खिलाड़ियों की बात हम तभी करते हैं जब में देश के लिए कोई मेडल जीतते हैं या कोई अच्छा काम करते हैं। उनके स्वास्थ्य के बारे में शायद ही हम कभी बात करते हैं या शायद ही कभी ये जानने की कोशिश करते हैं कि उन्हें कोई बीमारी है कि नहीं। केवल उनके मेडल ना जीतने पर अफसोस जताने लगते हैं या ज्यादा से ज्यादा उनपर दोषारोपण करने लगते हैं।
जबकि ये गलत है। इसका एहसास हाल ही में भारत के इकलौते ओलिंपिक व्यक्तिगत स्वर्ण पदक विजेता अभिनव बिंद्रा के खुलासे से पता चलता है। बीते दिनों में अभिनव बिंद्रा ने खुलासा करते हुए कहा कि, वह 2014 में मिर्गी की गंभीर समस्या का शिकार हो गए थे जिससे उनके हाथों में कंपन पैदा हो गई थी। बिंद्रा ने कहा, ‘‘2014 के बाद से इस बीमारी में मेरा हाथ हमेशा कंपकंपाते रहता था। जबकि मैं ऐसे खेल से जुड़ा था जिसमें हाथ का स्थिर रहना बहुत जरूरी है। उस समय मेरी स्थिति काफी गंभीर थी और मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था।’’
ये बात बिंद्रा ने इंडिया टुडे कांक्लेव में कहा। उस सत्र का संचालन कर रहे बोरिया मजूमदार ने कहा कि,‘मिर्गी’ की ये स्थिति एक न्यूरोलॉजिकल समस्या है जिसका शिकार होने के बावजूद बिंद्रा ने 2014 राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीता और रियो ओलिंपिक में पदक के करीब पहुंचे।
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बिमारी को नहीं ठहराया जिम्मेदार
हालांकि बिंद्रा ने फिर भी रियो ओलिंपिक में चौथे स्थान में रहने के लिए इस बीमारी को जिम्मेदार नहीं माना है। उनका कहना है कि वे उस समय तीसरे स्थान पर आने के लायक प्रदर्शन नहीं कर सके थे।
बिंद्रा ने अपनी बातों को आगे बढ़ाते हुए कहा कि, देश को अब 2020 ओलिंपिक को भूलकर 2024 के लिये कड़ी मेहनत करनी चाहिये। बिंद्रा ने कहा, ‘‘2020 ओलिंपिक के लिये बहुत कम समय बचा है. इतने कम समय में ज्यादा बदलाव नहीं किये जा सकते. पूरी तरह से बदलाव की कोशिश करना भूल होगी. किसी भी बदलाव में समय लगता है।’’
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