बच्चे अकसर दवा से जी चुराते हैं। बदरंगी दवा देखकर ही उनकी जी खराब होने लगता है। ऐसे में बच्चों की दवाओं को लुभावना बनाया जाता है। इस प्रक्रिया में कृत्रिम रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन, ये रंग बच्चों की सेहत के लिए काफी नुकसानदेह होते हैं। इनमें मौजूद हानिकारक रसायन बच्चों में हाइपरएक्टिविटी को बढ़ावा देते हैं। इस खतरे को देखते हुए ब्रिटिश संस्था 'एक्शन ऑन ने एडिक्टिव्स' ने दवाइयों में कृत्रिम रंग नहीं मिलाने को लेकर मुहिम शुरू की है।
संस्था की मांग है कि इनके इस्तेमाल पर रोक लगनी चाहिए। मुहिम के तहत शोधकर्ताओं ने ऐसी 52 दवाइयों की पहचान की है जिनमें कृत्रिम रंग मिलाए जाते हैं। इनमें दर्दनिवारक से लेकर दांतों की सफेदी बढ़ाने वाली दवाएं भी शामिल हैं। ये दवाएं दो महीने के बच्चों को भी दी जाती हैं। लिहाजा इनमें मौजूद हानिकारक चीजें उनके लिए काफी घातक साबित होती हैं। इनमें मौजूद हानिकारक रसायन 'हाइपरएक्टिविटी और अटेंशन डेफिशिट डिस्ऑर्डर' को बढ़ाते हैं।
शोधकर्ताओं के मुताबिक दवाओं में टाटूजिन (ई 102), क्यूनोलाइन येलो (ई 104), सनसेट येलो (ई 110), कार्मोसिन (ई 122), और ऐल्यूरा रेड (ई 129) जैसे कृत्रिम रंग इस्तेमाल होते हैं। साथ ही दवा को सुरक्षित रखने को इसमें सोडियम बेंजोएट (ई 211) नामक प्रिजर्वेविट भी मिलाया जाता है। इनमें से चार कृत्रिम रंग बच्चों के लिए बनाई जाने वाली 19 दवाइयों में होता है। इनमें कैलपोल भी शामिल है। वहीं प्रिजर्वेटिव का प्रयोग 37 दवाओं में किया जाता है।
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