समय के साथ चिकित्सा जगत ने काफी तरक्की कर ली है, लेकिन एक स्वास्थ्य समस्या है जिसका सटीक इलाज अभी तक सामने नहीं आ पाया है, और वो है 'माइग्रेन'। इस बीमारी का इलाज अभी तक एक रहस्य ही बना हुआ है। माइग्रेन क्या है, और आखिर क्यों लोग इस बीमारी से परेशान होते हैं, इस सवाल का जवाब अभी तक नहीं मिल पाया है। दरअसल माइग्रेन सिरदर्द का ही एक प्रकार है, जो ना सिर्फ लोगों के स्वास्थ्य और कार्यक्षमता पर असर डालता है, बल्कि यह उनके सामाजिक जीवन को भी बुरी तरह प्रभावित करता है।
रेणु जोशी, एक बैंकर हैं। और माइग्रेन से निजात पाकर वह काफी खुश हैं। बीते 19 बरसों से वह लगातार सिर दर्द के आवधिक हमलों से परेशान रहती थीं, लेकिन आज वह काफी बेहतर महसूस कर रही हैं। केरल के त्रिवेंदम की वृंदा एक स्कूल टीचर हैं, और माइग्रेमन को लेकर उनके अनुभव भी कुछ इसी तरह के हैं। वृंदा अपने बीते दिनों को याद करते हुए कहती हैं कि उन्हें हर महीने डॉक्टर के पास जाना पड़ता था। यह प्रक्रिया तब से चली आ रही थी, जब वे पांचवीं कक्षा में पढ़ती थीं।
रेणु, वृंदा तथा ऐसे ही कुछ अन्य लगों की ही तरह प्रियंका भी माइग्रेन की वजह से अपने जीवन से काफी परेशान हो गयी थीं। वे लगातार हॉस्पिटल जाकर और दर्दनिवारक दवाओं के भरोसे ही जी रहीं थीं। माइग्रेन को नियंत्रित करने के उनके पास केवल यही उपाय बचे थे। सात वर्ष बाद प्रियंका ने पहली बार दोस्तों और परिवार वालों के साथ होली का आनंद लिया। इस बार उन्हें सिरदर्द का डर नहीं था। प्रियंका व उस जैसे अन्य लोगों में ऐसा भरोसा आयुर्वेदिक इलाज के जरिये आया। इसी चिकित्सा पद्धति के जरिये उनका जीवन पहले से बेहतर हो पाय।
नैदानिक टिप्पणियों पर आधारित इलाज की यह पद्धति वैद्य बालेंद्रू प्रकाश ने ईजाद की है। प्रकाश एक आयुर्वेद चिकित्सक हैं जिनका आयुर्वेदिक चिकित्सक का अनुभव एक दशक से अधिक का है। प्रकाश ने भारत की प्राचीनतम् और पारंपरिक दवा पद्धति को चिकित्सकीय विशेषज्ञों को मिलाकर ईलाज का एक नया तरीका पेश किया। दुनिया भर में इस इलाज को सराहा जा रहा है।
जर्नल ऑफ जेनुअन ट्रेडिशनल मेडिसिन में प्रकाशित अपने शोध में प्रकाश ने इस पद्धति की कार्यक्षमता के बारे में जानकारी दी थी। इस शोध के नतीजे काफी उत्साहित करने वाले हैं। चार महीने का इलाज करवाने के बाद नौ में से पांच मरीजों ने इलाज के बाद अपनी हालत में सुधार आने की बात कही। 120 दिनों की इस इलाज प्रक्रिया के दौरान सभी मरीजों को दिन में तीन बार भोजन और तीन बार स्नैक्स लेने की सलाह दी गयी। इसके साथ ही उन्हें चाय, कॉफी और गैस उत्पन्न करने वाले पेय पदार्थों का सेवन बंद करने की भी सलाह दी गयी। दवाओं के साथ ही चार हर्ब-मिनरल दवायें भी मरीजों को दी गयीं। इसके साथ मरीजों को ताजा पका भोजन खाने की ही सलाह दी गयी।
माइग्रेन पर वैज्ञानिक आधारित इस वैज्ञानिक शोध की शुरुआत 2006 में हुई। पहली बार लंदन में हुए 16वें माइग्रेन ट्रस्ट इंटरनेशनल सिम्पोसिम में भी आयुर्वेदिक तरीके से माइग्रेन का इलाज करवाने वाले मरीजों के अनुभव सामने रखे। अच्छी बात यह भी रही कि मरीजों ने न केवल माइग्रेन अटैक कम होने की बात कही, बल्कि साथ ही किसी भी प्रकार के दुष्प्रभाव से भी इनकार किया।
वर्ष 2007 में इसी मॉडल को दक्षिण भारत में दोहराया गया। इसमें एक चिकित्सक ने इंटरनेशनल हैडएक सोसायटी के मापदण्डों के अनुसार यह जांचा कि किसी मरीज को माइग्रेन है अथवा नहीं। इस मापदण्ड में माइग्रेन अटैक की संख्या, दर्द की गंभीरता और अन्य कई लक्षणों को शामिल किया जाता है। इस शोध के डाटा को स्टॉकहोम (स्वीडन) में हुए इंटरनेशनल हैचएक कांग्रेस में पेश किया गया।
प्रकाश की इलाज पद्धति को वैश्विक स्तर पर मिली प्रशंसा के बाद यह कहा जा सकता है कि माइग्रेन को दर्द निवारक दवाओं के बिना भी ठीक किया जा सकता है। इसके लिए जीवनशैली और खानपान की आदतों में बदलाव करने की जरूरत होती है। और माइग्रेन को दूर करने के लिए हमें बस इतने ही जरूरी कदम उठाने की जरूरत होती है।
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