'सामाजिक तनाव' से बच्चों के दिमाग पर पड़ता है बुरा असर, ऐसे करें बचाव

बच्चों का अंजान लोगों या अपने से बड़े लोगों से न घुल-मिल पाना संस्कार नहीं बल्कि एक प्रकार की मानसिक समस्या है, जिसे सोशल एंग्जायटी, सोशल फोबिया, सामाजिक चिंता या सामाजिक तनाव कहते हैं।
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'सामाजिक तनाव' से बच्चों के दिमाग पर पड़ता है बुरा असर, ऐसे करें बचाव


अगर आपके बच्चे को नए लोगों से मिलने में डर लगता है या उनसे बात करने में शर्म और घबराहट होती है, तो इसे आम समस्या मत समझिए। बच्चों का अंजान लोगों या अपने से बड़े लोगों से न घुल-मिल पाना संस्कार नहीं बल्कि एक प्रकार की मानसिक समस्या है, जिसे सोशल एंग्जायटी, सोशल फोबिया, सामाजिक चिंता या सामाजिक तनाव कहते हैं। ऐसे बच्चे इस बात को लेकर ज्यादा सचेत होते हैं कि लोग उनके बारे में क्या सोचेंगे या वो किसी बड़े से क्या और कैसे बात करेंगे। सामाजिक चिंता या तनाव (सोशल एंग्जायटी) बच्चों के मानसिक विकास के लिए खतरनाक हो सकता है। आइए आपको बताते हैं क्या है ये समस्या और कैसे कर सकते हैं इसका बचाव।

क्या है सामाजिक चिंता या सोशल फोबिया

सामाजिक चिंता एक प्रकार का डर है जो लोगों से बात करते समय लगता है खासकर ऐसे मौके पर जब आप उन लोगों को नहीं जानते हैं जिससे आप बात करते हैं। यह जीवन को काफी हद तक प्रभावित कर सकता है। कई बार लोग किसी खास परिस्थिति में भी इसके शिकार हो जाते हैं। सामाजिक चिंता को शर्माने का नाम नहीं दिया जा सकता है, यह इससे कहीं अधिक होता है। जो लोग इस समस्या से ग्रस्त होते हैं वे अकसर यह सोचते रहते हैं कि लोग उनके बारे में क्या सोचते होंगे।

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बड़े भी होते हैं प्रभावित

सामाजिक तनाव की समस्या आमतौर पर आमतौर 13 से 35 साल के लोगों में अधिक देखने को मिलती है।अगर आपका छोटी-छोटी बातों पर दिल घबराने लगता है या लोगों के बीच जाने पर अचानक आपके दिल की धड़कनें तेज हो जाती हैं, मन बेचैन हो उठता है और समझ में नहीं आता कि किया जाए, या फिर अगर रात को सोते समय आप करवटें बदलते रहते हैं और किसी भी तरह आपके मन को शांति नहीं मिलती तो ये सोशल एंग्जाइटी के लक्षण हो सकते हैं, जिसे सोशल फोबिया भी कहते हैं।

क्या है सामाजिक तनाव का कारण

सामाजिक तनाव या सोशल एंग्जाइटी डिस्‍ऑर्डर में रोगी के स्वायत्त तंत्रिका तंत्र (ऑटोनोमिक नर्वस सिस्टम) में अनुकंपी तंत्रिका तंत्र (सिंपेथेटिक नर्वस सिस्टम) की वृद्धि हो जाती है। इस दौरान शरीर में कैटेकोल अमीब्स हार्मोंन बढ़ जाता है, जिस कारण घबराहट होने लगती है। सही समय पर इलाज न होने पर यह आगे चलकर फोबिया में बदल जाता है। बदलती जीवनशैली और बढ़ते तनाव के कारण लोगों में यह समस्या तेजी से बढ़ रही है।

क्या हैं लक्षण

आमतौर पर सामाजिक तनाव से प्रभावित बच्चों में ये लक्षण देखे जाते हैं।

  • छोटी-छोटी बात पर घबरा जाना
  • लोगों के बीच जाने पर या बात करने पर दिल की धड़कन बढ़ना
  • मंच पर या लोगों के सामने खड़ा होने पर पसीना आना
  • दिमाग का काम न करना
  • फैसला करने की क्षमता कम होना
  • बोलते हुए घबराहट
  • पेट में हलचल जैसी महसूस होना
  • हाथ-पैरों में कंपन होना आदि

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कैसे बचाएं बच्चों को सामाजिक तनाव से

  • लोगों से घुलने-मिलने में बच्चे की मदद करें और उसे सहज होने का समय दें।
  • बच्चों को समझाएं कि वो किसी से कम नहीं हैं और किसी और की तरह दिखने या बनने की उनकी कोशिश बेकार है।
  • ऐसे बच्चों से बात करते समय उनसे आंख मिलाकर बात करें।
  • नए लोगों और नए दोस्तों से मिलने-जुलने के लिए बच्चे को प्रोत्साहित करें।
  • बच्चे को अच्छी कहानियां सुनाएं और मोटिवेशनल फिल्में दिखाएं। कई बार फिल्मों के चरित्रों का असर बच्चों पर ज्यादा पड़ता है।

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