
कर्नाटक के बेलगाम शहर में रहने वाले 18 साल के मोईन जुनैदी की लंबाई 18 इंच है और मोईन की हड्डियों में 300 से ज्यादा फ्रेक्चर हैं। मोईन अपनी पूरी जिंदगी में कभी जमीन पांव रख कर नहीं चल पाया। लेकिन मोईन ने साबित किया है कि जिन लोगों के हौसले बुलंद होते हैं उन्हें अपनी प्रतिभा को साबित करने के लिए जमीन तक सीमित नहीं रहना पड़ता। जमीन पर चल ना भी सकने वाले मोईन जुनैदी की पानी में रफ्तार काबिले तारीफ है। मोईन का सपना है कि अगले पैरा ओलंपिक में वो भारत के लिये स्वर्ण पदक लेकर आए।

सुपर स्विमर मोईन की कहानी
मोईन जुनैदी जब केवल नौ महीने का था, तब ही उसकी हड्डी टूट गई और उस समय मोईन खड़े होकर चल तक नहीं पाता था। जमीन पर चलते-चलते जब अचानक उसके शरीर से कुछ टूटने जैसी आवाज आई तो किसी ने सोचा तक नहीं था कि मोईन की हड्डी टूटी है। लेकिन जब घंटेभर से ज्यादा देर तक मोईन रोता रहा तो घर वाले उसे डॉक्टर के पास लेकर गए, जहां पता चला कि वह ऑस्टियोजेनसिस इमपरफेक्टिया नाम की बीमारी से पीड़ित है। इस लाइलाज बीमारी को ब्रिट्टिल बोन डिसीज नाम से भी जाना जाता है। इस बीमारी की वजह से मोईन की हड्डियां दिनों-दिन टूटती गई और एक दूसरे से जुड़कर गांठ बनाती रहीं।
लेकिन बावजूद इसके मोईन दुनिया का बेहतरीन विकलांग तैराक बना। इस कमाल के तैराक ने 2013 के अंतरराष्ट्रीय व्हीलचेयर और विकलांग विश्व जूनियर खेलों में स्वर्ण पदक जीता है। और इसके अगले साल इन्हीं खेलों में मोईन ने बैकस्ट्रोक तैराकी में चौथा स्थान हासिल किया था।
आत्मविश्वास और लगन के बल पर मोईन कुछ ही महीनों में तैराकी सीख गया और 9 महीने बाद ही पहली प्रतिस्पर्धा में हिस्सा लिया और स्वर्ण पदक जीता। मोईन दे और दुनिया के लिये आत्मविश्वास और जिंदादिली की एक मिसाल है।
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