कहा जाता है कि बीमारियों की शुरुआत पेट से होती है। अगर पेट कब्जियत से मुक्त हो तो उसकी कार्यप्रणाली सुचारु होती है और जब पेट की कार्यप्रणाली सुचारु होती है तो तमाम बीमारियां अपने-आप दूर रहती हैं। स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है कि पेट को दुरुस्त रखा जाए और इस दृष्टि से योगमुद्रासन का नियमित अभ्यास एक अच्छा उपाय हो सकता है। चूंकि योगमुद्रासन रीढ़ से जुड़ी नसों की कार्यप्रणाली को भी सही करता है, इसीलिए योग की साधनाओं की उपयोगिता बहुत महत्वपूर्ण है।
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आसन की विधि
1. टांगों को सामने फैला कर बिलकुल सीधा बैठें।
2. अब दायें घुटने को मोड़कर पांव को बायीं जांघ पर इस तरह रखें कि एड़ी घुटनों के मूल से सटी हो।
3. अब बायीं टांग को भी घुटनों से मोड़कर पांव को दायीं जांघ पर वैसे ही रखें जैसे पहले दायें पांव को बायीं पर रख चुके हों।
4. वस्तुत: यह पद्मासन है। जो योगमुद्रासन की साधना के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है। अगर पद्मासन मैं बैठना आपके लिए संभव न हो तो आप अपनी सुविधानुसार अर्द्ध पद्मासन में भी बैठ सकते हैं। इसके लिए आपको घुटने तो दोनों मोड़ने होंगे, लेकिन जांघ पर एक ही पांव रखना होगा। दूसरा पांव आप एक पैर के नीचे रख सकते हैं।
5. अब आप अपनी आंखें बंद कर लें। गहरी सांस लें और शरीर को ढीला छोड़ दें।
6. दोनों हाथों को पीठ की तरफ पीछे ले जाएं और एक हाथ की कलाई को दूसरे हाथ से पकड़ लें।
8. सांस को धीरे-धीरे बाहर की तरफ छोड़ते हुए आगे की तरफ इस तरह झुकें कि ललाट फर्श की तरफ हो।
9. शरीर को फिर से ढीला छोड़ दें और सामान्य ढंग से सांस लें। जितनी देर तक आसानी से संभव हो इसी मुद्रा में बनी रहें।
10. इसके बाद सांस को अंदर की ओर खींचते हुए वापस पहले जैसी अवस्था में आ जाएं।
11. बैठने के लिए पद्मासन की मुद्रा में पांवों को आपस में अदल-बदल कर यानी बायें की जगह दायें और दायें की जगह बायें पैर को रखकर इसी प्रक्रिया को दुहराएं।
इस आसन से लाभ
- यह पेट की मांसपेशियों का मसाज करता है। इससे पेट के विभिन्न हिस्सों में होने वाली छोटी-बड़ी बीमारियों का उपचार भी हो जाता है। खास तौर से कब्जियत और अपच के मामले में यह अत्यंत लाभकारी साबित होता है।
- रीढ़ की हड्डी को भी यह पोषण देता है। रीढ़ से जुड़ी हुई नसों में लोच उत्पन्न करके यह उनकी कार्यप्रणाली को अधिक सुचारु बनाता है और स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है।
सावधानियां
- अगर आपकी आंखों, हृदय या पीठ में लंबे समय से कोई गंभीर रोग हो तो इस आसन का अभ्यास न करें।
- अगर किसी तरह का ऑपरेशन या प्रसव हुआ हो तो भी कुछ दिन रुक कर स्वास्थ्य सामान्य हो जाने के बाद ही इसका अभ्यास करना चाहिए।
कुछ खास बातें
- आसन करते हुए अगर आप पर्याप्त समय तक इसका अभ्यास न कर सकें तो थोड़े-थोड़े समय के लिए दो-तीन बार इसका अभ्यास कर सकती हैं।
- इस आसन का अभ्यास या तो सुबह नाश्ते के पहले कर लें या फिर दोपहर के भोजन के कम से कम चार घंटे बाद शाम को करें।
- योगमुद्रासन के बाद कोई ऐसा आसन भी करना चाहिए जिसमें पीठ पीछे की ओर मोड़ी जाती हो।
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Image Courtesy: katsaksyoga
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