सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होता है, इससे जानलेवा कर्क रोग (कैंसर) होता है। लेकिन पहले की तुलना में सिगरेट के कश आपके लिये और भी जानलेवा बन गए हैं। बीते 5 दशकों से तंबाकू के उत्पादन और इससे बनाए जाने वाले पदार्थों की गुणवत्ता में आई गिरावट के चलते सिगरेट कुछ ज्यादा ही खतरनाक हो गई है। चलिए विस्तार से जानें कि बीते 50 वर्षों में ज्यादा जानलेवा कैसे बन गई है सिगरेट। -
कैंपेन फॉर टोबेको फ्री किड्स का शोध
कैंपेन फॉर टोबेको फ्री किड्स अभियान ने एक रिपोर्ट तैयार की है, जिसके अनुसार सिगरेट बनाने में बीते 50 सालों में करीब दस बदलाव आए हैं। वहीं इस अभियान से जुड़े डॉक्टरों के अनुसार, आज के समय में मिलने वाली सिगरेट्स 1964 में बिकने वाली सिगरेट्स की तुलना में सेहत के लिये ज्यादा बड़े खतरा पैदा कर रही हैं। संस्था के मुताबिक, बीते पांच दशक में सिगरेट के 'डिजाइन और इसे बनाने में इस्तेमाल चीजों में हुए बदलावों' के कारण धूम्रपान कई गुना अधिक जानलेवा बन चुका है।
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पांच दशक में सिगरेट के साथ हुए हैं ये बदलाव
रिपोर्ट के अनुसार, आज के समय में धूम्रपान करने वाले लोगों को कैंसर व सांस से जुड़ी अन्य बीमारियां होने का खतरा और भी बढ़ गया है। 1964 के मुकाबले भले ही आज कम लोग धूम्रपान करते हों, लेकिन इससे होने वाला नुकसान कहीं ज्यादा है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि गत 50 वर्षों में तंबाकू कंपनियों ने ऐसे प्रोडक्ट्स इजात किए हैं, जो प्रभावशाली ढंग से नशे की लत लगाते हैं, युवाओं को पहले से कहीं ज्यादा लुभाते हैं और उनके लिए ज्यादा नुकसानदायक भी हैं। साथ ही युवाओं में सिगरेट की लत पैदा करने के लिए तंबाकू उत्पादन करने वाली कंपनियां कई तरह की ट्रिक्स भी अपना रही हैं। चलिए जानने की कोशिश करते हैं कि बीते पांच दशक में सिगरेट में कैसे-कैसे बदलाव आए हैं -
लेवूलीनिक एसिड, एडेड शुगर और एसेटएल्डीहाइड
सिगरेट को ज्यादा स्मूद बनाने के लिए अब अलग से इसमें एसिड सॉल्ट्स (लेवूलीनिक एसिड जैसे) मिलाए जाते हैं। मेडिकल एक्सपर्ट्स के अनुसार लेवीलीनिक एसिड धूम्रपान करने वाले इंसान के दिमाग पर नकारात्मक असर डालता है। यह निकोटीन को शरीर के नर्वस सिस्टम के न्यूरॉन्स के ग्रहण कर पाने योग्य बना देता है और फिर धीरे-धीरे निकोटीन की लत लग जाती है। इसे अलावा सिगरेट में एडेड शुगर का इस्तेमाल भी किया जाने लगा है, जिससे सिगरेट के धुएं को गले से नीचे उतारना आसान हो जाता है, जबकि एसेटएल्डीहाइड निकोटीन के नशीले प्रभाव को बढ़ाता है। यह आमतौर पर शरीर में स्वाभाविक रूप से बनता है और अलग से इसे लेने पर इससे फेफड़ों को नुकसान होता है। यह दिल और खून की धमनियों को भी नुकसान पहंचाता है।
अमोनिया कंपाउंड
अमोनिया के कुछ प्रकार के कंपाउंड सिगरेट में मिलाने पर निकोटीन का दिमाग पर असर जल्दी होता है। लेकिन ध्यान रहे कि अमोनिया एक जहरीली गैस है, जो रंगहीन होता है और काफी तीखी गंध वाला होती है। इसे रासायनिक उर्वरकों और सफाई करने वाले प्रोडक्ट्स में इस्तेमाल किया जाता है। सिगरेट के माध्यम से इसे लेने पर गले में खराश व संक्रमण, सांस फूलना और कफ होने आदि समस्याएं होती हैं।
मेंथॉल और ज्यादा छिद्रदार फिल्टर्स
सिगरेट में मेंथॉल मिलाने के बाद सिगरेट पीने पर गले में ठंडक का अहसास होता है। लेकिन अमेरिकन कैंसर सोसाइटी का मानना है कि मेंथॉल सिगरेट की लत साधारण सिगरेट के मुकाबले अधिक तेज होती है। शोध बताते हैं कि मेंथॉल सिगरेट पीने वालों को इसे छोड़ना ज्यादा मुश्किल होता है। वहीं सिगरेट में इस्तेमाल फिल्टर में अब ज्यादा छिद्र होते हैं, जिसके चलते सिगरेट पीने वाला व्यक्ति ज्यादा बड़ा कश भर पाता है। जिससे इंसान पहले के मुकाबले 30 प्रतिशत तक ज्यादा धुआं खींचता है। और जितना ज्यादा धुआं, उतना ज्यादा नुकसान। इसके अलावा सिगरेट कंपनियां तय मात्रा तक ही सिगरेट में तंबाकू की मात्रा रखते हैं ताकि नशे की लत पैदा की जा सके, लेकिन तय मात्रा बहुत नुकसान पहुंचाने के लिये काफी है।
2014 में आई सर्जन जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार, कई सिगरेट्स में ब्लेंडेड तंबाकू (मतलब कई तरह के तंबाकू का मिश्रण) का इस्तेमाल किया जाता है, और इनमें कैंसर पैदा करने वाले तत्व अपेक्षाकृत अधिक होते हैं। ब्लेंडेड सिगरेट में तंबाकू वाले तत्व नाइट्रोसेमीन्स की मात्रा भी अधिक होती है। यह जानवरों के फेफड़ों में कैंसर पैदा करने वाला तत्व है, जो इंसानों के लिए भी उतना ही घातक होता है। ये परिणाम कैंपेन फॉर टोबेको फ्री किड्स के द्वारा किए गए शोध से जुड़े दस्तावेज और कुछ अन्य वैज्ञानिक शोध पर आधारित हैं।
Facyt Source - tobaccofreekids.org
Image Source - Getty
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