
खुशियों की चाहत किसे नहीं होती। इसी चाहत के चलते, हम खुशियों को हासिल करने की ऐसी दौड़ में शामिल हो जाते हैं कि बहुत कुछ हमसे छूट जाता है। असली खुशी आपको कुछ पल आनंद का अहसास नहीं, बल्कि एक लंबी और गहरी संतुष्टि देती है।
बुरा वक्त हर किसी की जिंदगी में आता है। उस बुरे वक्त से उबरने के लिए हम सबको जिस चीज़ की तलाश होती है, वो है खुशी। खुश रहने की सलाह आपका परिवार, आपके दोस्त और रिश्तेदार तो देते ही हैं, उसके अलावा अखबार-मैगजीन, किताबें और तमाम ब्लॉग्स आपको खुश रहने की जरूरत और फायदों के बारे में बताते रहते हैं। ऐसे में खुश रहने का आप पर एक तरह से दबाव भी तो बनने लगता ही है।
खुशी पाने की राह वैसे तो मुश्किल नहीं है, लेकिन जब हम खुशियां पाने के लिए जरूरत से ज्यादा कोशिशें करने लग जाते हैं तो इस दौरान कई गलतियां कर बैठते हैं। सच ये है कि जब हम अपना ध्यान सिर्फ खुशी पाने की तरफ लगाने लगते हैं, तो ऐसी तमाम चीज़ें हैं जिनको हम खो देते हैं या अनदेखा कर देते हैं। आइये जानते हैं ऐसी ही पांच गलतियां जो हम खुशी पाने की चाह में कर बैठते हैं।
बाधाओं और दुख को असफलता समझना
जब हम खुशी की तलाश करते हैं तो जो चीजें हमें दुखी करती हैं, उन्हें हम असफलता के रूप में लेने लगते हैं। जैसे कि कोई चुनौती जिसे हम पूरा न कर पाए हों। जबकि हमारे निजी विकास के लिए वो बहुत जरूरी हो। नौकरी चली जाना, करीबी दोस्त का धोखा देना या फिर किसी के द्वारा अस्वीकार कर दिया जाना। ऐसे मौंकों पर आप परेशान हुए या फिर उन्हें अनुभव समझ कर स्वीकार कर लिया? सच ये है कि चुनौतिया कभी आसान नहीं होतीं। लेकिन अगर हम ऐसे वक्त को उसी तरह अपना लें जैसे हम खुशी के वक्त को अपना लेते हैं तो ये मुश्किल वक्त भी हमें बेहतर इंसान बनाने में मदद कर सकता है।
आनंद को खुशी समझ लेना
खुशियों को तलाशने की अपनी बेसब्री में हम आनंद (हर्ष) को तलाशने लगते हैं क्योंकि इसे कम वक्त में पाना आसान है। इससे हम गलत तरीके से आनंद देने वाले अनुभवों पर निर्भर हो जाते हैं। जैसे कि उदास होने या दुखी होने पर कहीं घूमने चले जाना। लेकिन इस तरह के आनंद ऐसे होते हैं जिनकी चाहत बढ़ती ही जाती है, और हमें उनकी लत लग जाती है। आनंद थोड़े ही वक्त के लिए रहता है, और हमें पूरी तरह से संतुष्ट भी नहीं कर पाता। लंबे समय तक बने रहने वाली खुशी को पाना थोड़ा मुश्किल जरूर है लेकिन ये सार्थक अनुभव ही आपको असली खुशी दे सकते हैं। जैसे कि कोई शौक पैदा करना, कोई नया स्किल ढूंढना, दूसरों के लिए कुछ अच्छा करना आदि।
अपने आसपास के अद्भुद लोगों को अनदेखा करना
खुशियों की तलाश हमें आत्मकेंद्रित कर सकती है। ऐसे में हम देने की बजाय सिर्फ और सिर्फ लेने के बारे में सोचने लगते हैं। हमारा सारा ध्यान सिर्फ अपने ऊपर होता है। हम अपनी खुशी की चाहत को अपनी प्राथमिकता बना लेते हैं, और हमारा परिवार, दोस्त और अजनबी भी, जिन्हें हमारी जरूरत होती है, उनको अनदेखा कर देते हैं। जबकि असल में, दूसरों की मदद करके हम आसानी से सच्ची खुशी हासिल कर सकते हैं। दिल को खुश करने और संतुष्ट होने का इससे अच्छा और कोई तरीका हो ही नहीं सकता।
ज्यादा उम्मीदें लगाना
अक्सर ऐसा होता है कि हम किसी खास मौके या इंसान से ऐसी उम्मीदें लगा लेते हैं, जो जरूरत से ज्यादा होती हैं। जाहिर है, ऐसी उम्मीदों का पूरा होना बहुत मुश्किल होता है। जब ऐसी उम्मीदें पूरी नहीं होत पाती तो हम परेशान हो जाते हैं। फौरन दुख और उदासी में घिर जाते हैं। जबकि गलत कुछ नहीं हुआ है। सिर्फ आपने जैसा सोचा था, चीजें उस हिसाब से नहीं हुई तो इसका मतलब ये नहीं होता कि कुछ खराब हो गया है। इसलिए, अनुभवों पर अपनी उम्मीदों का भार न थोपें। जो जैसा हो रहा है, उसमें अपनी बेहतरीन भूमिका निभाईये, अपना 100 प्रतिशत दीजिए, और फिर जो परिणाम निकले, उसे खुशी खुशी अपनाइये। कुछ कमी होने पर आगे के लिए सीख तो हमेशा ली ही जा सकती है।
थोड़ी सी परेशानी में हार मान लेना
अपनी जिंदगी के ऐसे वक्त के बारे में सोचिये जब आपने किसी मुसीबत का सामना किया था, लेकिन उसके बाद आपको कुछ बहुत खास हासिल हुआ था। इसका मतलब ये है कि अगर हमें अपनी ज़िंदगी में नई और खास मौके पाना है तो, हमें हमेशा खुशी भरा वक्त नहीं मिल सकता। थोड़ी सी परेशानी झेलना थोड़ा सा दुख बर्दाश्त करना भी जरूरी होता है।
संपूर्णता ही सफल जीवन की सच्चाई है, न कि सिर्फ खुशियां। संपूर्णता के लिए हमें दुख, गुस्सा, दर्द और असफलताओं को भी स्वीकार करना होगा। इन सबके बाद ही हमें खुशी का अहसास होगा। जिंदगी का मतलब सिर्फ खुशिया हासिल करना ही नहीं है, बेहतर इंसान बनने की लगातार कोशिश करते रहना ही जिंदगी का असली लक्ष्य होना चाहिए।
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