एचआईवी और एड्स ऐसी बीमारियां हैं जो गंभीर और जानलेवा तो हैं ही, लेकिन इनके बारे में जनसामान्य में बहुत सारी भ्रांतियां भी फैली हुई हैं जैसे- एचआईवी का कोई इलाज नहीं है, एचआईवी ग्रस्त महिला के बच्चे को भी एचआईवी हो जाता है, एचआईवी रोगी को छूने से एचआईवी का वायरस हमें भी लग जाएगा आदि। इन सभी भ्रांतियों के कारण ही एचआईवी को आज दुनियाभर में सबसे ज्यादा डरावनी बीमारी के रूप में रूप में जाना जाता है। इन भ्रांतियों को दूर करना जरूरी है क्योंकि इनके कारण ही दुनियाभर में लाखों लोग हर साल अपनी जान गंवाते हैं। सबसे पहली बात कि एचआईवी एड्स से पहले की अवस्था है और अगर शुरुआत में ही पता चल जाए, तो इस बीमारी से होने वाले नुकसान को बहुत हद तक रोका जा सकता है। दूसरी बात कि एक गर्भवती स्त्री जिसे एचआईवी है, एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकती है। आइये जानते हैं कि कैसे गर्भावस्था के दौरान गर्भवती स्त्रियां अपने बच्चे को एमटीसीटी यानि मदर टू चाइल्ड ट्रांसमिशन एचआईवी से बचा सकती हैं।
कितना खतरा होता है शिशु को?
ये बात सच है कि सामान्यतः अगर मां एचआईवी ग्रस्त है तो बच्चे को एच्आईवी होने की संभावना होती है लेकिन इससे शिशु को बचाया जा सकता है अगर सही समय पर इसका पता चल जाए और इलाज शुरू हो जाए तो शिशु को इस खतरे से बचाया जा सकता है। एचआईवी का पता चलते ही अगर मां का एंटी रेट्रो वायरल ट्रीटमेंट (एआरटी) शुरू कर दिया जाए तो गर्भवती मां से शिशु में एचआईवी के संक्रमण पहुंचने के खतरे को कम किया जा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि महिलाएं गर्भावस्था की शुरुआत में ही एचआईवी टेस्ट करवा लें। इसके लिए आपको गर्भावस्था के दौरान और कई बार शिशु के पैदा होने के बाद भी दवाइयां और कुछ जरूरी ट्रीटमेंट्स दिये जाते हैं। बिना किसी इलाज के गर्भवती स्त्री से उसके शिशु में एचआईवी का वायरस पहुंचने की संभावना 15% से 45% तक होती है जबकि सही समय पर अगर इलाज शुरू हो जाए तो ये खतरा महज 5% तक रह जाता है।
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स्तनपान करवाने से भी फैलता है एचआईवी
अगर मां एचआईवी पॉजिटिव है तो उसे अपने शिशु को ब्रेस्टफीडिंग करवाने से भी बचना चाहिए क्योंकि इससे भी बच्चे में एचआईवी के संक्रमण पहुंचने का खतरा होता है। इसे चिकित्सा की भाषा में वर्टिकल ट्रांसमिशन कहते हैं। अगर संभव है तो मां को अपने बच्चे को स्तनपान नहीं करवाना चाहिए और इसका कोई दूसरा विकल्प तलाशना चाहिए। जैसे सामान्य अवस्था में शिशु को जन्म से 6 माह के बाद तक सिर्फ मां का दूध ही पिलाने की सलाह दी जाती है लेकिन ऐसे मामलों में चिकित्सक फार्मूला मिल्क पिलाने की इजाजत दे सकते हैं लेकिन इसके साथ-साथ कुछ सप्लीमेंट्स भी शिशु को देने पड़ते हैं जो फार्मूला मिल्क से उसे नहीं मिल पाता है।
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डिलीवरी के समय विशेष सावधानी
अगर मां एचआईवी पॉजिटिव है तो डिलीवरी के समय विशेष सावधानी की जरूरत होती है क्योंकि मां के रक्त या शरीर के अंदर के किसी भी द्रव से बच्चे को इस बीमारी का वायरस लग सकता है। ऐसे मामलों के लिए डिलीवरी के लिए डॉक्टरों को विशेष एचआईवी किट दी जाती है, जिसको डिलीवरी के बाद डिस्पोज कर दिया जाता है। वहीं सिजेरियन के समय सावधानी की सबसे ज्यादा जरूरत होती है क्योंकि बच्चे के शरीर में एक छोटा सा कट भी उसे इस गंभीर बीमारी का शिकार बना सकता है। सबसे ज्यादा सावधानी रखनी पड़ती है। मां और बच्चे को किसी भी तरह से कट लगने पर शिशु तक संक्रमण पहुंच सकता है। इसलिए इस समय डॉक्टरों को सावधानी रखने की जरुरत पड़ती है।
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