कभी भी कहीं भी सो जाना। न जगह देखना, न मौका और न वक्त। हर वक्त नींद की आगोश में ही रहना। कितना भी सो लें, लेकिन हमेशा उनींदा सा रहना। यह सब लक्षण नॉर्कोलेप्सी की ओर इशारा करने वाले हो सकते हैं। नार्कोलेप्सी नींद से जुड़ी एक ऐसी समस्या है जिसमें मरीज़ कभी भी अचानक सो जाता है, और अकसर वो अप्रत्याशित जगहों पर सो जाता है। इस बीमारी में मरीज कभी भी बैठे- बैठे सो जाता है, यहां तक कि हंसते हुए या रोते हुए भी। मरीज दिन भर उनींदा और थका हुआ रहता है। कितना भी सो ले लेकिन ऐसा लगता है, जैसे वह सोया ही नहीं है। यह बीमारी ज्यादातर 15 से 25 साल की उम्र के लोगों को अपना शिकार बनाती है।
यह बीमारी क्रानिक सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम से जुड़ी होती है और यह दिमाग में मौजूद उन रसायनों को प्रभावित करती हैं जो सोने और जागने के चक्र को नियंत्रित करते हैं।
नार्कोलेप्सी के मरीज़ हमेशा सुस्त महसूस करते हैं और उन्हें अधिक समय तक जागने में कठिनाई होती है। हालांकि अभी तक वैज्ञानिक इस बीमारी का ठोस कारण पता लगाने में असफल रहे हैं लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि अनुवांशिकी और वायरस के संयोग से ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। महिलाओं और पुरूषों दोनों में ही यह बीमारी सामान्य तौर पर पायी जाती हैं। इस बीमारी के लक्षण मरीज़ में लम्बे समय से हो सकते हैं लेकिन बीमारी का पता बहुत दिनों बाद चलता है।
नार्कोलेप्सी के लक्षण
नार्कोलेप्सी के मुख्य लक्षण हैं, दिन में बहुत ज्यादा सुस्त महसूस करना और बिना समय के कहीं भी सो जाना। इनके अलावा इस बीमारी के कई और लक्षण हैं जैसे
- कैटाप्लैक्सी: यह प्रक्रिया नींद से जुड़ी है जिसमें कि मांस पेशियां किसी होने वाले अटैक की भांति स्थिर हो जाती हैं।
- स्लीप पैरालिसिस: ऐसा बहुत कम होता है जब कि व्यक्ति चल फिर भी नहीं पाता।
- हिप्नागोगिक या हिप्नोपौमपिक हैल्युसिनेशन : यह वो स्थिति है जब मरीज़ अर्धनिद्रा में होता है और उसे डरावने सपने आते हैं जिन्हें वो हकीकत मान लेता है।
- आटोमैटिक बिहेवियर : इस अवस्था में व्यक्ति नींद में होता है लेकिन वो ऐसे काम करता है जैसे वो जाग रहा हो। ऐसी स्थिति में व्यक्ति इलाज की ओर तब अग्रसर होता है जब उसे सुस्ती की वजह से कहीं भी नींद आ जाती है और इससे मरीज़ की दिनचर्या पूरी तरह से खराब हो जाती हैं।
नार्कोलेप्सी का इलाज
- जब फिज़िशियन को यह अंदाज़ा लगता है कि व्यक्ति नार्कोलेप्सी का शिकार हो सकता है तो वह उसे निद्रा विशेषज्ञ के पास जाने की सलाह देता है।
- ज़्यादातर मामलों में मरीज़ की स्लीप सेन्टर में रखकर उसकी सोने की गतिविधियों को देखा जाता है। नार्कोलेप्सी का कोई इलाज़ नहीं है लेकिन कुछ दवाइयां लेकर और जीवनशैली में थोड़ा बदलाव लाकर मरीज़ सामान्य जीवन जी सकता है।
- ऐसे व्यक्ति को अपने कर्मचारियों को और अपने अध्यापकों को इस बीमारी की सूचना दे देनी चाहिए ताकि उसके हिसाब से मरीज़ के लिए उचित व्यवस्था की जा सके। इसके अलावा मरीज़ को बहुत सावधान रहना चाहिए ताकि उसे अपनी बीमारी से कोई हानि ना पहुंच सके।