सामाजिक व्यवस्था वा सुरक्षा की द्रष्टी से एंटीसोशल पर्सनैलिटी डिस्ऑर्डर के मरीज़ों का चिकित्सकीय या कानूनी उपचार अति आवश्यक है। एंटीसोशल पर्सनैलिटी डिस्ऑर्डर के उपचार के लिए कई साइकोथेरेपी तकनीकों का उपयोग किया जाता रहा है। छोटी उम्र के लोगों में, परिवार या समूह साइकोथेरेपी से इस प्रवृति पर नियंत्रण पाया जा सकता है। रोजगार-परक और संबंधपरक शिक्षा, और सामाजिक समर्थन को प्रोत्साहन करने से कुछ लाभ हो सकता है। साइकोथेरेपी इस रोग के शिकार लोगों को दूसरों की भावनाओं के प्रति अधिक संवेदनशील होना सिखाती है और अपने लक्ष्यों और उद्देश्यों के प्रति एक नए, सामाजिक तौर पर स्वीकार्य एवं रचनात्मक सोच के लिए प्रोत्साहित करती है।
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इन थेरेपी से होता है इलाज
कोग्निटिव थेरेपी सोच के सोशियोपैथिक तरीके को बदलने की कोशिश करता है। बिहेवियर थेरेपी में प्रशंसा एवं दंड के उपयोग के द्वारा अच्छे व्यवहार को प्रोत्साहित किया जाता है। सामान्य आबादी में यह रोग पुरुषों में लगभग तीन प्रतिशत और महिलाओं में एक प्रतिशत पाया जाता है। जबकि मोनोरोगियों में इस रॊग का अनुपात तीन से तीस प्रतिशत पाया जाता है। सामान्यतः युवा अवस्था में इस बीमारी का गंभीर रूप देखा गया है। लकिन यह रोग मध्य आयु वाले लोगों को भी होता है। इस रोग के उपचार की बहुत नई वा आदर्श तकनीक फिलहाल मोजूद नहीं है। इस रोग से बचाव का कोई प्रमाणिक उपाय नहीं है। किन्तु व्यक्ति के सामाजिक वातावरण में सुधार से समस्या की गंभीरता में कमी लाई जा सकती है। खासकर अगर ये सुधार जीवन के शुरुआती दौर में हो।
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उपचार के अन्य विकल्प
कुछ मामलों में, रोग के उपचार के लिए दवाओं का सहारा लिया जाता है। सेलेक्टिव सेरेटोनिन रिअपटेक इनहिबिटर(एसएसआरआईज), जैसे-फ्लुक्सेटाइन(प्रोजैक) और सेर्ट्रालाइन(जोलोफ्ट), आक्रामकता और चिड़चिड़ापन को कम कर सकती हैं। जिन लोगों को यह समस्या होती है, वे ये नहीं समझ सकते कि उनके साथ कुछ समस्या है, इसलिए इनमें से किसी भी उपाय का आजमाना कठिन होता है। अगर जीवन के प्रारंभिक दौर में ही इसकी चिकित्सा शुरू हो गई तो इसके सफल होने की संभावना अधिक होती है, लेकिन लंबे समय तक ऐसी सोच औऱ व्यवहार रहने के बाद इसे बदलना कठिन होता है। इसके अलावा, जितने अधिक दिनों तक व्यक्ति इस व्यक्तित्व शैली या समस्या के साथ जीता है, वह बदलाव के लिए प्रयत्न करने में उतना ही कम रुचि रखता है। कुछ लोगों में, उग्रता या चिड़चिड़ापन उम्र बढने के साथ घटता है, लेकिन कुछ व्यक्तित्वपरक विशेषताएं बनी रह सकती हैं।
प्रायः एंटीसोशल बिहेवियर के पीड़ितों को आपराधिक न्याय प्रणाली के माध्यम से ही सुरक्षा मिल पाती है। कुछ विरले मामलों में, सुधार तंत्र (जेल और कैद) इलाज या रिअबिलिटेशन(पुनर्वास) का अवसर उपलब्ध कराता है, लेकिन प्रायः ऐसा वातावरण, जिसमें असामाजिक लोग बड़ी संख्या में होते हैं, असामाजिक व्यवहार को बढ़ावा ही मिलता है।
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