किडनी की पथरी बहुत तकलीफ देती है। पथरी का दर्द कई बार असहनीय होता है, जिसके कारण व्यक्ति अपना संतुलन खो सकता है। एलोपैथी में पथरी के इलाज का इलाज ज्यादातर सर्जरी के द्वारा ही किया जाता है। मगर आयुर्वेद में ऐसे कई तरीके हैं जिनसे छोटी और टुकड़ों में जमा हुई पथरी को बिना सर्जरी के भी आसानी से शरीर से निकाला जा सकता है। पत्थरचट्टा भी उन तरीकों में से एक है। आयुर्वेद में पत्थरचट्टे के पौधे को किडनी स्टोन और प्रोस्टेट ग्रंथि से जुड़े रोगों के इलाज में उपयोगी माना गया है। इसे पर्णबीज भी कहते हैं। इसके पत्ते को मिट्टी में गाड़ देने से ही यह उस स्थान पर उग जाता है। तासीर में सामान्य होने की वजह से इसका प्रयोग किसी भी मौसम में कर सकते हैं। आमतौर पर इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है।
किडनी की समस्याओं में पत्थरचट्टा
पत्थरचट्टा के प्रयोग से पथरी आसानी से बाहर आ जाती है। महिलाओं में वाइट डिस्चार्ज, पेशाब में जलन व पुरुषों में प्रोस्टेट की समस्या में भी यह बहुत ही लाभकारी है। इसके सेवन से 5-10 mm तक की पथरी पेशाब के जरिए बाहर निकल जाती है।
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कैसे करें प्रयोग
पत्थरचट्ठा के 4-5 पत्तों को एक गिलास पानी में पीसकर सुबह-शाम जूस के रूप में लगभग 1-2 माह तक पिएं। जूस के अलावा पत्तों को चबाकर व पकौड़े बनाकर भी खाया जा सकता है। स्वस्थ व्यक्ति भी यदि इसके पत्तों का सेवन नियमित रूप से करे तो वह कई परेशानियों से बच सकता है।
इन बातों का ध्यान रखें
- इस दौरान तम्बाखू, चूने, सुपारी आदि का सेवन करने से बचें।
- एक गमले में पत्थरचट्टा का पौधा लगा लें, इस की डाली या पत्ता ही लग जाता है और कुछ ही दिनों में पौधा बन जाता है।
- प्रति सप्ताह हम से कम एक पत्ते का सेवन करते रहें या सब्जी में एक-दो पत्ते डालें।
- जिनको बार-बार पथरी होती रहती है, वे हर दूसरे दिन पत्थर चट्टा का आधा पत्ता सेवन करें, लेकिन बिंदु एक में वर्जित अस्वास्थ्यकर व्यसनों के साथ ही टमाटर के बीजों का सेवन भी नहीं करें।
पथरी की समस्या बहुत ही कष्टदायी होती है, इसलिए अगर इस प्रयोग को आजमाने के बाद भी पथरी की समस्या दूर नहीं हो रही है तो चिकित्सक से संपर्क अवश्य करें।
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