जब भी बच्चे बिगड़ते हैं तो अक्सर माता पिता इसका इल्जाम उनकी संगत पर और मोबाइल इंटरेट पर ज्यादा वक्त बिताने पर डालते हैं। जबकि यह पूरी तरह सही नहीं है। कई बार माता—पिता का खराब और रूढ़ रवैया भी बच्चों के बिगड़ने का कारण बनता है। जिस तरह 5 साल तक की उम्र के बच्चों को अपने पेरेंट्स का भरपूर साथ न मिलने पर वह आॅटिज्म के शिकार हो जाते हैं ठीक उसी तरह हेलिकॉप्टर पेरेंटिंग यानि कि माता पिता का सख्त रवैया बच्चों को सुधारने के बजाय उन्हें बिगाड़ने का काम करता है। जिसका नतीजा अभिभावक को बच्चों के उल्टे सीधे जवाब और गलत आदतों के रूप में भी भुगतना पड़ सकता है।
जब पेरेंट्स बिना अपने बच्चों को समझें उनसे हर वक्त क्यूं, क्या जैसा सवाल पूछते हैं तो बच्चा चिड़चिड़ा होने के साथ ही झूठ बोलने को भी मजबूर हो जाता है। जबकि पेरेंट्स को लगता है कि ऐसा करने से वह अपने बच्चों की गलत हरकतें सुधार रहे हैं। आज हम पेरेंट्स के लिए कुछ ऐसी टिप्स बता रहे हैं जिनसे आपको करने से बचना चाहिए और कुछ ऐसी बातें भी बता रहे हैं जिन्हें अपनाने से आप अपने बच्चों की अच्छी परवरिश कर सकते हैं।
बच्चों को डांटे या मारे नहीं
बच्चों को डांटना और मारना खराब परवरिश करने की सबसे बड़ी निशानी है। जब बच्चे कोई काम करते हैं, तो वो अपनी समझ के अनुसार करते हैं। गलत काम करने या गलत निर्णय लेने पर आप बच्चों को मारने के बजाय उन्हें मारने के बजाय सही और गलत में फर्क समझाएं। बच्चों को मारने से बच्चों के दिमाग पर बुरा असर पड़ता है और वो अगली बार वही गलती होने पर आपसे झूठ बोल सकता है। इसलिए पेरेंट्स अपनी इस आदत को आज ही बदल लें।
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पहले खुद को समझें फिर बच्चों को
पेरेंट्स द्धारा बच्चों पर हर बात थोपना बहुत गलत आदत होती है। बच्चों को अच्छे संस्कार या उनसे किसी भी तरह की उम्मीद करने से पहले अपनी बुरी आदतों को बदलना बहुत जरूरी होता है। इसलिए जो भी चीजें आप अपने बच्चों से चाहते हैं कोशिश करें कि पहले उसे स्वयं करके दिखाये। क्योंकि बच्चा वही करता है जो अपने आसपास देखता है। इसके लिये किताबों के साथ कुछ समय गुजारना, देर रात तक टीवी न देखना, चीजों को सही जगह पर रखना, बच्चों के समाने कभी भी झगड़ा न करना आदि जैसे कुछ अच्छी आदतों को खुद में विकसित करनी होगी। ये चीतें वाकई काम करती हैं।
बच्चों के साथ फ्रेंक रहें
कई लोगों की मानसिकता होती है कि अगर वह अपने बच्चों के साथ फ्रेंक रहेंगे तो बच्चे को बिगड़ने के लिए बल मिलेगा। लेकिन वह मूर्ख लोग यह नहीं जानते हैं कि फ्रेंक रहने से बच्चा आपके साथ दोस्त की तरह सारी बातें बताएगा। फिर आप उसे जो सलाह देंगे वह उसे वाकई में अपनाएगा। बच्चों के सिर पर बैठने या फिर उन पर चौबीस घंटे नजर रखने के बजाय यदि आप बच्चों के साथ दोस्ती का रिश्ता रखेंगे तो ज्यादा फायदे में रहेंगे। आजकल शहरों में पैरेंट वर्किंग होने के नाते अपने बच्चों के साथ औसतन चार घंटे ही गुजार पाते हैं, जो बच्चों के विकास के लिए काफी नहीं हैं।
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बच्चों के लिए कुछ स्पेशल करें
बच्चे वही करते हैं जो वह अपने माता पिता को बचपन से करता हुआ देखते हैं यानि कि बच्चों के लिए उनके पेरेंट्स ही उनके रोल मॉडल होते हैं। माता-पिता को हर समय लड़ते-झगड़ते देखना, उनका अलगाव होना और बच्चों के साथ मारपीट करने वाले माता-पिता के साथ रहने वाले बच्चे झगड़ालू बन जाते हैं। घर में होने वाले तनाव, लड़ाई-झगड़े का असर बच्चों पर सबसे ज्यादा पड़ता है। बच्चों के असमय वयस्क होने से उनकी सोच, उनका मानसिक स्तर, असमय शैक्षिक और शारीरिक परिपक्वता के कारण वह चीजों को जिस आधे-अधूरे ढंग से समझते या जानते हैं। इस सबका उन पर नकारात्मक असर होता है।
इसलिए अगर आप चाहते हैं कि आपके बच्चों में अनुशासन, सहयोग, परोपकार और विनम्रता जैसे गुण विकसित हों तो इसके लिए बार-बार उन्हें उपदेश देना व्यर्थ है। इससे बच्चे बहुत जल्दी बोर हो जाते हैं। वे अपने माता-पिता की नसीहतों पर अमल करने की ज़रा भी कोशिश नहीं करते।