अगर आपको अच्छी सेहत के साथ जिंदगी का लुत्फ उठाना है, तो फिर विटामिन डी के महत्व को समझकर इस विटामिन की अपने शरीर में किसी भी स्थिति में कमी नहीं होने देना है। याद रखें, विटामिन डी की कमी से कई शारीरिक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। जानें कि शरीर के लिए आवश्यक इस विटामिन की कमी को कैसे दूर किया जाए। यह जानना जरूरी है कि विटामिन डी की शरीर में कमी क्यों होती है। देश में तमाम ऐसी महिलाएं, बच्चे और पुरुष हैं, जो विटामिन डी को लेकर भ्रांतियों से ग्रस्त हैं। जैसे वे धूप में इसलिए नहीं बैठना चाहते कि इससे शरीर का रंग सांवला या काला हो जाएगा। अनेक लोग हैं जो घर में टेलीविजन, कंप्यूटर और स्मार्ट फोन पर इतना ज्यादा मशगूल रहते हैं कि उन्हें धूप में बैठने की फुर्सत नहीं है। सुबह के वक्त धूप न लेना भी विटामिन डी की कमी का एक प्रमुख कारण है। इसके अलावा विटामिन डी युक्त आहार न लेना भी इस विटामिन की कमी का कारण है।
अन्य कारण
- आहार में कैल्शियम की कमी होना।
- लिवर, किडनी और त्वचा के रोग।
- शराब का काफी समय तक सेवन।
- जोड़ों के रोगों की वजह से विटामिन डी कम हो सकता है।
- शहरीकरण और औद्योगीकरण के फलस्वरूप ऐसी इमारतों में जहां सूर्य की किरणें नहीं पहुंच पाती हैं, उनमें अधिक समय बिताने के कारण व्यक्ति को सूर्य की रोशनी नहीं मिल पाती। नतीजतन, शरीर में विटामिन डी की कमी होने लगती है।
- वातावरण में प्रदूषण के कारण अल्ट्रावायलेट किरणें त्वचा में विटामिन डी के जज्ब होने में बाधा डालती हैंं। इस कारण इस विटामिन की कमी संभव है।

विटामिन डी और हृदय रोग
विटामिन डी की कमी के कारण हाई ब्लड प्रेशर, हृदय रोग और दिल का दौरा पड़ने की आशंकाएं बढ़ जाती हैं। एक अनुसंधान के अनुसार हाई ब्लड प्रेशर से ग्रस्त 90 प्रतिशत लोगों में विटामिन डी की कमी दर्ज की गई। विटामिन डी की कमी के कारण पैराथायरायड हार्मोन की मात्रा बढ़ जाती है और धमनियों में रक्त का दवाब भी बढ़ जाता है। यह स्थिति हाई ब्लड प्रेशर का कारण बनती है।
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धमनियों पर खराब असर
विटामिन डी की कमी से धमनियां (आर्टरीज) कठोर हो जाती हैं और उनमें कैल्शियम के जमा हो जाने से वे संकरी हो जाती हैं। इस कारण धमनियों में कम मात्रा में रक्त प्रवाह होता है। यही कारण है कि एक अध्ययन के अनुसार एंजाइना से ग्रस्त 80 प्रतिशत रोगियों में विटामिन डी की कमी दर्ज की गई। ये ऐसे रोगी थे जिनकी एंजियोग्राफी से पता चला था कि उनकी दिल की धमनियां सिकुड़ गई थीं। लगभग 56 प्रतिशत रोगियों की कोरोनरी धमनियों में रक्त प्रवाह व्यापक रूप से बहुत कम दर्ज किया गया।
डायबिटीज वाले हो जाएं सजग
विटामिन डी की कमी और मधुमेह (डायबिटीज) के मध्य विशेष संबंध है। 70 प्रतिशत डायबिटीज वालों में विटामिन डी की कमी दर्ज की जाती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि विटामिन डी पैन्क्रियाज की बीटा कोशिकाओं (जिनसे इंसुलिन बनती है) की कार्यप्रणाली को बढ़ाती है। यही नहीं, ये बीटा कोशिकाएंइंसुलिन प्रतिरोधक क्षमता को घटाकर इंसुलिन सेंसिटिविटी को बढ़ा देती हैं, जिससे बीटा कोशिकाओं की कार्यक्षमता बढ़ जाती है।
रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि
विटामिन डी शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा देती है। इस क्षमता के बढ़ने से शरीर विभिन्न प्रकार के संक्रमणों से काफी हद तक बचजाता है। यही कारण है कि विटामिन डी की कमी से शरीर में आटो इम्यून बीमारियां उत्पन्न होती हैं। जैसे र्यूमैटॉइड अर्थराइटिस और थायरॉयड ग्रंथि से संबंधित रोगों में विटामिन डी की कमी होती है। इसी प्रकार एड्स के रोगियों में विटामिन डी का सेवन इलाज में सहायक है। फेफड़ों के रोग जैसे दमा, सीओपीडी, और न्यूमोनिया में विटामिन डी की कमी होती है। इसी प्रकार रक्त कैैंसर में भी विटामिन डी कम हो जाता है।
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जानें लक्षणों को
- अनेक लोगों में विटामिन डी की कमी होते हुए भी इसके लक्षण प्रकट नहीं होते। अगर लंबे समय तक विटामिन डी की कमी बरकरार रहे, तो भी उन्हें कोई परेशानी नहीं होती। ऐसा इसलिए, क्योंकि विटामिन डी की कमी के लक्षण विशेष नहीं होते और इसके सामान्य लक्षण अन्य रोगों में भी देखे जाते हैं। जैसे एनीमिया, थायरॉयड और डायबिटीज आदि। बावजूद इसके विटामिन डी की कमी होने पर इन लक्षणों की अनदेखी न करें।
- हड्डियां कमजोर होने लगती हैं। इस कारण बार-बार फ्रैक्चर होने का खतरा बढ़ जाता है।
- मांसपेशियों में जकड़न, कमजोरी और थकान महसूस होना।
- मूड में बार-बार जल्दी-जल्दी बदलाव होना। चिंता करना, हताशा और डिप्रेशन आदि समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं।
- मांसपेशियों में दर्द और जकड़न महसूस करना।
- हाई ब्लड प्रेशर की समस्या।
- अनिद्रा और थकान की समस्या।
- कार्यक्षमता में कमी।
कमी ऐसे होगी पूरी
- बचाव इलाज से उत्तम है। यह बात विटामिन डी की कमी पर पूर्ण रूप से लागू होती है। विटामिन डी और कैल्शियम को आहार में वरीयता दें। टूना और सॉल्मन मछली, दूध, पनीर और अंडा विटामिन डी के स्रोत हैं। सुबह के वक्त 15 से 20 मिनट धूप में घूमें, जिससे विटामिन डी बन सके।
- विटामिन डी की मात्रा का परीक्षण करवाएं। यदि 20 एनएमएम से कम है तो विटामिन डी का कैप्सूल डॉक्टर के परामर्श से लें। जीवन शैली को नियंत्रित करें। याद रखें, आचार-विचार और आहार-विहार स्वस्थ जीवन के आधार हैं। स्वास्थ्यकर जीवनशैली पर अमल कर विटामिन डी की कमी से अपना बचाव कर सकते हैं।
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