
डीएचडी अर्थात अटेंशन डिफिसिट हाइपरएक्टिव डिसऑर्डर, मानसिक विकार है जो बच्चों और बड़ों दोनों को होता है। हालांकि सही देखभाल, उपचार और जानकारी की मदद से एडीएचडी के साथ भी सामान्य जीवन बिताया जा सकता है।
एडीएचडी अर्थात अटेंशन डिफिसिट हाइपरएक्टिव डिसऑर्डर, एक मानसिक विकार है जो बच्चों और बड़ों दोनों को होता है। लेकिन बच्चों में इस रोग के होने की ज्यादा आशंका रहती है। एक अनुमान के अनुसार भारत में प्रत्येक 20 में से 1 बच्चे में एडीएचडी के लक्षण देखने को मिलते हैं। क्योंकि इसके लक्षण सामान्य हैं, ऐसे में समय पर जांच व उपचार की कमी समस्या को बढ़ा देती है, हालांकि सही देखभाल और जानकारी की मदद से एडीएचडी के साथ भी सामान्य जीवन बिताया जा सकता है। तो चलिए एडीएचडी के बारे में जानें और यह भी जानें कि इस विकार के साथ जीवन को कैसे जिया जा सकता है।
एडीएचडी क्या है?
एडीएचडी अर्थात अटेंशन डिफिसिट हाइपरएक्टिव डिसऑर्डर, दिमाग से संबंधित विकार होता है जो बच्चों और बड़ों दोनों को हो सकता है। हालांकि बच्चों में इस रोग के होने की अधिक संभावना होती है। इस विकार के होने पर व्यक्ति के व्यवहार में कुछ अजीब बदलाव आ जाते हैं और याददाश्त भी कमजोर हो जाती है। यदि दूसरे शब्दों में कहा जाए तो अटेंशन डेफिसिट हायपरएक्टिविटी यानी एडीएचडी का अर्थ है, किसी चीज पर ध्यान केंद्रित करने की क्षमता को ठीक ढंग से इस्तेमाल न कर पाना। दरअसल ये समस्या कुछ रसायनों के इस्तेमाल से दिमाग की कमजोरी के कारण पैदा होती है।
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एक अनुमान के अनुसार एडीएचडी 4 से 12 फीसदी स्कूली बच्चों को प्रभावित करता है। यह लड़कियों की तुलना में लड़कों में अधिक पाया जाता है। एक अध्ययन के अनुसार पिछले 20 सालों में एडीएचडी के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। लेकिन इस बीमारी के बढ़ने का कारण यह भी है कि इसका निदान अधिक लोगों में हो रहा है। बच्चों और बड़ों में इस रोग के लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं।
एडीएचडी के कारण
एडीएचडी के निश्चित कारणों के बारे में अभी तक सटीक जानकारी नहीं मिल सकी है, लेकिन इसके मुख्य कारणों में निम्न कारण प्रमुख माने जाते हैं।
आनुवंशिक कारण
कुछ परिवारों में पीढ़ी दर पीढ़ी बच्चों में ऐसे जींस का ट्रांसफर होता है, जिससे मस्तिष्क के उन हिस्सों के ऊतक पतले हो जाते हैं, जो ध्यान से संबंधित होते हैं। कई बार समय के साथ ये ऊतक सामान्य हो जाते हैं, जिससे स्थिति में सुधार आता है।
चीनी और फूड एडिटिव
कई विशेषज्ञ हाइपरएक्टिविटी को अधिक मात्रा में रिफाइंड शुगर व फूड एडिटिव का सेवन करने से जोड़ते हैं। हालांकि इस संबंध में मतभेद भी हैं और शोध कार्य चल रहे हैं।
रासायनिक असंतुलन
मस्तिष्क के रासायनों में असंतुलन होने पर भी एडीएचडी के लक्षण उभरते हैं। मस्तिष्क में अटेंशन को नियंत्रित करने वाला हिस्सा एडीएचडी से पीड़ित बच्चों में कम सक्रिय होता है।
मस्तिष्क का चोटिल होना या समय पूर्व जन्म होना
कई बार चोट के कारण मस्तिष्क का अग्रभाग, जिसे फ्रंटल लोब कहते हैं, क्षतिग्रस्त हो जाता है, जिससे आवेगों और भावनाओं को नियंत्रित करने में समस्या आती है। वहीं समय पूर्व जन्म लेने वाले बच्चे या जन्म के समय बेहद कम वजन वाले बच्चों में भी एडीएचडी की आशंका अधिक होती है।
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एडीएचडी के साथ सामान्य जीवन कैसे जिएं
इसका कोई स्थायी उपचार नहीं है। पीड़ित बच्चे को उसके व्यवहार पर काबू रखने का अभ्यास कराया जाता है, ताकि वह सामान्य जीवन जी सके। स्टीम्युलेंट मेडिकेशन के अलावा ये थेरेपी भी कारगर पायी गयी हैं-
साइकोथेरेपी (काउंसलिंग)
इससे पीड़ित बच्चों को अपनी भावनाओं और हताशा को बेहतर ढंग से संभालना सिखाया जाता है। बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ाने का प्रयास भी किया जाता है। परिवार के सदस्यों को भी काउंसलिंग दी जाती है।
बिहेवियरल थेरेपी और डांस थेरेपी
बच्चे के व्यवहार में सुधार लाया जाता है। पीड़ित बच्चे को स्कूल का होमवर्क या दूसरे प्रैक्टिकल कार्यों के लिए सहायता उपलब्ध करायी जाती है। बच्चे को स्वयं पर नियंत्रण करना सिखाया जाता है। गुस्से पर काबू रखना या कार्य को सोच-समझकर करना सिखाया जाता है। अपनी बारी की प्रतीक्षा करना, दूसरों की सहायता करना व उनसे सहायता मांगना, दूसरों के तंग करने पर सही प्रतिक्रिया देना आदि सिखाते हैं। वहीं दूसरे बच्चों के साथ घुलने-मिलने के अलावा डांस से भी बच्चों का शरीर पर नियंत्रण बढ़ता है और वे एडीएचडी के लक्षणों पर काबू कर पाते हैं।
प्ले थेरेपी
इसमें पीड़ित बच्चे को दूसरे बच्चों के साथ खेलने के लिए बढ़ावा दिया जाता है। काउंसलर माता-पिता को बच्चे को आउटडोर व इनडोर गेम्स खेलने देने के लिए प्रेरित करते हैं, जिससे बच्चों की सेहत व नींद प्रक्रिया में सुधार आता है।
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