मानसिक तनाव कैसे दूर करें

बच्चों में मानसिक बीमारियों की संख्‍या आज बढ़ रही हैं और शोधों के अनुसार इससे बचने के लिए बच्‍चों को मानसिक, भावनात्मक और व्यवहारगत स्वास्थ्य के बारे में प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। बच्‍चे जब स्‍कूल जाने लगें, तो उनका खास ख्‍याल रखें।
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मानसिक तनाव कैसे दूर करें


मानसिक बीमारियांमुंबई के बच्चों के दिमाग पर स्कूल का कुछ ऐसा असर है कि उनमें मानसिक रोगों के कम से कम 105 लक्षण हैं। यही नहीं, लगभग एक हजार में से केवल 20 बच्चे ही स्कूल जाने के इच्छुक हैं।

 

एसएनडीटी महिला विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान विभाग के अध्यक्ष एचएल कैला ने पांच से 15 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों पर शोध किया है। इसमें बच्चों को होने वाली कई तरह की पीड़ा की पहचान हुई है। इनसे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर कितना असर पड़ा, इसे 105 लक्षणों के रूप में देखा जा सकता है।

 

पीड़ा की वजह से बच्चों का सामान्य व्यवहार और विकास रुक जाता है। कैला ने बताया कि तेजी से भागती दुनिया में बच्चों के हुनर और कौशल को निखरने का मौका मिलना चाहिए। लेकिन इस तरह की पीड़ाओं से उनके भविष्य की संभावनाओं पर खराब असर पड़ता है।


कैला ने बताया कि लड़के-लड़कियों और किशोरों पर उनके स्कूल समय में 58 बुरी चीजें होती हैं। अध्ययन में 14 स्कूलों के 966 बच्चों को शामिल किया गया। इनमें से केवल 20 बच्चों को ही स्कूल का वातावरण रास आया। बाकी को स्कूल में कुछ न कुछ बुरा व्यवहार होने की शिकायत है। बच्चों को सबसे ज्यादा दिक्कत इस बात से है कि शिक्षकों के हाथ में छड़ी होती है और वे कड़क आवाज में बात करते हैं।


अध्ययन में बताया गया कि स्कूल में बच्चों की पिटाई होती है। उन्हें तमाचे मारे जाते हैं, ताने कसे जाते हैं, यहां तक कि यौन दु‌र्व्यवहार भी होता है। इन सबसे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। इन घटनाओं से बच्चों में नर्वस होना, बिना बात के गुस्सा हो जाना और कम खाना जैसी दिक्कतें आ जाती हैं।


कैला ने अपनी किताब 'विक्टिमाइजेशन आफ चिल्ड्रेन' में सिफारिश की है कि शिक्षक-अभिभावक संघ के सदस्यों को बच्चों के मानसिक, भावनात्मक और व्यवहारगत स्वास्थ्य के बारे में प्रशिक्षण दिया जाए। सभी स्कूलों में सक्रिय ऐसे संगठन स्कूलों में लोकतंत्र की बहाली कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि 17 प्रतिशत बच्चों ने स्कूलों में यौन शिक्षा को नापंसद किया। कैला के मुताबिक हर स्कूल में मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम चलाने के साथ-साथ शिक्षकों को भी इससे जोड़ना चाहिए।

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