं ज्यादा हो जाती हैं।

 

इस अध्ययन में राष्ट्रीय स्वास्थ्य और विकास सर्वेक्षण के आंकड़ों में शामिल 4,583 लोगों के आंकड़ों का अध्ययन किया। ये सभी 1946 में पैदा हुए थे। उन्होंने 16 वर्ष की उम्र में व्यक्तित्व से जुड़ी एक सूची भरी थी। इसके बाद उन्होंने इसे 26 वर्ष की उम्र में भरा। एक्‍स्‍ट्रोवर्ट स्वभाव का आकलन सामाजिकता, ऊर्जा और गतिविधियों के प्रकार से जुड़े सवालों के जरिए किया गया था, जबकि नकारात्मक अवस्था में बने रहने का आकलन उनकी भावनात्मक स्थिरता, स्वभाव और ध्यान भटकाव से जुड़े सवालों से किया गया था।

 

दशकों बाद जब अध्ययन में शामिल लोग 60 से 64 वर्ष की उम्र के हो गए तो उनमें से 2,529 लोगों ने अपनी तंदुरुस्ती और जिंदगी से संतुष्टि के स्तर से जुड़े सवालों के जवाब दिए. उन्होंने अपने मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य की भी जानकारी दी।




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