दमा (अस्थमा) ऐसा मर्ज है, जो बच्चों से लेकर किसी भी आयुवर्ग के व्यक्ति को अपनी गिरफ्त में ले सकता है। आज आंधी भरा मौसम चल रहा है साथ ही प्रदूषण भी अपने चरम पर है। इस रोग में रोगी की सांस नलियों में कुछ कारणों के प्रभाव से सूजन आ जाती है। इस कारण रोगी को सांस लेने में कठिनाई होती है। जिन कारणों से दमा की समस्या बढ़ती है, उन कारणों को एलर्जन्स कहते हैं। ऐसे कारणों में धूल (घर या बाहर की) या पेपर की डस्ट, रसोई का धुआं, नमी, सीलन, मौसम परिवर्तन, सर्दी-जुकाम, धूम्रपान, फास्टफूड, मानसिक चिंता, व्यायाम, पालतू जानवर और फूलों के परागकण आदि प्रमुख होते हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व में लगभग 30 करोड़ लोग दमा से पीड़ित हैं। भारत में यह संख्या लगभग 3 करोड़ है। दो तिहाई से अधिक लोगों में दमा बचपन से ही प्रारम्भ हो जाता है। इसमें बच्चों को खांसी होना, सांस फूलना, सीने में भारीपन, छींक आना व नाक बहना और बच्चे का सही विकास न हो पाना जैसे लक्षण प्रकट होते हैं। शेष एक तिहाई लोगों में दमा के लक्षण युवा अवस्था में प्रारम्भ होते हैं। इस तरह दमा बचपन या युवावस्था में ही प्रारम्भ होने वाला रोग है।
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इन बातों पर दें ध्यान
- दमा की दवा हमेशा अपने पास रखें और कंट्रोलर इनहेलर हमेशा समय से लें।
- सिगरेट और सिगार के धुएं से बचें और प्रमुख एलर्जन्स से बचें।
- अपने फेफड़ों को मजबूत बनाने के लिए सांस से संबंधित व्यायाम करें।
- यदि बलगम गाढ़ा हो गया है, खांसी, घरघराहट और सांस लेने में तकलीफ बढ़ जाए या रिलीवर इनहेलर की जरूरत बढ़ गई हो, तो शीघ्र ही अपने डॉक्टर से परामर्श लें।
डायग्नोसिस
दमा का पता अधिकतर लक्षणों के आधार पर भी किया जाता है। एक परीक्षण सीने में आला लगाकर और म्यूजिकल साउंड (रॉन्काई) सुनकर किया जाता है। इसके अलावा फेफड़े की कार्यक्षमता की जांच (पी.ई.एफ.आर. और स्पाइरोमेट्री) द्वारा की जाती है। अन्य जांचों में रक्तकी जांच, छाती और पैरानेजल साइनस का एक्सरे किया जाता है।
क्या हैं इसके बचाव
- मौसम बदलने से सांस की तकलीफ बढ़ती है। इसलिए मौसम बदलने के 4 से 6 सप्ताह पहले ही सजग हो जाना चाहिए और डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए।
- आंधी वाले मौसम में बाहर निकलने से बचें। अगर जाना बहुत जरूरी है तो बंद गाड़ी में ही जाए।
- इनहेलर व दवाएं विशेषज्ञ डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही लेनी चाहिए।
- ऐसे कारक जिनकी वजह से सांस की तकलीफ बढ़ती है या जो सांस के दौरे को पैदा करते हैं उनसे बचें। जैसे धूल, धुंआ, गर्द, नमी, धूम्रपान आदि।
- सेमल की रुई युक्त बिस्तरों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। कारपेट, बिस्तर व चादरों की नियमित और सोने से पूर्व अवश्य सफाई करनी चाहिए।
- व्यायाम या मेहनत का कार्य करने से पहले इनहेलर अवश्य लेना चाहिए।
- बच्चों को लंबे रोएंदार कपड़े न पहनाएं और रोएदार खिलौने खेलने को न दें।
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इनहेलर थेरेपी
दमा का उपचार आमतौर पर इनहेलर से होता है, जो दमा की दवा लेने का सर्वश्रेष्ठ और सबसे सुरक्षित तरीका है। ऐसा इसलिए, क्योंकि इनहेलर के जरिये दवा व्यक्ति के फेफड़ों तक पहुंचती है और यह तुरंत असर दिखाना शुरू कर देती है। यह ध्यान देने योग्य है कि इनहेलेशन थेरेपी में, सीरप और टैब्लेट्स की तुलना में 10 से 20 गुना तक कम खुराक की जरूरत होती है और यह अधिक प्रभावी होती है।
टैब्लेट की जरूरत
दमा के इलाज में अनेक व्यक्तियों को टैब्लेट्स की जरूरत नहीं पड़ती। ऐसा इसलिए, क्योंकि इनहेलर सामान्यत: अच्छी तरह से कार्य करते हैं। बावजूद इसके कुछ मामलों में यदि दमा से पीडि़त व्यक्ति में कुछ लक्षण मौजूद रहते हैं, तो इनहेलर के अलावा टैब्लेट लेने की भी सलाह दी जाती है। कभी-कभी तीव्र(एक्यूट) दमा के दौरे को कम करने के लिए स्टेरॉइड टैब्लेट थोड़े वक्त के उपचार के लिए दी जाती हैं। वस्तुत: कुछ लोगों में लक्षण सिर्फ इसलिए मौजूद रहते हैं क्योंकि वे अपने इनहेलर का प्रयोग ठीक प्रकार से नहीं करते हैं। इसलिए इनहेलर का ठीक प्रकार से इस्तेमाल करना अपने डॉक्टर से सीखें।
क्यों होता है आनुवांशिक और पारिवारिक कारण। जैसे परिवार के किसी सदस्य को दमा रहा हो, तो दूसरे सदस्य में दमा से ग्रस्त होने का जोखिम बढ़ जाता है। इसके अलावा दमा की समस्या को बढ़ाने वाले तीन प्रमुख कारण होते हैं।
- घर के अंदर (इनडोर एलर्जन)
- हाउॅस डस्ट माइट यानी घरेलू धूल में उपस्थित कीट।
- जानवरों के शरीर पर उपस्थित एलर्जन
- कॉकरोच।
- पौधों के फूलों में पाए पाये जाने वाले सूक्ष्म कणों को परागकण कहते हैं, जो एलर्जी के प्रमुख कारक हैं।
- विभिन्न लोगों में कुछ खाद्य पदार्र्थों को ग्रहण करने से भी दमा की समस्या बढ़ती है। जैसे अनेक लोगों को अंडा, मांस, मछली, फास्ट फूड्स, शीतल पेय और आइसक्रीम आदि खाने से दमा की समस्या बढ़ जाती है।
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