
अस्थमा एक गंभीर बीमारी है, जो फेफड़ों के किसी पदार्थ या मौसम के प्रति अतिसंवेदनशील होने के कारण होती है। इससे पीड़ित व्यक्ति की सांस नलिकाओं की भीतरी दीवारों पर सूजन आ जाती है। इस संकुचन के कारण सांस लेने में परेशानी होती है और रोगी के फेफड़ों तक भरपूर ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती।
अस्थमा मुख्य रूप से सांस की नली की बीमारी है। अस्थमा से सांस लेने में परेशानियां आती है। इसमें मरीज की सांस की नली पतली हो जाती है। सांस की नली पतली होने से सांस लेने में परेशानी होती है और लगातार कफ की समस्या बनी रहती है। यह रोग एलर्जी के कारण बढ़ जाता है। अस्थमा का अटैक कुछ समय से लेकर घंटों तक रह सकता है। अगर अटैक ज्यादा लंबा हो जाए तो जानलेवा भी हो सकता है।
मौजूदा हालात में यह समस्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। बच्चों में भी यह समस्या आम हो गई है। खानपान और दिनचर्या में हुए बदलावों के चलते बच्चे भी सांस की बीमारी से परेशान होने लगे हैं। चिंता की बात तो यह है कि अब 5 साल के बच्चे भी अस्थमा की चपेट में आने लगे हैं।
सांस लेने में होने वाली परेशानियां
अस्थमा होने पर कफ आना, घबराहट, सीने में जकड़न और सांस लेने में परेशानी, एयरवेज सिकुड़ जाना, अक्सर खांसी या सर्दी जुकाम की समस्या रहती है। खेल-कूद के दौरान बच्चों का जल्दी से जल्दी थक जाना और सांस फूलना, सीने में जकड़न, नाक बंद होना व सीने में दर्द की शिकायत होना, सांस लेने पर घरघराहट के साथ एक सीटी जैसी आवाज आना जैसी सांस की परेशानियां आम हैं।
अस्थमा के शिकार
अस्थमा का शिकार कोई भी व्यक्ति हो सकता है, लेकिन बच्चे इस रोग के शिकार ज्यादा जल्दी हो जाते हैं। जिस व्यक्ति के घर में अस्थमा के मरीज पहले से रहे हों, उनमें भी इस रोग के होने का खतरा ज्यादा होता है। ठंड और गर्म दोनों मौसम में व्यक्ति अस्थमा का शिकार हो सकता है, लेकिन ठंड में एयरकंडीशन या अन्य माध्यम से व्यक्ति गर्म से एकाएक ठंड या ठंड से एकाएक गर्म में जाने से एलर्जी होती है। वहीं, ठंड में धूल ज्यादा ऊपर न रहकर नीचे ही रहती है जिससे एलर्जी होने के साथ-साथ व्यक्ति अस्थमा का शिकार हो जाता है।
क्या करें
अपना इलाज खुद न करें। डॉक्टर की बताई दवाएं ही लें। अस्थमा अटैक होने की स्थिति में जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचने की कोशिश करें। अस्थमा के इलाज का सबसे बेहतर तरीका इन्हेलर है। डॉक्टर बताते हैं कि इन्हेलर से मरीज की सांस की नली तक सीधी दवाई पहुंचती है। यह मरीज को जल्दी ठीक करती है। इन्हेलर 2 तरह के होते हैं। एक कंट्रोल, जो सांस नली को सामान्य बनाता है और दूसरा सुरक्षात्मक। 3 महीने तक यदि मरीज को अस्थमा के अटैक नहीं आते तो दवाई की मात्रा 25 फीसदी कम कर देनी चाहिए। इस तरह धीरे-धीरे दवाई की मात्रा कम हो जाती है।
क्या न करें
कोई भी दूसरी दवाई बिना डॉक्टर की सलाह के न लें। कुछ दवाइयां अस्थमा की परेशानी को बढ़ा देती हैं। किसी भी तरह का ऐसा व्यायाम न करें जिससे सांस की नली पर दबाव पड़े।
सावधानी है जरूरी
- धूल से बचना, अस्थमा में सांस लेने की समस्या से बचने के लिए सबसे जरूरी है। क्योंकि 50-80 प्रतिशत लोगों को धूल से एलर्जी के कारण सांस लेने में तकलीफ होती है। इसलिए घर और ऑफिस की साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें। बेडशीट और मनपसंद सॉफ्ट टॉय खिलौनों को हर सप्ताह धोएं।
- धूम्रपान के धुएं से भी सांस लेने में परेशानी होती है। धुआं धूम्रपान करने वालों और सम्पर्क में आने वाले दोनों तरह के लोगों के लिए हानिकारक होता है। इसलिए इससे दूरी बनाकर रखें।
- अस्थमा रोगियों को पालतू जानवर न रखने की सलाह दी जाती है। लेकिन अगर आपके पास कुत्ता है, तो उसकी सफाई का विशेष ध्यान रखें और उसे बिस्तर पर न बैठने दें।
Image Courtesy : Getty Images
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